Friday, December 15, 2017

उदासी में श्यामला हिल्स


श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे टीव्ही के पर्दे पर नुमाया हो रहे गुजरात चुनाव के एग्जिट पोल पर गडी थीं ...| पोल तो उन्ही की पार्टी के पक्ष में गाने गा रहे थे लेकिन शायद उनको यह खबर रास न आ रही थी ...
‘गुजरात खिसकता तो राहत मिलती’...बडबडाते हुए उन्होंने फोन को हाथ पर कस लिया | ‘हल्लो’ ...गूंजते ही वह फिर बडबडा उठे ..’किस्मत ही ख़राब है ..सोचा था कि गुजरात में भट्टा बैठेगा तो ..धीरे धीरे किनारे लगा देंगे ...लेकिन हाय..यह फूटी किस्मत’......| 
बिना उत्तर सुने उन्होंने लगभग खीझते अंदाज में फोन ऐसा काटा जैसे कि किसी का गला ही रेत डाला हो ..| 
रिमोट को आदेश हुआ तो उसने टीव्ही बंद करने का अपना फर्ज़ निभा दिया | वह भी सामने पड़ी टेवल पर पैर उपर कर सोचते हुए आड़े हो गए ..| कुछ वक्त बाद किसी ने दरवाजे की ओट से थोड़ा खखारते हुए झाँका...| आँख खुली तो अनमने होकर अंदर आने की अनुमति दे दी ...|
‘क्या करेंगे अब ?....अब दोनों पहलवान पेल डालेंगे लोकसभा चुनाव तक...’ बडबडाते हुए आने वाले ने पहला जुमला उछाल दिया सामने ..| उन्होंने कोई उत्तर न दिया तो आने वाले ने अपनी बात को फिर आगे बढ़ा दिया ...| ‘ सब कुछ पूछ कर करो ...कोई आजादी नही ...अब आने वाले चुनाव में टिकिट भी सारे उनके मन के ..तो हम क्या यहाँ भिंडी बोते रहेंगे ..’ | साफ़ समझ आ रहा था कि आने वाला भी मानसिक रूप से काफी पीडित है | अचानक अब वो बोले ..’ मेरा तो सब एक तरफा मामला ही था ..लेकिन अब कोफ़्त होने लगी है ...ऐसा लगने लगा है कि मै तो सिर्फ भाषण के लिए यहाँ बैठाया गया हूँ ..सत्ता तो नागपुर और दिल्ली से ही चलेगी ..’| 
तनिक साँस लेकर वह फिर तेज़ आवाज में बोले ..’अरे इतने साल जी जान से लगा रहा लेकिन अब तो लगता है कि ‘बाबा’ की तरह मुझे भी किनारे पर खड़ा कर दिया जाएगा ..’ | माना कि व्यापम,किसान आत्महत्या,महिला बलात्कार के मामले में अव्वल,अफसरशाही का हावी होना जैसे कई आरोप ज़रूर हैं लेकिन सब चलता है ..’| थोडा रुके और फिर सोफे से उठते हुए रिरियाते हुए बोले ..’सबको खूब दिया ..सबकी इच्छा पूरी की ..दिल्ली से लेकर नागपुर तक ...अरे मैंने भी अपना हिस्सा रख लिया तो क्या हुआ ?..आखिर मुझे भी मेरा भविष्य जो देखना है ..”
उनकी परेशानी झरझरा रही थी ...| अचानक बोले कि ..’रत्नों को बुलाया है..कुछ तो आगे की तैयारी करनी होगी ..”| 
शब्द पूरे भी न हुए थे कि अचानक सूट बूट में कुछ कन्हैया आ धमके | रत्न ऐसे ही थोड़े थे ...वह सब सियासत में आगे बनने वाले समीकरणों को समझ चुके थे | भांप गए थे कि तिल्ली का तेल निकल चुका है अब कोई फायदा नही | रत्नों ने टालू अंदाज में कहा कि ..” सर ..अभी तो सिर्फ संभावित परिणाम है ..असल तो आने दीजिये फिर देखतें हैं..”
रत्नों के उत्तर से उनको थोड़ी आशा की किरण दिखाई पड़ी | वो थोड़े से सामान्य हुए ..इधर रत्नों ने जल्द खिसकने में ही भलाई समझी ...अरे आखिर उन्हें तो नया दरवाजा पकड़ना था ....

Saturday, October 28, 2017

न मामा न ...आप इतने भी मामू नही ..

              मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमेरिका की धरती पर जाकर दावा ठोंक दिया कि हमारी सड़कें आपकी सड़कों से बेहतर ..| फिर क्या था ...पान की दुकान,मीडिया,सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों में पहले तो हंसी के फव्वारे फूटे और फिर शुरू हो गई मामू जान की खिंचाई | क्या वाकई शिवराज जी भावना में बहकर बोल गए ? यह भी बहुत संभव  है कि फिर मामा के दावे के पीछे कोई सियासी मकसद हो ... या फिर सलाहकारों के  अतिउत्साह की बजह से यह हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई | आधिकारिक ट्वीट ठोंकने के बाद दावे को सत्य साबित करने के मंशा  से तुलना करने वाले अच्छी और बुरी सड़कों के फोटो भी सोशल मीडिया के माध्यम से पेश कर दिए गए | सच को परे रखकर सलाहकार और समर्थक लगातार मुख्यमंत्री के दावे को लेकर उलजुलूल तर्क पेश करते रहे | विदेशी मीडिया ने भी शिवराज के दावे की पोल खोलना शुरू कर दिया | लगता है रायता बनाया या फिर बनवाया ही इसलिए था कि फैलाया जाए सो जमकर फ़ैल गया ..वो भी आशा से ज्यादा ..| लेकिन क्या अच्छे अच्छो को पानी पिलाकर सियासी गली के किनारे तक पहुंचा देने वाले शिवराज वाकई इतने भावुक हैं ? शिवराज कोई अधपके नेता तो है नहीं जो अपने दावों के मतलब को न समझ सकें ..| या फिर शिव अपने राज़ में इतने अलमस्त हो गए हैं कि अब सारा कुछ चंद सलाहकार ही बुन रहें है |  अंदरखाने से यह भी खबर आती है कि  सलाहकारों ने अपने निज हित में बनते समीकरणों को बैठाने के लिए शिव से जो चाहा मुंह से उगलवा दिया और जो मन किया वो करवा लिया | शिवराज अपने क़दमों को खींच कर ही चलते हैं और कभी जोश में आकर फ्रंट फुट पर आ भी गए .... तो मजाक ही बना | 
   नौकरी के दौरान कुछ साल शाजापुर में गुजरे | वहां एक थानेदार साहब से थोड़ी नजदीकी हो गई | छेड़े थे तो समय गुजारने के लिए थाना मुफीद जगह होती थी | गप्पों के साथ मुफ्त की चाय उड़ाने का मौका हमेशा खुला रहता था | गप्पों के साथ थोडा सा ध्यान थानेदार साहब के थानेदारी करने के अंदाज पर रहता था | सब ठीक ठाक और कोई मोटा आसामी जद में आ गया तो थानेदार साहब काफी सक्रियता दिखा देते थे लेकिन यदि मसला उलझ गया या फिर कही गिरफ्त में आया कोई उन पर ही भारी पड़ गया तो बिल अपने चेले चपाटों पर फटना तय | तब यह मसला समझ से परे होता था या फिर यूँ कहिए कि मसले को समझने की कोशिश ही न की ..| अब थानेदार साहब और उनकी थानेदारी रह रहकर याद आती है ...| तनिक और स्पष्टता की ओर बढ़ लिया जाए तो कहावत है 'ऐडा बनकर पेडा खाना' ... इतना तो कहा ही जा सकता है शिवराज कम से कम ऐडे तो नहीं हैं लेकिन कुछ मिलते जुलते अंदाज में पेडे ज़रूर खाते रहें हैं | संभव है कि सलाहकार बेचारे फ़ालतू में ही लक्ष्य बनते रहे हो जबकि खेल अपने मामू का ही हो  | कुछ अच्छा हुआ तो कोई बात नही लेकिन मसला फंसा तो सलाहकार का सिर है ही ठीकरा फोड़ने के लिए ..| 
   

Friday, October 20, 2017

बंटता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ

रोज़मर्रा की तरह दफ्तर के काम निपटाने के बाद गाड़ी के पहिए घर की दिशा में तेज़ी से लुढ़क रहे थे । मोबाइल अपना मूल काम छोड़कर फिलहाल किशोर दा के गाने सुना रहा था । दफ्तर से घर की ओर का कुछ फासला ही तय हुआ होगा कि अचानक मोबाइल बाबू संगीत सेवा छोड़कर मूल काम पर आ गए । श्रीमती जी का संदेश था । तत्काल फोन गाड़ी के डेश बोर्ड का स्थान छोड़ कान पर आ चिपका । श्रीमती जी ने वन लाइनर अंदाज में अपनी बात रख दी..। "कब तक आ रहे हो ? औऱ आते हुए डीटीएच रिचार्ज ज़रूर करवा देना ..। उत्तर की औपचारिकता के बाद फोन पुनः अपनी संगीत सेवा में जुट गया और गाड़ी ने डीटीएच रिचार्ज वाली दुकान की ओर रुख कर लिया ..। 
रिचार्ज की यह दुकान कई साल से तय थी लिहाजा दुकान मालिक से पहचान भी खासी थी । रिचार्ज के साथ पन्द्रह बीस मिनिट की गप्पें हो ही जाती थी । नमस्कार और हालचाल की औपचारिकता के बाद रिचार्ज का आदेश कर दिया अपन ने...। रिचार्ज होने की प्रक्रिया के साथ ही गपियाना शुरू हो गया ..। मस्त गप्पों में व्यवधान डाला एक अन्य ग्राहक महोदय ने..। साहब को नया डीटीएच चाहिए था ..। दुकानदार शायद पहले से ही ग्राहक को और उनकी पसंद - नापंसद को अच्छी तरह से जानता था ...सो तत्काल ग्राहक की पसंद के अनुसार एक कंपनी की डीटीएच सेवा की तारीफ करते हुए एक विशेषता और पकड़ा दी कि.."सर...इसमें वो सभी न्यूज चैनल आते है,जो अपने वाले है....।
"चैनल..अपने वाले"...यह लाइन अपने समझ के बूते से बाहर थी..। अरे खबरिया चैनल तो खबर ही देंगे...अपने और पराए का इसमें क्या मसला...? खैर ग्राहक इस विशेष जानकारी हासिल करने के बाद खुश हो गया और सौदा चन्द मिनिट में परवान चढ़ गया...।
घर जाने के जल्दी थी लेकिन अपने और पराए चैनल की फर्क की पहेली जानने को मैं विवश हो गया ..। ग्राहक के रवानगी डालते ही मैंने बिना कोई देर किए अपने सवाल को दुकानदार की ओर उछाल दिया ..। दुकानदार मुस्कराया और धीमे से बोला सर यह सब ग्राहकी की कला है....लेकिन आयडिया आप पत्रकारों के वजह से ही आया । मुझे उत्तर जानना तो दो टूक पूछा कि भाई सीधे सीधे बताओ ....आखिर मतलब क्या...
दुकान वाले ने जो बताया वो मेरे जैसे खबरची के लिए झटके वाला था । दुकानदार ने स्पष्ट किया .."देखिए सर..सभी खबरिया चैनल किसी एक डीटीएच पर तो हैं नही और फिर सस्ते महंगे की मगजमारी..... इसलिए मैंने के नया फ़ंडा निकाला है कि जब ग्राहक आता है .... यदि वह पहचान का है तो कोई समस्या नही और यदि अजनबी है तो पांच से दस मिनिट राजनीति की बात करता हूँ ...। इस दैरान मुझे समझ आ जाता है कि उसकी विचारधारा और झुकाव के बारे में...फिर उसी की पसंद के अनुसार उत्पाद थमा देता हूँ ।
मैं उसके ग्राहक ज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा था...लेकिन दुकानदार समझ गया कि मेरे ऊपर के माले में बात अब तक समझ नही आई...सो फिर उसने समझाने के अंदाज में बोला....सर देखिए..यदि कोई सत्ता पक्ष के प्रति झुकाव रखता है तो तत्काल जी टीव्ही,आजतक, जी हिंदुस्तान,इंडिया टीव्ही,रिपब्लिक जिस पर आते है वो वाला डीटीएच बता देता हूँ और जो मोदी को पानी पी पी कर कोसते है उन्हें एनडीटीवी,टाइम्स नाउ जैसे चैनल जिस डीटीएच प्लेटफॉर्म पर मौजूद है वो आगे बढ़ाता हूँ..।
ज्ञानवान दुकानदार ने अपनी बात को औऱ स्पष्ट किया...सर जो सत्ता पक्ष प्रेमी है वह कड़वी सच्चाई को भी दरकिनार करके सिर्फ और सिर्फ सरकार की तारीफ ही सुनना चाहता है तो वही जो विपक्ष की विचारधारा से प्रभावित हैं तो वह किसी भी कीमत पर यह मानने को तैयार नही कि देश में तनिक भी कुछ अच्छा काम बीते तीन सालों में हुआ है..बस मोदी निंदापुराण में ही उनको काफी सुकून मिलता है...। चैनल भी बंट गए है कोई खबरिया चैनल सिर्फ भक्ति में व्यस्त होकर देश की दिन दूनी रात चौगनी तरक्की का राग अलापता रहता है तो कुछ चैनल हर तरफ सिर्फ बर्बादी और बर्बादी का रोना रहते है । कुल जमा हर चैनल का अपना एजेंडा सेट है और उस एजेंडे के लिए पत्रकारिता के मापदंडों की पुड़िया बनाकर अपने राजनीतिक आकाओ के चरणों में समर्पित कर चुके हैं ।
दुकानवाला इस फंडे को समझ गया लेकिन हम खबरची लोग समझते हुए भी नासमझ बनकर मोहरा बनते जा रहें है । असल खबर पर्दे से बाहर है । खबर पर्दे पर वही है जो सियासतदां चाहते हैं । मीडिया मालिकान चाँदी काट रहें हैं । आम लोग गुमराह हो रहे हैं । पत्रकारिता लगभग दम तोड़ चुकी है और चाटुकारिता शबाब पर आ गई है...।
शायद पढ़ने या सुनने में बात आम हो लेकिन ज़रा सोचिए लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ यदि पूर्ण रूप से धराशाही हो गया तो इस देश का क्या भविष्य होगा...?
गाड़ी के पहिए फिर से घर की दिशा में लुढ़कने लगे लेकिन दिमाग तो मानो दुकान पर ही उलझ कर राह गया था......
उफ्फ्फ...

Wednesday, August 23, 2017

आगाज़ एक नई सुबह का

मंगलवार की सुबह का सलमा को बेसब्री से इंतज़ार था । अहम फैसला जो आने वाला था । सलमा,बीते चार साल से अपनी ज़िदगी कम से कम जी तो न रही थी...वो तो, बस घसीट रही थी । अरमान दफन हो गए थे और उम्मीद की साँसे उखड़ने लगी थी । अरे गलती ही क्या थी उसकी...दिन भर कामकाज में खटने के बाद बिस्तर पर पड़ते ही मानो जिंदा लाश में तब्दील हो जाती । परिवार में नौ लोगों का हुक्म बजाते बजाते ..दिन कब फुर्ररर हो जाता....उफ्फ ..सच पता ही न चलता । 
    दिन भर चप्पलों को तकलीफ देकर और देर रात भोपाली पटियों को आबाद करने के बाद घर पर आमद दिए सलीम को अपना हक़ चाहिए होता । सलमा को तो अपने सरताज का हर हुक्म मानो ऊपर वाले का फरमान होता । 
 उस दिन बुखार था ...बदन जल रहा था । काम निपटा कर बस बिस्तर पर टिकी ही थी कि सलीम ने अपनी ख्वाइश उगल दी । बस आज नही......यही मुंह से उगला सलमा ने । इधर तो मानो शौहर के अहम को गजब चोट लगी और मुँह से उबाल आ गया 'तलाक-तलाक-तलाक'....। 
हालात जो भी हों लेकिन सिर पर छत तो नसीब थी सलमा को....लेकिन अब एक 'न' ने उसे बेघर कर दिया और रिश्तों से महरूम ...। 
    मॉफी मांगी । रहम की गुहार लगाई लेकिन अब क्या होता ...चन्द पलों में अब वह तलाकशुदा थी । अपनों की बीच जब सुनवाई न हुई तो  मजबूरन अदालत के दर पर दस्तक दे दी  । शुरू हुई हक की लड़ाई...
  आज फैसला आ रहा था..। धड़कने,सलमा का साथ नही दे रहीं थी...। अचानक ख़यालों को तोड़ा टीव्ही पर चीखती सीJ एंकर ने । फैसला आ गया । तीन तलाक..अब न होगा ...।
  सफेद पड़ चुके चेहरे पर हल्की से चमक फुदक आई,सलमा के..लेकिन कई सवालों के जबाब अभी भी ग़ुम थे....। उसके गुज़रे चार साल भी वापस मिलेंगे ? उसके साथ हुए अन्याय का जिम्मेदार कौन..? क्या अब कोई सलमा प्रताडित न होगी....? क्या नया कानून बनने से सब ठीक हो जाएगा...?
    कौन देता सलमा के जहन में सनसनाते सवालों का जबाब... । तलाक का जख्म उसने जिया था । जानती थी पीड़ा क्या होती है । 

  फैसला उसे सुकून न दे रहा था । अपनी जंग जीत जाने के बाद खुशी उसके दिल मे बसेरा न कर पा रही थी । सलमा की सोच... कानून की बजह से तलाक न होंगे यह मानने को तैयार न थी । अचानक मन के एक कोने से आवाज आई काश 'तलाक' को रोकने के लिए कानूनी डंडे की बजाए लोगो की जागरूकता आगे आ जाती तो कितना बेहतर होता...। उसे भी मालूम था कि किसी भी कुरीति के खात्मा के लिए कानून तो ठीक है बल्कि समझ की ज़रूरत ज़्यादा है । 
     टीव्ही पर कुछ महिला और पुरूष कुर्सियों पर टिके मुँह जुगाली कर रहे थे....लेकिन सलमा के दिल ने कुछ और फैसला ले लिया था ....अब,वह आज से समाज में जड़ जमा चुकी धर्म के नाम पर थोपी गई कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने का काम करेगी । 
   सलमा के चेहरे पर सुकून के भाव तैर गए । लगा उसको कि अब जिंदगी को नए मायने मिल गए....

Sunday, August 20, 2017

शौचालय की सोच को सरकारी ठेंगा

कुछ माह पहले ही भोपाल शहर को स्वच्छ शहरों की फेहरिस्त में दूसरी पायदान हासिल हुई थी | ख़ुशी से सीना चौड़ा हो गया था,सभी का.. | आश्चर्य थोडा ज़रूर हुआ था लेकिन फिर सोचा कि छोडो ...अपने मुख्यमंत्री गुणा भाग में तो माहिर है | जैसे हर साल फसल ख़राब होने के बाबजूद हमारे प्रदेश के पाले में ‘कृषि कर्मण अवार्ड’ आ जाता है कुछ वैसे ही इस मामले में भी ‘गोटी’ सेट हो गई होगी | खैर शहर को सम्मान मिला था तो कई सवाल झटक कर हमनें भी ख़ुशी मना ली | सारे गुणा भाग ठीक ठाक तो भोपाल दौरे पर आए पार्टी के तेज़ तर्रार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी दिल खोलकर तारीफ की और मुख्यमंत्री जी के कामकाज को बिना 'जीएसटी' काटे पूरे सौ नंबर पकड़ा दिए |
     सारा सब कुछ बेहतर था लेकिन हाय री किस्मत ..राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के आखरी दिन ही खीर में कंकड़ आ गया | दरअसल अतिउत्साह में मुख्यमंत्री जी की टीम गुणा भाग भूल गई और अध्यक्ष जी को उस गरीब आदिवासी के घर भोजन के लिए ले कर पहुँच गए,जिसके घर शौचालय ही नहीं था | यह तो अच्छा हुआ कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का पेट ठीक था कही उनको ही शौच के लिए जाना पड़ जाता तो बेचारा मेजबान आदिवासी उनको भी लोटा पकड़ा कर दूर खेत का रास्ता ही दिखा पाता | ख़ास बात यह है कि यह घर कोई दूर दराज इलाके का नहीं बल्कि बिल्कुल राजधानी भोपाल से सटा है |
   दरअसल अमित शाह जी आज़कल जहाँ दौरे पर जाते है तो वह किसी गरीब दलित के घर भोजन करते हैं | समय कम था सो भोपाल से सटे सेवनिया गौड़ गाँव के आदिवासी कमल सिंह के घर पर भोजन का कार्यक्रम तय हुआ | कमल के पास न तो स्थायी रोज़गार है न ही खेती किसानी | छोटे मोटे काम करके जैसे तैसे अपने परिवार के साथ गुजर बसर कर रहा है | सरकारी दफ्तर में दस्तक दी थी लेकिन आज तक शौचालय न बन पाया |
  शाह साहब की तो किरकिरी हो ही गई लेकिन बेचारे प्रधानमंत्री जी को कितना बड़ा धक्का लगेगा | अमिताभ बच्चन को भी दुःख होगा कि देखो रोज़ मैंने टीव्ही पर भले ही करोडो रूपये लेकर ‘स्वच्छता’ का ज्ञान दिया लेकिन शिवराज जी के राम राज़ में उनकी कोई सुनवाई नही | यह तीनो भी ठीक है सबसे ज्यादा बुरी स्थिति तो अपने देश भक्त अभिनेता ‘अक्षय कुमार’ साहब की होगी | टीव्ही विज्ञापन के साथ साथ वह तो शौचालय के सोच में इतने पड़ गए थे कि एक पूरी फिल्म ही बना डाली | अब आखिर यह क्या बात हुई ,शिवराज जी ....आपने केंद्र से मिशन के नाम पर पूरे 427 करोड़ रूपये तो ले लिए लेकिन ‘शौच’ की सोच पर कतई ध्यान न दिया ..| इस मामले में भी आपकी कृपा बरसी तो...बस अफसरों पर
  अब इस मसलें को लेकर मप्र में स्वच्छता मिशन की असलियत,भोपाल का स्वच्छ शहर की दूसरी पायदान पर आना और मुख्यमंत्री जी के कामकाज को सौ फीसदी नम्बर मिलना ...एक साथ तीनो की पोल खुल गई | शाह साहब खाना खाकर सोचते सोचते निकल लिए ....| शाह साहब का भी मुगालता दूर हो गया होगा कि वह खुद बड़े फन्ने खां या फिर गुणा भाग वाले हैं | अब महसूस हुआ होगा कि उनसे भी बड़े वाले पड़े हैं | खैर शाह साहब समझ जाइए,ऐसे ही नही बोला जाता कि ‘एमपी अजब है सबसे गजब है’......|
#amitshah
#shahinmp
#shivrajsinghchauhan
#cmomp
#bjpmadhyapradesh

Saturday, August 19, 2017

शिवराज और शाहरुख की जन्मकुंडली की जुगलबंदी

'श' से ही शिवराज और ' श' ही शाहरुख खान । दोनों की जिंदगी को लेकर गजब संयोग है । दोनों ही अपनी मेहनत और काबलियत के बलबूते फर्श से अर्श तक पहुंचे । दोनों ने ही अपने अपने क्षेत्र में सफलता के परचम लहराए । शाहरुख फ़िल्म इंडस्ट्री के सबसे लोकप्रिय और नम्बर वन सुपर स्टार बने तो शिवराज ने राजनीति के क्षेत्र में लोकप्रियता के चरम स्तर तक पहुंच कर दिग्गज नेताओं की ज़मात में अहम स्थान बनाया ।
  अभिनेता शाहरुख खान ने अदाकारी का सफर टीव्ही सीरियल से शुरू किया और फिर जब बड़े पर्दे का रुख किया तो फिर पीछे मुड़ कर न देखा । शाहरुख की फिल्म मतलब सफलता की 100 फीसदी गारंटी । आखिरकार शाहरुख फिल्मी दुनिया के बेताज बादशाह बन गए....।
   नेता शिवराज की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई । भाषण कला में पारंगत और सहज़,मेहनती शिवराज अपने ही दम पर सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए । संगठन में मिली विभिन्न जिम्मेदारियों को बेहतर अंजाम दिया तो सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे । शिवराज सबकी पसन्द बन गए । परिणाम यह हुआ कि अचानक बने समीकरणों के बीच शिवराज सिंह मप्र के मुख्यमंत्री बन गए । शिवराज ने कुर्सी का हत्था ऐसा पकड़ा कि अब तक के सर्वाधिक कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री हो गए ।
     दोनों की जन्म कुंडली के सितारे लगता है एक समान ही चाल चल रहे है । अब जब शिवराज की लोकप्रियता का ग्राफ किसान आंदोलन,व्यापम घोटाला,अफसरों को नियंत्रण में न रख पाने के साथ कई अन्य आरोप के चलते काफी गिरा तो इसका प्रभाव नगरीय चुनाव परिणाम में साफ दिखा । सत्ता के गलियारों से लेकर संगठन तक शिवराज के खिलाफ नाखुशी अब सार्वजनिक होने लगी है  शिवराज की विदाई को लेकर आए दिन ख़बरों का बाज़ार गर्म होता है । जानकारों के अनुसार वर्तमान हालात में शिवराज काफी कमजोर हुए हैं और आने वाला समय उनके लिए काफी कठिन साबित होगा
      तो कुछ वैसे ही शाहरुख भी कई सुपर डुपर फिल्मों का स्वाद चखने  के बाद लगातार ढाल पर हैं । दिलवाले,फैन और हाल में आई 'जब हैरी मेट सैजल' जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ दिया । फिल्मी पंडित शाहरुख को अब पिटा हुआ मोहरा कहने में भी नही चूक रहें है । थियेटर में दर्शकों का टोटा और फ़िल्म निर्माताओं की शाहरुख़ में अरूचि बिगड़ते समीकरणों की पोल खोलती हैं ।
     खैर नेता शिवराज और अभिनेता शाहरुख दोनों ही जीवन में एक बार फिर संघर्ष के दौर में हैं और अपने अपने मुकाम को बचाने के जुगत में जुटे है लेकिन "उफ्फ यह" किस्मत किसका कितना साथ देती है,यह तो भविष्य के गर्भ में है ।

Wednesday, August 16, 2017

शिवराज का दरकता जादू

  वर्तमान में घोषित #नगरीयनिकाय चुनाव के परिणामों ने #भाजपा सरकार की दरकती लोकप्रियता को स्पष्ट किया है तो साथ ही भविष्य के गढ़ते नवीन राजनैतिक समीकरणों की ओर भी संकेत दिया है । आशा से परे आए परिणामों ने मुख्यमंत्री #शिवराज सिंह के धड़कनें ज़रूर बढ़ा दी होगी ।  43 नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों में 14 #कांग्रेस और 3 पर निर्दलीय ने कब्जा कर लिया । हालांकि 26 पर #बीजेपी ने दम दिखाया लेकिन शिवराज ब्रांड और सत्ता हाथ में होने के बाद भी 17 सीट हाथ से निकल गई । और सबसे बड़ी बात कि मुख्यमंत्री जी ने इन चुनावों को गंभीरता से  लेते हुए 27 सीटों पर धुआंधार प्रचार किया था लेकिन परिणाम आए तो इनमें से 13 सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है । कहा जाता था कि चुनाव में शिवराज की #सभा भर हो जाए तो सीट बीजेपी की झोली में आना लगभग तय... लेकिन लगता है कि शिवराज जी के जादू को नज़र लग गई । पहली बार शिवराज को इतना बड़ा झटका लगा | भाजपा को अब गंभीर मंथन की आवश्यकता है। अंदरखाने में मुख्यमंत्री बदलाव की कवायद और तेज़ी से शुरू हो गई है | बीजेपी के नेताओ का ही मानना है कि यदि बीजेपी फिर से सत्ता में आना चाहती है तो मुख्यमंत्री का चेहरे में भी बदलाव ज़रूरी है | 
बदले समीकरणों के बीच मुख्यमंत्री बने थे,शिवराज 
      कुछ महीने पहले ही  शिवराज ने सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड कायम किया है | सन 2003 में दस सालाना मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के काम को सिरे से खारिज करते हुए मतदाताओं ने बीजेपी के हाथ में सत्ता सौपीं | बीजेपी सरकार में पहले साध्वी उमा भारती को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली और फिर बाबूलाल गौर के हाथ में सत्ता रही | समीकरण तेज़ी से बदले और नए युवा चेहरे के तौर पर शिवराज सिंह नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री पर काबिज हुए | सत्ता हाथ में आते ही शिवराज का जादू पूरे प्रदेश में दिखने लगा | शिवराज महिलाओं के भैया तो बच्चो के मामा बन गए | कोई भी चुनाव हो तो लगभग जीत बीजेपी के पाले में  ही होती ...| 
     शिवराज ने अपनी मुख्यमंत्री की पारी की शुरुआत तो शानदार अंदाज में की | विनम्र,सहज,सरल संवेदनशील मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज का ग्राफ एक दम आसमान छूने लगा | सफलता की ऐसी झड़ी लगी कि शिवराज के सामने दिग्गज से दिग्गज नेता शुन्य होते दिखे | शिवराज के विकल्प के रूप में दूर दूर तक कोई चेहरा नही था | लेकिन शिवराज अफसरशाही से बचे न रह पाए | डम्पर मामला,व्यापम घोटाला,उज्जैन कुम्भ जैसे कई भ्रष्ट्राचार के मामलों का सच सामने आने लगा | पार्टी के नेताओ से लेकर कार्यकर्ताओं का आक्रोश अब सार्वजनिक होने लगा है |पिछले दिनों किसान आंदोलन ने तो मानो शिवराज सरकार की सारी छवि को तार तार कर दिया |
बदलाव की आहट 
   जल्द बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष #अमित शाह भोपाल में चौपाल ज़माने वाले हैं । पहले ही कयास लगाए जा रहे थे कि चौपाल में शिवराज के विरोध में सुर गूंज सकते हैं लेकिन  नगरीय निकाय के नतीजों के बाद अब तय है बैठक में शिवराज विरोधी भारी पड़ने वाले हैं । #संघ और मोदी-शाह की टीम के द्वारा जमा की गई रिपोर्ट में भी शिवराज का ग्राफ् तंदुरुस्त नही है । वैसे भी शिवराज #मोदी-शाह की गुडबुक में सार्वजनिक तौर पर शामिल हो सकते है लेकिन "वेवलेंथ" मेच नही होती है । पहले ठोस तौर पर माना जाता था कि मप्र में बीजेपी का चेहरा शिवराज के अलावा अन्य कोई हो ही नही सकता लेकिन अब जिस तरह माहौल बना हुआ है,उसमें चेहरा कोई खास हो यह कोई मायने नही रखता । बड़ा संभव है कि जल्द शिवराज की कर्मभूमि दिल्ली बन जाए और आने वाले समय में मुख्यमंत्री निवास में आयोजित  अन्य कोई चेहरा  'दीवाली मिलन समारोह' का मेजवान हो ....।
#mpbjp
#shivrajsinghchauhan
#nagriychunav

Monday, August 14, 2017

आज़ादी - कहीं भगवा और हरा एक न हो जाए


आज़ादी....  लफ्ज़, जिसके पीछे छिपे है ढेरो अधिकार और चंद फ़र्ज़ ...। फ़र्ज़ तो छोड़िए वो निभाना तो हम हिंदुस्तानियों के लिए मानो सबसे बड़ा सिरदर्द है लेकिन अधिकार तो हलक से भी निकालने का हुनर रखते हैं ।
   खैर गोली मारो... फ़र्ज़ और अधिकारों को ...लेकिन कुछ सालों से देख रहा हूँ कुछ असामान्य लोग आजादी का गलत फायदा उठा रहे है । लगातार कुछ मुस्लिम लोग... कोई भी हिन्दू पर्व हो ...मेरे हिन्दू भाईयों से पहले ही पर्व की शुभकामनाएं जड़ देते है ...। नावेद खान,निशात सिद्दिकी, अब्दुल रउफ खान,जुनैद मियाँ, जुबैर,साजिद रतलाम,अनवर(आशु),तालिब मियाँ जैसे कई और मुस्लिम है जो दीवाली हो दशहरा.....होली हो या रक्षाबंधन...कोई भी त्यौहार हो । सबसे पहले मेरे फोन के इनबॉक्स में इनके शुभकामना संदेश बिलबिला जाते है । अरे मुस्लिम लोगो...आपको किसने यह आज़ादी दे दी कि आप मेरे हिन्दू भाईयों से पहले अपनी दिली मुबारक बाद मुझ तक पहुंचा दो । मेरे हिन्दू भाई है तो शुभकामना देने के लिए.....भले ही देर कर दें या फिर मेरा संदेश मिलने के बाद उन्हें याद आए...। जो भी हो वह मेरे हिन्दू भाई है ।
   कुछ हिन्दू भी आज़ादी का गलत फायदा उठाते हैं । देखो न राजेश जैन,जितेंद्र,विनय गुप्ता या फिर नितिन जैन....यह लोग ईद पर सुबह सुबह से ही तालिब मियाँ के घर मुबारक बाद देने जा पहुंचते है । अरे भैया ....तुम क्यों भूल जाते हो कि तुम हिन्दू हो.....। आज़ादी का मतलब यह थोड़ी कि मुस्लिमों को इतने प्रेम और उत्साह से मुबारक दो ....।
   वाकई इस देश में इस तरह के लोग आजादी की गलत परिभाषा गढ़ रहें है । अरे हम तो आज़ाद हैं ....एकता,प्रेम से क्या वास्ता ..। अरे हमें हक बनता है .... गाय गाय खेलने का । हमें हक बनता है बिना बुर्का के महिला को घर से न निकलने देने का ...। हमें हक बनता है नए नए मंदिर मस्ज़िद तलाशें और जमकर एक दूसरे को निशाना बनाए...। मज़ा तो फतवा फतवा खेलने में है । हमारे भाग्य विधाता,मार्गदर्शक नेताओं ने हमे जो सीख दी है वह कतई गलत नही है । आज़ाद हैं हम....। जो मर्जी वो करें...। एकता जैसे शब्द हम अपनी डिक्शनरी में क्यों रखें । धर्म सर्वोपरी....आखिर आज़ादी कहाँ जाएगी लेकिन हमने अभी भी ध्यान न दिया तो कहीं धर्म की वाट न लग जाए । ऊपर वाला तो हम पर टिका है और यदि हम एकता वेकता में उलझ गए तो कही उसका ही अस्तित्व खतरे में न पड़ जाए ।
   चलिए फिलहाल स्वतन्त्रता दिवस मनाने की औपचारिकता पूरी कर लें । अरे चलो देख लेना... यदि कोई मियाँ भाई मिल जाए तो मजबूरी में चिपका दो मुबारक़ बाद ..।
  15 अगस्त विदा होते ही नेता जी के मंशानुसार निपटते है । खैर अभी आजादी के तरानों पर झूम लिया जाए फिर 26 जनवरी तक तय मुद्दों पर आगे बढ़ेंगे
 आज़ादी....ज़िंदाबाद.......
#mp
#azadi
#independenceday
#15august

Sunday, August 13, 2017

प्रधानमंत्री कार्यालय से मुझे एक मेल प्राप्त हुआ । जिसमें पीएम के  स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले भाषण के लिए इनपुटओ मांगे गए हैं । मैंने अपने सुझाव के तौर पर प्रधानमंत्री ऑफिस को लिखा कि इस बार इन्कम टैक्स-जीएसटी का भय जो देश में बन चला है,उसको खत्म करने का प्रयास करें । साथ ही चौपट होते बाजार और बढ़ती बेरोजगारी को लेकर ठोस घोषणा करें । आम जनता तो कई बार 'इनपुट दे चुकी..कृप्या अब आप 'आउटपुट' दीजिए
 आवश्यकता है कि प्रधानमंत्री तक सतही हकीकत को रखा जाए । सम्भव है कि सुझाव मान्य न हो या फिर आम हो लेकिन कम से कम पीएमओ तक बात तो पहुंचेगी

Saturday, August 12, 2017

मुखिया जी का शिक्षा तंत्र


मप्र की राजधानी से सटा जिला ...। जिला भी खास क्योंकि यह बड़े नेता जी का गृह जिला जो है । इस जिले की मिट्टी में होने वाला शरबती गेहूं तो देश से लेकर विदेशों तक मशहूर है । कई दफा टीव्ही विज्ञापनों में भी यहाँ के शरबती गेहूं का ज़िक्र आता रहता है |  कुल जमा खेती किसानी ही ज्यादातर लोगों की रोज़ी रोटी की जुगाड़ है ।
         जहाँ नेता जी ने जन्म लिया उसी जिले में ही था 'चिन्नी' का गाँव | छह साल की ‘चिन्नी’ अपनी माता पिता की इकलौती बेटी थी । पिता मदन के बहुत बड़े अरमान न थे बस यही चाहता था कि चिन्नी पढ़  लिख कर 'मास्टर' बन जाए और अपने ही गांव में रहकर ही बच्चो को पढ़ाए । क्या बनना और क्या नही ...इससे चिन्नी को तो कोई सरोकार न था बस चाहती तो सिर्फ इतना कि स्कूल में जाकर पढ़ लें । पढ़ना पहला शौक था, चिन्नी का ..। किताबों में छपे सुन्दर सुन्दर चित्र और कहानियां चिन्नी को बहुत भाती | किताबें तो जिद करके मदन से उससे मंगवा ली थी लेकिन पढ़ाने वाला कोई नही थी ।
         दरअसल जिस गांव में चिन्नी थी... वहां स्कूल तो था लेकिन वीरान....। मास्साब 15 से 20 दिन में एक बार आते और सरपंच साहब के घर चाय गटक अपनी परचून की दुकान का सामान लेने राजधानी का रुख कर लेते । गांव में रहने वाला भृत्य भीमा था रोज़ सुबह स्कूल का ताला खोलता और एक - दो घण्टे में समान समेट कर वापस अपनी खेत की ओर रास्ता नाप लेता ..
        गांव में कई बच्चे थे । मास्साब की गैरहाजरी के चलते पढ़ाई तो सिर्फ कागज़ों पर थी । बच्चे दिन भर सिर्फ धमाचौकड़ी करते । पढ़ाई को लेकर चिंन्नी का मन बहुत होता लेकिन सिर्फ स्कूल की खण्डर होती बिल्डिंग को देखकर ही खुश हो लेती । सरपंच साहब का हिस्सा मिल जाता तो वह भी शांति पकड कर सारी स्थिति को दरकिनार कर देते | अफसरों से गाँव वालो ने पहले कई बार शिकायत की लेकिन वो झाड मिली की अरमान तिलमिला का वहीँ ठंडे हो गए | चेतावनी भी मिली कि....’..ज्यादा नेतागिरी में न पड़ो...कायदे में रहोगे तो,फायदे में रहोगे’......|
     नदी कल्याण कार्यक्रम के चलते मुखिया जी का उसी गाँव का दौरा तय हो गया | सब कुछ चकाचक होने लगा | ऐसा लग रहा था कि इस बार दिवाली ने अक्तूबर – नबंवर महीने का मोह छोड़ कर जुलाई का रुख कर लिया हो | स्कूल में अचानक तीन मास्साब आ गए | आज सबको पता चला कि स्कूल में तो तीन - तीन शिक्षक की तैनाती है | खैर ...गाँव के सभी बच्चो को आदेश हुआ कि कल से स्कूल आना ज़रूरी है | साथ ही माँ बाप को भी सख्त हिदायत कि बच्चो को याद से स्कूल भेंज दें नही तो राशन की दूकान से इस बार राशन न मिलने वाला..।
   आज शाम पांच बजे मुखिया जी की सभा थी | गाँव दुल्हन की तरह शर्मा रहा था तो स्कूल तय समय पर खुल गया था | कल ही मिली झकाझक स्कूल यूनिफार्म पहनकर बच्चे ख़ुशी से फूल के कुप्पा हो रहे थे | चुन्नी इसी में ख़ुशी थी कि चलो उसका पढने का शौक अब पूरा होगा | मास्साब तेज़ आवाज में पहाड़े सिखा रहे थे और बच्चो का ध्यान नई मिली यूनिफार्म पर था | मुखिया जी की सभा की तैयारी में जुटे जिले के बड़े अफसर ने लगे हाथ स्कूल का निरीक्षण कर औपचारिकता करने की ज़हमत भी कर दी | साफ़ साफ़ कपड़ों में करीने से बैठे बच्चे... | शिद्दत से पढ़ाते मास्साब ...| बोले तो सब कुछ बेहतर..बेहतरीन....|

      मुखिया जी आए | अफसरान ने क्षेत्र की जानकारी में स्कूल की रिपोर्ट भी जोड़ दी | मंच से मुखिया जी ने दोहरा दिया वह सब कुछ जो उन्हें समझा गया था | मुखिया जी जोश खरोश से बोले ...कलेक्टर ने बताया कि स्कूल कितनी अच्छी तरीके से चल रहा है ...मन बाग़ बाग़ हो गया ....खुश हूँ कि मेरे भांजा - भांजी  खूब पढ़ लिख कर गाँव- प्रदेश और देश का नाम रोशन करेंगे ...आज वाकई मन प्रसन्न है कि जो गाँव गाँव तक शिक्षा पहुंचाने का प्रण मैंने लिया था....आज वह रंग लाया है .....’’| मुखिया जी धारा प्रवाह बोलते गए ..| ताली पिटती रही और खुद की पीठ थपथपाते अगले गाँव के लिए मुखिया जी काफिला निकल पड़ा... |
      काफिला अगले गाँव पहुंचा ही होगा और यहाँ चुन्नी सहित सभी बच्चो को दी गई यूनीफार्म वापिस ले ली गई | हेड मास्साब को दुकान के लिए देर हो रही थी | इसलिए फटाफट सरपंच साहब को आज पूरा मामला सेट करने में मदद के लिए धन्यवाद पकडाया और साथ ही घोषणा कर दी कि अब महीने के अंत में ही आना हो पायेगा | शादी का सीजन है तो दुकान पर ज्यादा समय देना पड़ता है और वाकी के दो जो अन्य शिक्षक है उनको भी अपनी निजी कोचिंग से अभी फुर्सत नहीं है |
                   अगली सुबह स्कूल फिर वीरान था | भीमा ने स्कूल का मुख्य दरवाजा खोलकर आज की बोनी कर दी थी | चिन्नी तय समय पर स्कूल पहुंची लेकिन न मास्साब थे और बच्चे ....| चिन्नी बस यही सोच रही थी कि मुखिया जी ने उसके स्कूल की तरीफ क्यों की ......|

फिजाओं के नारा बुलंद हो रहा था ..’’उफ्फ यह......तंत्र’’

Wednesday, August 9, 2017

बातें बनाओ,धन कमाओ- सरकार का नया नारा

 शिवराज जी ने जब नवम्बर 2005 में प्रदेश की सत्ता सम्हाली तो आम लोगो के 'भैया' थे । 'पांव पांव वाले भैया'...यह संबोधन तो लोगो के जुबान पर बरबस ही चला आता था । आम जन के करीबी विनम्र,सरल और सहज शिवराज कुछ साल में ही 'भैया' से 'मामा' के चोले में गढ़ गए । वक्त गुज़रा ...बहुत जल्द लोगो का मामा सरकारी चच्चाओं (अफसरान) के चक्रव्यूह में आ घिरा । चच्चाओं और लक्ष्मी का चक्कर यूँ चला कि 'मामा' प्रदेश के लोगो को 'मामू' बनाने में जुट गए ।
      'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ' के नारे से शुरू हुआ सिलसिला अब 'बातें बनाओ,धन कमाओ' के नारे पर आकर थम चला है ।
   शिवराज जी ने मुख्यमंत्री बनते ही एलान किया था कि मैं किसान पुत्र हूँ और मेरी सरकार किसानों की सरकार है । खेती को लाभ का धन्धा बनाने का झुनझुना किसानों को पकड़ाया । अन्नदाता ने किसान पुत्र पर पूरा भरोसा किया और ईमानदारी से झुनझुना कई सालों तक जमकर बजाया । झुनझुने में सिर्फ आबाज ही आती रही .....कब तक महज़ भरोसे के झुनझुनेे से जिंदगी कटती । निराश और लाचार 'अन्नदाता' आत्महत्या पर मजबूर होने लगा । लेकिन किसानों के दर्द से परे कृषि विकास की योजनाओं और मुआवजा के नाम पर भृष्ट्राचार की फसल जमकर लहलहाई । कुल जमा 'बात बनाओ,धन कमाओ' का ही नारा बुलंद हुआ ।
   मामा ने किसानों के साथ युवा रोज़गार को लेकर भी खूब थाप लगाई । बिडम्बना...स्वरोजगार में मदद दिलाने से लेकर नई नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराने तक के वादे की हवा निकल गई । न युवाओं को स्वरोजगार मिला और न नौकरी ....नसीब हुई तो सिर्फ बातें । मगर हां...पर्दे के पीछे युवाओं के लिए बनाई गई योजनाओं को ज़रूर पलीता लगा । व्यापम कांड करके तो सरकार ने अपना 'काम' और 'नाम' विश्वस्तरीय भृष्ट्राचार मामलों की फेहरिस्त में लिखवा लिया ।  कुल जमा यहां भी 'बातें बनाओ,धन कमाओ' को ही तबज्जो दी गई ।
 अवैध उत्खनन को लेकर तो क्या कहना । नर्मदा सेवा यात्रा का महाआयोजन हुआ ...माँ नर्मदा को बचाने के मकसद को लेकर...... लेकिन नदी संरक्षण तो छोड़िए उल्टा यात्रा के बाद नए और स्थान मिल गए नर्मदा की कोख को ज़ार ज़ार करने के लिए । यहां भी सेवा यात्रा के नाम पर खूब माल कटा । बातो का तड़का लगाकर यहां भी 'बातें बनाओ,धन कमाओ' पर जमकर अमल किया गया ।
  जम्बूरी मैदान और मुख्यमंत्री निवास में हुई पंचायतों  के नाम पर भी लाई लूटी । इन पंचायतों में जो घोषणाएं हुई उनमें से ज्यादातर घोषणा सरकारी फाइलों में दबी सिसक रहीं है लेकिन पंचायतों के तामझाम और आयोजन के नाम पर करोड़ो के बिल फटे । लब्बोलुबाब यही कि ' बात बनाओ,धन कमाओ' का नारा यहां भी प्राथमिकता पर था ।
   लगातार सामने आ रहे भृष्ट्राचार के कई मसले है जिनका हवाला देकर ढेरों कागजों को रंगा जा सकता है । विपक्ष के अभाव में सत्ता पक्ष बेलगाम है । मुख्यमंत्री जी भाषण कला में पारंगत है और इसका भरपूर लाभ भी उन्होंने लिया । लेकिन समझ आते हालातों ने सरकार के प्रति ऊब और नाराज़गी पैदा कर दी है । अब लच्छेदार भाषण और चाशनी में पगे वादे आम लोगो को रास नही आ रहें है बल्कि मानस पटल पर सरकार की छवि को तेज़ी से नकारात्मक बना रहें है । बाबजूद सरकार हकीकत से परे अपने नए नारे 'बातें बनाओ,धन कमाओ' में ही मस्त और व्यस्त है ।
   चुनाव को लगभग एक साल है । सरकार अपनी ही पीठ खुद थपथपाकर चौथी बार सत्ता सुख के सपने बुन रही है । हालात यही रहे तो दिग्विजय सिंह की तरह शिवराज सिंह का मुख्यमंत्री पद भी इतिहास न हो जाए । अब भी वक्त है सम्हलने का  ...यदि 'मामू' एक बार फिर 'भैया' बन जाए तो...।
#shivrajsingh
#baatenbanaodhankamao
#cmmp
#mama

Monday, August 7, 2017

चैनल और खबर के मापदंड

हज़ारों परिवारों को बचाने के मकसद को लेकर #नर्मदाबचाओआंदोलन की नेता मेघा पाटकर बीते 12 दिनो से अनशन पर हैं । सरकार ने बजाय समस्या का हल निकालने के उल्टा, अनशन स्थल से ही मेघा को बलपूर्वक हटा दिया लेकिन तमाम चैनल का इस खबर से कोई बास्ता नही है । बबाल नही हुआ तो मप्र सरकार भी 'बात बनाओ,धन कमाओ' कार्यक्रम में व्यस्त है । सुना है मेघा जी की सेहत दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है ।

     आंदोलन सफल होने से हो सकता है कि इन बेचारे परिवारों का भला हो जाए लेकिन टीआरपी भी कोई बला होती है । भला,इसे हमारा चौथा स्तम्भ कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है । चैनल दिन भर जो खबर पेले पड़े रहतें है,उसके पीछे भी कई गणित होते हैं । देखिए न.....मेघा जी को नही मालूम तो 11 दिन के अनशन के बावजूद आज कोई सुध लेने वाला नही और वही केजरीवाल साहब ने मीडिया बंधुओं को जोड़कर खबर में रहने के गुर सीख लिए तो आज 'मुख्यमंत्री' बन गए ....।

     अब भला,मेघा पाटकर के आंदोलन में है ही क्या...। न नौटँकी, न सेलेब्रिटी और न ही भन्नाट टाइप की मारपीट या गाली गलौच । वैसे भी अभी चैनल वाले भाई लोगो के पास भरपूर मसाला है तो भला इस खबर में टाइम क्यों खोटी किया जाए । दरअसल चैनलों के भी अपने अघोषित नियम है,जिन्हें ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है ..। खासकर धरना,प्रदर्शन, आंदोलनकारी थोड़ा ध्यान रखें ।

* चैनलों को सिर्फ खबर नही बल्कि 'मसाला खबर' की दरकार होती है । मसाला खबर पर बढ़िया पैकेज भी पकता है और दर्शकों को भी मस्त मज़ा आता है । इससे पहले जब पानी मे खड़ा होकर डूब पीडितों ने आंदोलन किया था तो खूब खबर बिकी थी ।

* अक्सर शनिवार,रविवार या फिर त्यौहारों पर खबर बेमौत मारी जाती है क्योंकि चैनल के कर्णधारों को अवकाश होता है औऱ कनिष्ठ 'बस चलने दो' के अंदाज में काम करते हैं..।

* गुरुवार को अक्सर बड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले आते है तो अन्य सतही खबरों का कत्ल होना तय ।

* खबर सनसनीखेज हो । साथ ही कोई भी सेलेब्रेटी को इसमें फालतू में फंसा लो तो खबर के बिकने की पूरी गारंटी ।

* मसला कोई भी हो यदि लालू प्रसाद,ओबेसी, आज़म खान,ममता बैनर्जी, सुब्रमन्ह्यम स्वामी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया उस पर चेंप दी तो चैनल के कर्णधारों को अहसास हो जाता है कि यह 'खबर' जो बिक जाएगी ।

* यदि किसी लड़के को लड़की ने सरे आम जमकर पीटा,नौटँकी टाइप का सीसीटीव्ही फुटेज,नेता का अश्लील एमएमएस,चीन-पाक इश्यू पर नया घटनाक्रम,गाय, पीएम की विदेश यात्रा, आदि आदि तरह के मसले आ गए तो राष्ट्रहित में मीडिया इन्हें तबज्जो देगा ।
* क्रिकेट का कोई मैच हो तो आशा ही मत कीजिए कि अन्य कोई खबर चौकोर पर्दे पर देखने मिलेगी । विराट से लेकर पिच के हालात बताने में पेले पड़े रहेंगे ।

* किसी कालेज या विश्वविद्यालय में कुछ लंपट ने नौटँकी कर दी और उस पर नेताओ ने कुछ बोल दिया तो तत्काल बड़ी खबर की श्रेणी में शुमार होना तय है ।

* कुपोषण,स्वास्थ्य,शिक्षा,रोज़गार या अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी खबर निचली श्रेणी में शामिल होकर लायब्रेरी की शोभा बढ़ाएगी ।

* यदि कुछ मसाला नही तो फिर सीधी नज़र सब्जियों के दाम पर होगी..। प्याज,टमाटर को आसमान पर पहुंचा दिया जाएगा ।

* खबर यदि 12 से पहले जब चैनल में संपादकीय विभाग की बैठक होती है,जिसमें चैनल के बड़े साहब ज्ञान देते है...। मान लो उस समय तक वह बैठक के पटल पर पहुंच गई तो संभव है उसका कल्याण हो जाए वरना भोजनकाल के बाद आने वाली खबरों का तो मरण है । क्योंकि शाम को तो ज्ञानचंदो का संगम होता है चैनल पर ..।

* अरे हां.. रिपोर्टर की साहब से कितनी पटती है या फिर उनके खेमे का हुआ तो भी खबर पर्दे पर आने की उम्मीद जगाती है ।

* खबर के प्रसारण से मालिकान का आर्थिक,राजनैतिक एवम सामाजिक समीकरण कैसा बैठेगा ..भैया यह भी देखना बहुत ज़रूरी है ।

* किसी फिल्मी सितारे की मूर्खतापूर्ण हरकत या किसी सितारों पर कोई छोटा सा भी आरोप लगा तो डंडा कमंडल लेकर शुरू ।
     यदि इन मापदंडों पर ध्यान नही दिया तो घटना,मुद्दा या फिर आंदोलन कितना भी अहम हो,चैनल्स के लिए कोई मायने नही रखता । इसलिए मेघा जी कृप्या आप दुखी न हों । आपका आंदोलन चैनल के मापदंडों पर खरा नही उतरता इसलिए चौकोर पर्दे पर जगह न मिल पाएगी  लेकिन मेघा जी...आपका प्रयास और तप आम लोगो के के दिलों में जगह ज़रूर बना रहा है....।

Sunday, August 6, 2017

नशा न करना,भैया


रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी आमद दर्ज कराने वाला था । बहनें हो या भाई सभी का रक्षा पर्व को लेकर उत्साह चरम पर था । नीलम तो इस त्यौहार के इंतज़ार में मानो पल पल गिन रही थी  । बहन की तरह गौरव भी अपनी छोटी बहन से कलाई पर राखी सजवाने को लेकर बेकरार हुआ जा रहा था । उम्र के लिहाज से दोनों भाई बहन के बीच महज़ दो साल का ही फासला था । हर बार भैया गौरव का चेहरा,राखी बंधवाते ही खिल उठता तो गौरव का दिया उपहार हाथ में आते ही नीलम तो उछल ही पड़ती । राखी का दिन तो बस धमाचौकड़ी में गुज़र जाता । आज के दिन पापा - मम्मी की तरफ़ से भी मस्ती के लिए पूरी छूट रहती थी ।
    वक्त गुज़रा, हालात बदले । गौरव एक निजी कंपनी में नौकरी करने लगा और नीलम अपने साजन के साथ ससुराल चली गई । राखी का पर्व अब भी आता था....खुशियों और प्यार को समेटे हुए । दोनों भाई बहन का उत्साह अब भी बचपन के दिनों की तरह ही बरकरार था ।
     गौरव नौकरी के बाद बाहरी दुनिया से ज्यादा जुड़ गया । माँ तो माँ थी लेकिन पापा काफी सख्त थे । गौरव ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली लेकिन बिना पिताज़ी के जानकारी के एक कदम भी चलने की भी अनुमति न थी । खैर अब नौकरी थी तो स्वतंत्रता भी पर मारने लगी । गौरव को लगा कि ' मानो जिंदगी ने तो अब आवाज दी है' । दोस्तों ने भी उसके शौक को हवा दी। । नशा अब गौरव की जिंदगी का का बड़ा हमसफ़र हो चला । वक्त न ठहरा ....बढ़ता चला गया । नशा,गौरव पर हावी हो गया । कंगालियत ने जिंदगी में दस्तक दे दी तो लगे हाथ सेहत ने भी विदाई की तैयारी कर ली । महज तीस साल की उम्र में 60 का नजर आने लगा था...गौरव ।
   नीलम को जब प्यारे भैया के हालात का पता चला तो वह तो टूट ही गई । पिताज़ी तो चल बसे थे और माँ गौरव को समझा समझा कर थक गई और आख़िरकार किस्मत का लिखा मानकर स्थितियों से समझौता कर लिया  ।
  भैया था उसका...एक खून.... कइयों साल जिंदगी के साथ जिए थे तो भला वह हाथ पर हाथ रख कैसे बैठ पाती । नीलम ने ठान लिया कि वह न कोई समझौता करेगी और न चुप रहेगी । बस इंतज़ार था तो राखी का ...। उसने तय किया कि वह पहली बार अपने भैया से राखी का तोहफ़ा मांग कर लेगी ।
   आ गई राखी । राखी की खुशी तो आज भी वही थी लेकिन नीलम की तो मानो आज परीक्षा की घड़ी थी । नीलम थाली सजा कर भैया गौरव के घर पहुंच गई । कलाई पर राखी सजी और नीलम ने अपनी तोहफे की मांग भैया को सुना दी ।
  'भैया...इस बार तोहफा जो मैं मांगू वो'....। गौरव के होंठो पर मुस्कान थिरक गई । लाड़ से बोला..'मांग मेरी बहना, जो चाहिए...। नीलम ने तुरंत ही अपनी मांग सुना दी....'भैया...आपने बिना मांगे मुझे आज तक सब कुछ दिया...हर खुशी का ध्यान रखा'....। लम्बी सांस लेते हुए नीलम रुंधे गले से बोली...'भैया,इस बार तोहफे में मुझे वादा चाहिए.....भैया आज से नशा नही'....।
     गौरव को लगा कि शब्द उसके मुँह में ही मानो जम गए हो । आंखे झुक गई और कंपकपाते हाथों से अपनी बहन का हाथ थाम लिया । गर्दन हामी के अंदाज में डोल गई । भाई - बहन के आंखों से आँसू ज़ार ज़ार बहे जा रहे थे । पास खड़ी माँ एक टक इस अपारिभषित प्यार को देखे जा रही थी......।
'नशा न करना,भैया'.....

Saturday, August 5, 2017

चोटी कटुवा का सरकारी इलाज

    रात जवां हो रही थी लेकिन मप्र के मुखिया जी के सरकारी निवास पर दौड़ भाग मची थी । मुखिया जी #चोटी काटे जाने की घटनाओं को लेकर काफी आहत थे । दिल द्रवित था और चिंता चरम पर | आखिरकार नर्म दिल मुखिया जी ने आनन फानन में अपने खास विश्वस्त अफसरान को तत्काल हाज़िर होने का आदेश दे दिया ।
      बड़े से हॉल में अफसरान कुर्सी पर आ जमे लेकिन मुखिया जी कुर्सी का हत्था थामे गंभीर सोच में खड़े थे । आखिरकार उनकी मुँह बोली बहनों की चोटी काटने पर कोई उतारू था ।
      मुखिया जी का पहला सवाल पुलिस के सबसे बड़े अफसर के कान से टकराया । 'कौन है,कुछ पता चला...क्यों वह,इस तरह के जघन्य अपराध को अंजाम दे रहा है'...मुखिया जी ने एक ही सांस में कई सवाल ठोंक दिए । आंखों में नींद थामे पुलिस अफसर ने सिर्फ 'न' कहकर अपना फर्ज पूरा कर दिया । परेशान मुखिया जी ने अपनी आँखों को अब अपने प्रदेश के बड़े साहब पर जमा दिया लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर न मिला ।
      मुखिया जी समझ गए मसला बड़ा है और अब दीन-हीन की तरह अपने संकटमोचक निकटस्थ करीबी अफसर को एकटक देखने लगे । छोटे साहब समझ गए कि मोर्चा सम्हालने का समय आ गया ।
      'सर,इससे पहले कि मीडिया बबाल मचाए और लोगो के बीच आपकीं 'संवेदनशील छवि' को नुकसान हो...उससे पहले जिन महिलाओं की चोटी काटी गई है उनको तत्काल 50 लाख का मुआवजा घोषित कर दीजिए' । साहब बिना पलकें झपकाए एक सांस में बोले जा रहे थे । 'सर....उस जिले के कलेक्टर के खिलाफ 'नाखुशी' ज़ाहिर करते हुए थानेदार और कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को निलंबित कर दीजिए...'।
       अब सांस ली साहब ने...'और सर..कल का आपका दौरा तय कर देते है । अभी सभी पेपर्स में एक एक पेज का विज्ञापन और शहर में होर्डिंग लगवा देते है । इसके अलावा सभी चैनल्स को खास पैकेज देकर आपके दौरे कार्यक्रम को लाइव करवा देते है ...। सभी कलेक्टर को बोल देते है कि कार्यक्रम स्थल पर 10 - 10 बसों में लोगो को भरकर भेजें । सर....खास टेंट और ए.सी. बगैरा भोपाल वाले ठेकेदार को लगवाने का बोल देते है ...। साहब रुकने का नाम नही ले रहे थे और मुखिया जी मंत्रमुग्ध सुने जा रहे थे ।
     'सर इस पूरे मिशन में लगभग 50 करोड़ का खर्चा होना चाहिए ....उस बजट को मैनेज करने का अभी विभाग प्रमुखों को बोल देता हूँ....। साहब समस्या का समाधान देकर अब शान्त हुए ।
       मुखिया जी चेहरे पर सुकून के भाव थे । द्रवित दिल मे अब हर्ष था । आभार वाले भाव में मुखिया जी 'साहब' को देखते हुए बोले कि बाकी तो आप काफी अनुभवी हो लेकिन विज्ञापन में मेरा फ़ोटो थोड़ा संजीदा वाला लगाना । पिछली बार किसान आंदोलन के दौरान ध्यान नही दिया था ...।
        शांत मन से मुखिया जी ने दरबार बर्खास्त किया और अंदर वाले कमरे का रुख कर लिया और साहब अपने मैनेजमेंट में जुट गए ।
     बाकी गांव में महिलाएँ डरी सहमी सिर पर कपड़ा बांधे घर के बाहर हाथों के छापे और नींबू मिर्ची लगाकर चोटी कटुआ से बचने में जुटी हैं और मर्द हाथ में डंडा थामे चौकीदारी में व्यस्त...

Tuesday, August 1, 2017

मुखिया जी और माई का लाल

                      चंद दिन पहले की ही बात है जब मुखिया जी ने सख्ती दिखाते हुए बडा भारी ऐलान किया था । मंच से ताबड़तोड़ बोलते हुए मुखिया जी ने साफ साफ कहा था कि लंबित राजस्व के प्रकरण तत्काल न निपटे तो जिले के साहब को उल्टा लटका दिया जाएगा...।
मुखिया जी के शब्दों में कठोरता थी तो चेहरे पर आरपार वाले भाव ...। मुखिया जी कई बार चेता चुके थे कि उन्होंने जो कह दिया वो फिर कोई 'माई का लाल' नही बदल सकता'...।
इधर मुखिया जी ने ऐलान किया उधर दूसरे दिन अलसुबह ही जिलों के कलेक्टर कार्यालय में मजबूत 'रस्सी' की व्यवस्था कर दी गई । पीडब्ल्यूडी के अफसरान ने तत्काल दौरा करके कलेक्टर कार्यालय की छत का निरीक्षण भी कर लिया कि साहब के लटकने का भार यह छत सह पाएगी या नही ? पीडब्ल्यूडी के अफसर भी छत की मजबूती को लेकर थोड़े डरे थे क्योंकि उनके ही देख रेख में कलेक्टर कार्यालय का 'घूस-निर्माण' हुआ था । मौका देख आनन फानन में नेताओं ने भी अपने चेलों की संविदा पर नियुक्ति करवा डाली । यह नव निर्मित पद था 'सालक' का ....। 'सालक' बोले तो 'साहब लटकाओ कर्मी' ...। खास फोन दिया गया 'सालक' को जिस पर मुखिया जी शिकायत पाते ही सीधे लटकाने का आदेश जारी करेंगे । सत्ता पक्ष से जुड़े विशेष संगठन के पदाधिकारियों ने भी तैयारियों का जायजा लेकर महाराष्ट्र के बड़े शहर को अपनी रपट भेज दी ।
कई साल से कलक्टर कार्यालय में सेवाएं दे रहा प्यून भी नही चूका । उसने भी अपने बेरोजगार बेटे के लिए स्टार्टअप प्लान कर लिया । जब 'साहब' उल्टे लटके रहेंगे तो वह चेम्बर का दरवाजा थोड़ा सा खोलकर आम लोगो को नज़ारा दिखाएगा और उसके एवज़ में 10 - 10 रुपए वसूलेगा । किसान भी खुश चलो मुखिया जी सालों बाद ही सही लालफीताशाही पर लगाम कसने वाले है । बोले तो कम से कम मप्र में तो अच्छे दिन आने वाले हैं ....।
जिले में तैनात 'साहब' लोग कई बार मुखिया जी की सख्ती का सख्तपन देख चुके थे इसलिए ऐलान को अपने दिमाग के 'लान' में आने ही नही दिया । लेकिन हो रही तैयारियों,सत्ता से जुड़े खास संगठन और किसानो की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अपनी एक फीसदी चिंता से 'बड़े साहब' को अवगत करा दिया ।
जिले के साहबों को तुरंत ही 'माई का लाल' मिल गया । राजधानी में बैठें बड़े साहब ने बैठक बुलाई और चाय नाश्ते के लुत्फ के बीच उस एक फीसदी चिंता को भी शांत कर दिया । मुस्कराते हुए बडे साहब ने औपचारिक हुक्म सुनाया कि दो महीनों में सारे लम्बित मसलों को निपटाया जाए । मीटिंग ओवर....मुस्कराहट ठहाके में बदल गई ।
बेचारे किसानों से लेकर प्यून के स्टार्टअप पर पानी फिर गया । 'साहब' लोग मीटिंग खत्म करके राजधानी के सबसे महंगे मॉल में दाखिल हो गए खरीददारी के लिए । मुखिया जी अभी भी राजधानी से दूर एक गांव में अपने कड़क मिज़ाज़ का भाषण पेले जा रहे हैं ।

Saturday, July 29, 2017

भाषण,सपनें और हक़ीकत

“गुलाबचंद” .... यही नाम था इस नौजवान का | “गुल्लू” से शुरू हुई जिन्दगी ‘गुलाब” से होती हुई बड़ी जल्दी “गुलाब चंद” तक आ पहुंची | गुलाब चंद के हाथो में इंजीनियरिंग की डिग्री फडफडा रही थी तो दिल में भविष्य के सपनें कुलांचे मार रहे थे | गुलाब ही नहीं पिता मेहलू को भी भरोसा था कि “मामा” के राज़ में सपनों को पंख देना आसान है | जूते चप्पल की मरम्मत करते हुए बेटे के सुनहरे भविष्य का सपना गढ़ता चला गया | 
कुछ महीनों पहले ही तो “मामा” आए थे गाँव में | खूब जोरदार इस्तकबाल हुआ था | मेहलू भी पीछे न था | मेहलू ने अपनी दुकान की छुट्टी कर दी | मंच से मामा ने जैसे ही कहा कि “ मेरे भांजे – भांजियों चिंता मत करना ..तुम्हारे मामा की सरकार है ...स्वरोज़गार के लिए बिना गारंटी के सस्ता लोन दूंगा” | सबसे तेज़ ताली की आवाज मेहलू की थी | आज तो पैर जमीन पर नहीं थे उसके | सपना था कि बेटा कोई बड़ा उद्योग खड़ा करे | गुलाब चंद ने भी अपने पिता के तरह बड़ा सा जूते चप्पल बनाने का कारखाना आँखों में बसा रखा था |
डिग्री थामे गुलाब बड़े ही धाक और भरोसे से बैंक की दहलीज पर पहुंचा | मेहलू तो बस बेकरार था कि बस शाम तक गुलाब बैंक से लोन का चेक थामे ही लौटेगा | आज से इस काम से मुक्ति अब वह भी शान से जिन्दगी गुजर बसर होगी | बार बार दुकान में लगे ‘’मामा’’ के पोस्टर को देखकर हर्षित हो जाता और कान में ‘’ तुम्हारे मामा की सरकार है’’ शब्द गूंजने लगते |
उत्साहित-विश्वास से लबरेज़ गुलाब ने बैंक मैनेजर को अपने सारे ज़रूरी कागजात का पुलिंदा पकड़ा दिया | मैनेजर साहब ने कागज देखने का ज़हमत भी न उठाई और बाहर वाले चेम्बर में बैठे शर्मा जी से मिलने का हुक्म सुना दिया | शर्मा जी आज फुर्सत में न थे | 15 दिन बाद आने की बात कह चाय की दुकान की राह पकड ली |
15 दिन बीते और गुलाबचंद बैंक में जा धमका | लेकिन कभी यह कमी तो कभी वह कमी | कभी गारंटी की मांग तो कभी और कोई बहाना | अगले 4 महीने तक बैंक और घर की राह,यही दिनचर्या थी गुलाब की | अंत में बैंक ने गुलाब चंद को शुक्रिया कहकर फायनली बाहर का रास्ता दिखा दिया | मेहलू का पारा आसमान पर | 'मामा' ने कहा था ..ऐसा हो ही नहीं सकता | गुलाब की मनाही की बाबजूद मेहलू बैंक जा धमका ...मैनेजर ने साफ़ साफ़ कह दिया “हम तो लोन नही दे सकते ..मामा से ही ले लो”
झटका था लेकिन भरोसा अभी भी किसी कोने में अडा था | तहसीलदार साहब से लेकर कलेक्टर और विधायक जी तक मेहलू ने कदम रगड़े लेकिन सभी माननीय ‘’आवेदन लेकर आश्वासन’’ की पुडिया निशुल्क पकडाते रहे | गुजरते वक्त और आश्वासन से बनी झिडकियों ने मेहलू को भाषणों और राजनीति की हक़ीकत समझा दी | सपनों को ताक पर रख जैसे तैसे हाथ पैर जोड़कर मेहलू ने गुलाबचंद की नौकरी पटेल साहब के ट्रेक्टर शो रूम पर लगवा दी | गुलाबचंद भी सालों के पाले मुगालते को छोड़कर दो जून की जद्दोजहद में जुट गया |
मेहलू फिर से अपने पुश्तैनी काम में मन मार कर जुट गया | पोस्टर आज भी लगा था | बीच से फट कर फडफडा रहा था लेकिन अब मेहलू का ध्यान पोस्टर पर नहीं बल्कि जूतों पर था | और टीव्ही पर विज्ञापन चीख रहा था ..’’मामा बैठा है मेरे भांजे-भांजियो कोई दिक्कत नही होने दूंगा’’

Monday, July 24, 2017

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय और चूहों का सुरक्षित ठिकाना

                                  शहर के  चूहों की चुहलबाजी बंद थी | परेशान कि रहने का कोई सुरक्षित ठौर ठिकाना न था | बैठक हुई ठिकाने को लेकर | बुजुर्ग चूहें सोच सोच कर हालाकान लेकिन हल न था | तभी आवारा छिछोरे टाइप चूहे ने बिन मांगी सलाह देते हुए चलती बैठक में अपनी भी मौजूदगी दर्ज करा दी | चूहे ने दमदार आवाज में कहा कि उसके पास एक जगह है जो बीते तीन साल से सुनसान और उजाड़ हालत में है और अगले एक साल तक भी रौनक की कोई आशा नही |  

   बूढ़े चूहे चौंक गए | सवाल आता उससे पहले ही गर्व से सीना फुलाते हुए जवान चूहे ने जबाब भी सभा की ओर उछाल दिया ..’प्रदेश कांग्रेस कार्यालय’ | बुजुर्ग चूहे सन्न रह गए | वाकई छिछोरे ने छक्का मार दिया | लोकसभा चुनाव के बाद यह कार्यालय कभी कभार ही रोशन हुआ वर्ना ज्यादातर तो दीवारें आपस में ही बतियाती रहती हैं |

  तभी एक बुजुर्ग चूहे ने सवाल दे मारा | सुना है दिग्गी राजा मैदान में उतरने वाले है तो ज़ाहिर है फिर हमें जगह बदलनी पड़ सकती हैं | उत्तर आया जवान चूहे की तरफ से ‘देखते जाओ ..सब आएंगे लेकिन अपनों के द्वारा ही लौटा भी दिए जाएंगे | मुख्यमंत्री की कुर्सी का अरमान सब पाले है | एकाधिकार की मंशा चरम पर है | हालात यह है कि अपना दही जमे या या न जमे लेकिन दूसरे का तैयार रायता ज़रूर फैलना चाहिए’ |

    जवानी से भरपूर चूहा आज तो लग रहा था कि थमेगा नही पूरा ज्ञान उंडेल देगा | खैर चूहे ने ज्ञान को आगे बढाते हुए कहा ‘भैया इनसे न हो पाएगा ....अब आप ही देखो जितनी दिशाएं उतने गुट | हार के बाद भी जीत हो या न हो लेकिन सामने वाला गुट आगे न आ पाए’ | चूहे ने पहलू  बदलते हुए अपनी बात को ज़ारी रखा ..’कोई भी महारथी टिक पाया ?...जिनको पार्टी की जिम्मेदारी मिली है वो ‘गुलचुप’ ...मतलब की होना या न होना बराबर | चुनाव की आहट के साथ छिंदवाडा के अरमान जागे लेकिन दिल्ली और नेशनल हाइवे से लगे क्षेत्रों ने ही हवा निकाल दी | केंद्र में बेराजगार होने के बाद महाराजा साहब के अरमान जागे थे लेकिन क्या हुआ चंद दिन में ही अपनी रियासत की ओर कूच कर गए | अब राजा साहब फिर अपने बीते दिनों का सपना लिए वापिसी करने का तानाबाना बन रहें है लेकिन दूसरे गुटों ने उस सपने में दखल देने की तैयारी भी कर ली होगी | और इन सबसे परे ‘पप्पू’ का ‘चप्पू’ भी चुनावी नैया को पार लगाने का काम संजीदगी से न कर पाया |

      जवान चूहा बोले जा रहा था लेकिन अब उसका स्वर गंभीर हो चुका था ...’स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि मजबूत विपक्ष हो’ लेकिन मप्र में तो लगता है कि विपक्ष को बजाय सत्ता पक्ष को नियंत्रित करने के आपस में ही लंगड़ी फ़साने में ज्यादा आनंद आता है | सरकार बेकाबू लेकिन आम मतदाताओ के पास विकल्प ही नहीं है | यह बिडम्बना है ...’

   खैर छोडो ..अब चूहे की आवाज में भरोसा था | देखो,चुनाव को अभी समय है तब तक यहाँ कोई नहीं झाँकने वाला | सब अपने अपने इलाकों में ‘रायता फैलाओ,प्रतियोगिता में व्यस्त रहेंगें | अब यह कार्यालय चुनाव में ही रोशन होगा तब तक के लिए हमारे सबसे सुरक्षित जगह यही है |

  आज छिछोरे और आवारा चूहे की सलाह और तर्क शक्ति के आगे सब बौने पड़ गए | सबको यह विकल्प बहुत भा गया | खुश खुश चूहे अपने सुरक्षित ठिकाने की ओर कूच करने लगे

Friday, July 21, 2017

मुखिया जी का ज्योतिष प्रेम

                   बड़ी झील से सटे पहाड़ी पर मौजूद एक बंगला । अलसुबह यह शानदार बंगला तो शांति पकड़े था लेकिन बंगले में मौजूद सेवादारों के चेहरे पर तनाव साफ साफ कबड्डी खेल रहा था । सबसे ज्यादा हैरान परेशान टेलीफोन ऑपरेटर था । बेचारगी के भाव से उसकी उंगलियां फोन पर चस्पा नम्बरों पर बार बार कूद रही थी लेकिन शायद इस मेहनत मशक्कत के बाबजूद वह मिले लक्ष्य को हासिल नही कर पा रहा था । भुनभुनाते हुए बोला "क्या यार रोज़ का यही पंगा" । टेलीफोन ऑपरेटर की भुनभुनाहट सेवादारों के कान में भी जगह बना गई । एक सेवादार ने भी ऑपरेटर के सुर में सुर मिलाया । "सही है यार,इस पंडित से कई बार बोला कि सुबह फोन पर ही रहा कर लेकिन रोज़ की उसकी यही नौटँकी है । बौखलाहट,भुनभुनाहट,तनाव का माहौल चरम पर था कि अचानक फोन की घण्टी खनखना उठी । गजब चमक थी फोन ऑपरेटर के चेहरे पर । भाव ऐसे कि भाई ने अभी अभी पाक को परास्त कर दिया हो । ऑपरेटर चीखता हुआ सा बोला "जल्दी आओ,पण्डित का फोन..." । घोषणा खत्म भी न हो पाई थी फोन का रिसीवर छीनकर मुख्य सेवादार बरस पड़ा "पण्डित घर बैठा के दम लोगे क्या ? छत्तीस दफा कह चुके है कि रोज़ सुबह पहले ‘’मुखिया जी " से बात कर लो फिर कुछ और करो । "तो साहब क्या 'नित्यकर्म' भी न करूँ, सुबह से तो आप लोग पकड़ लेते ...." । पंडित की बात विराम लेती उससे पहले से सेवादार ने रोक दिया "चलो छोड़ो सब, पहले मुखिया जी से बात करो" । तनाव बाहर का ही मेहमान न था बल्कि अंदर कमरे में मुखिया जी के साथ भी मौजूद था । पण्डित के इंतज़ार में मुखिया जी पहलू बदल बदल के सोफ़े पर बिछे कपड़े पर सैकड़ों सिकडुन पैदा कर चुके थे । 
"जय राम जी की पण्डित जी" आए हुए फोन पर मुखिया जी ने जबाब दिया । तो पंडित जी आज क्या बोल रहे हैं ग्रह नक्षत्र ? पण्डित के पास जबाब तैयार था ‘यजमान आज की पहली बैठक 11 बजे से रखना है’। यजमान दिल्ली थोड़ा परेशान कर सकती है लेकिन अनुष्ठान जारी है और "माह हो या फिर गोदी" फिलहाल कुछ न कर पाएंगे । और हां यजमान जो पुराना अनुष्ठान था वो समाप्त कर दूं क्योंकि काम तो हो ही गया या फिर सुप्रीमकोर्ट के मसले के बाद ? .... मुखिया जी ने चुप्पी तोड़ी ‘पण्डित जी दिल्ली पर नज़र रखो’। दो तीन अनुष्ठान करवा दो कुछ भी हो बाजी अपने ही पाले में रहना चाहिए । और "वो" वाला अनुष्ठान फैसले तक चलने दो । मुखिया जी ने राहत की सांस ली और फोन को शांत होने की अनुमति दे दी । तभी पत्नी कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए बोली "सूख के छुआरा हो रहे हो,मत करो चिंता बीते 12 सालों में कोई कुछ कर पाया " । आप तो राजयोग लेकर आए हो और बाकी सब पंडित जी पर छोड़ दो । 
क्या गलत है । मुखिया जी का सुखद अनुभव रहा है | देखो क्या बढ़िया समीकरण बैठे कि सिर पर अचानक ही पके आम की तरह " मुखिया का ताज" आ जमा । कई कद्दावरों ने "कुर्सी की कसक" दिखाई लेकिन ग्रह नक्षत्र,अनुष्ठान से ऐसा सबक सिखाया कि भाई लोग कही के न रहे । "माह - गोदी" सब पर कितने भारी हो लेकिन साहब की किस्मत के आगे तो "लल्ला लल्ला लोरी " गा उठते है ।
मुखिया जी ने तय कर लिया है कि अब उनके साथ साथ आम जन के बीच भी ज्योतिष को बढ़ावा दिया जाएगा | पहला फरमान भी जारी हो गया है कि अब डॉक्टर बाबू के साथ सरकारी अस्पतालों में "ज्योतिषाचार्य" भी बैठेंगे । ज्योतिषाचार्य कैंसर से लेकर नजला ज़ुकाम तक का इलाज अब "बुध,गुरु,शनि करेंगे । न दवा की ज़रूरत और न सर्जरी । अब तो अंगूठी,नींबू-मिर्च',रत्न,अनुष्ठान से सब मंगल होगा । ज्योतिषियों की कमी न पड़ जाए इसलिए इस विधा को पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ डिप्लोमा कोर्स भी शुरू करवा दिए हैं । अब चाय,पान की तरह ज्योतिष केंद्र हर जगह उपलब्ध होंगे । 
शुभ मुहूर्त आ चुका था जब साहब को देहरी पार करना था । साहब अपने कमरे से निकले और मुख्य द्वार पर नज़रें जमा दी । नीबू- मिर्ची ताज़े ताज़े लगे मुस्करा रहे थे । साहब ने तसल्ली की और मंत्र बुदबुदाते सरकारी गाड़ी में जा जमे । चालक ने भी स्टेयरिंग को प्रणाम करते हुए गाड़ी को मंजिल की ओर बढ़ा दिया । साहब थोड़ी जल्दी में थे । जल्दी जल्दी सारे काम मुहूर्त में जो निपटाने थे .....।

Saturday, July 15, 2017

मोदी,शाह और मामा का खौफ

मोदी,शाह और मामा का खौफ 😳
- आशीष चौबे
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      दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री निवास पर कुछ ज्यादा ही शांति थी । बन्द कमरे में मोदी और अमित शाह थे । मोदी अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक टक छत की ओर देखे जा रहे थे । शाह की आंखों में रोज़ की तरह चमक न थी बल्कि चिंता थी । सन्नाटे को तोड़ा आखिरकार अमित शाह ने .....

       कहा था न हल्के में न लो लेकिन आपको तो किसी के न सुनने की बीमारी सी है । लगभग चिड़चिढाते हुए अंदाज में शाह बोले ।

      पूरी ताकत लगाकर मोदी ने जुबान हिलाई और बुदबुदाते हुए बोले तो मुझे लगा ही नही कि वो ऐडा बन कर पेड़ा खा रहा है और फिर तुमने भी तो कहा था कि "मामू" ही है वो तो ।

"पहले मुझे भी लगा था कि वह "मामू" है लेकिन उमा के बाद जब कैलाश के अरमान ठंडे किए तब मुझे अहसास हो गया था कि चेला आडवाणी का है लेकिन गुरु से एक कदम आगे है" शाह ने मोदी को घूरते हुए कहा ।

    आप बस ताली पिटवाते रहो, विदेश घूमो,मित्रो मित्रो करो और इधर "मामू" ने उमा,राघवजी,कैलाश विजयवर्गीय,प्रभात झा,कमल पटेल,अजय विश्नोई,अनूप मिश्रा,लक्ष्मीकांत शर्मा,बाबूलाल गौर,सरताज सिंह और लो अब नरोत्तम मिश्रा का भी फट्टा साफ कर दिया"

   मोदी और असहज हो गए । सफेद दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए खरखराती आवाज में बड़बड़ाए तो उन सबके अरमान तो सीएम के थे इसलिए "मामू" के निशाने पर आ गए लेकिन मैं थोड़ी अब सीएम बनूँगा तो मुझे क्यों डरा रहे हो ।

    मोदी की इस बात पर शाह खीज से गए । अरे सीएम तो नही बनना लेकिन आपने ने भी उसके कम मज़े नही लिए और फिर वह अपने गुरु आडवाणी का बदला भी तो ले सकता है ।

    मोदी के कठोर चेहरे पर दयनीयता के भाव आ गए । सूख चुके होंठ पर जुबान फिराते हुए मोदी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन जुबान ने साथ नही दिया । बस जुबान से सिर्फ़ इतना ही निकल पाया "तो अब"

     तो अब क्या अपनी शीशे जैसी चमकती चांद पर हाथ फेरते हुए शाह ने बुरा सा मुँह बनाया ।

  कामाख्या वाले पंडित से बात की है । कल से अनुष्ठान करेगा । अपनी पत्नी को भी बोला है कि "मामी" को शीशे में उतारो । खास प्रमुख सचिव है प्रदेश के उनसे मिलने का समय भी लिया है"।

 बाकी हरि इच्छा......

  कमरे में सन्नाटा फिर से छा गया । मोदी सामने रखी शिव प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े खड़े थे और शाह अपने महंगे मोबाईल पर "मामा" के करीबियों के नम्बर तलाशने में जुट गए ।
नोट - पोस्ट के सभी पात्र काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है
😜😜🙏🏻😜😜

Wednesday, June 28, 2017

सियासत और मोहरे बनते हम

                          बीता सोमवार काफी मानसिक प्रताड़ना से भरा रहा | ईद के उत्सवी माहौल का मज़ा किरकिरा हो गया | जो हुआ उसकी कतई आशा न थी | इस प्रताड़ना के लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं | मेरी सार्वजनिक रूप से मांग है कि प्रताड्ना के दोषी मोदी जी को माफी मांगते हुए तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए | मसला छोटा होता तो शायद चुप हो कर सह जाता लेकिन जो हुआ वो बिलकुल तोड़ देने वाला अनुभव रहा है | 
दरअसल कुछ हुआ यूं कि सोमवार को ईद थी | ईद के पाक मौके पर हमारे मित्र एवं पड़ोसी श्री राजेश जैन साहब ने अचानक वाट्सएप के माध्यम से एक निजी संदेश ज्ञापित किया | संदेश का मजमून था कि वह सलमान खान की फिल्म ''ट्यूबलाइट'' दिखाना चाहते थे वह भी अपने खर्चे पर | लाज़मी था कि ''मुफ्त के चंदन,घिस मेरे नंदन'' को ध्यान में रखते हुए तत्काल हामी की मुहर हमने भी ठौंक दी | तय हुआ सभी मित्र सपरिवार शाम को ''ट्यूबलाइट'' की चमक देखने जाएँगे | हालांकि जाने से पहले कुछ अन्य मित्रों ने थोड़ा सतर्क भी किया लेकिन छोड़िए ''दान की बछिया के दांत कौन देखता है'' | ठीक 8 वाले शो में मित्र मंडली जम गई रूपहले पर्दे के सामने | चंद मिनिट ही बीते होंगे और सब पहलू बदलने लगे | अपना तो यह हाल हो गया कि आगे की फिल्म को झेलना ही भारी हो गया | हालात कुछ ऐसे बने कि फिल्म खत्म होते होते तक दिमाग जबाब दे गया | मन हुआ कि खूब गरियाया जाए सलमान और कबीर खान को लेकिन फिर अचानक दिमाग की बत्ती जली अरे यह निर्माता,निर्देशक या फिर नायक की गलती नहीं है बल्कि इसके लिए तो जिम्मेदार मोदी होंगे | सलमान मोदी के खासमखास में शुमार होते है | खूब पतंग उड़ाते है दोनों | अब जब सत्ता में मोदी है तो सल्लू इसका फायदा उठाकर अपनी फिसड्डी फिल्म को भी हम पर थोपना चाहते है | मोदी और सल्लू की मिलीजुली साजिश है | फिर क्या था पके पकाए हमने अपनी मांग को बुलंद कर दिया | 
पढ़कर आप सोच ज़रूर होंगे कि फिल्म को लेकर क्या मूर्खतापूर्ण आरोप है मोदी पर | सही है आप लेकिन आजकल स्थिति यही है | हर उतार चढ़ाव के लिए हम अपने हिसाब से किसी एक को जिम्मेदार ठहरा कर मामले से इतिश्री कर लेते है | दरअसल हम सियासत को समझते ही नही है बल्कि वो सब कुछ समझते है जो हमें नेता,मीडिया या फिर सोशल मीडिया समझाना चाहते है | आज हम सियासत की शतरंज पर चलने वाले मोहरे बन कर रह गए हैं | असलियत से परे महज अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मीडिया अपने लिहाज से खबर परोसता है तो नेता अपने हिसाब से तर्क बुनकर हमारे दिमाग में अपनी बात ठूंस देते है | बची खुची कमी सोशल मीडिया में प्रायोजित पोस्ट हमारे दिमाग में जड़ें जमा कर पूरा देती है | दाद देनी पड़ेगी हमारे दिमाग की कि बिना कोई तथ्य जाने,बिना कोई तर्क किए एक अच्छे श्रोता की तरह स्वीकार भी कर लेता है और फिर जो हमें ज्ञान दिया गया है उसी ज्ञान को हम भी आगे थोपना शुरू कर देते है | आश्चर्य है कई मासूम लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी को फांसी होती है तो अतिज्ञानियों के ज्ञान मे आकर हम भी आतंकियों के प्रति सहानभूति दिखाने लगते है | कश्मीर में पत्थरबाजो के बचाव में कई तर्क तो शहीदो के सम्मान में महज ''RIP'' लिखकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा लेते है | स्वछता अभियान हो या फिर डिजिटल इंडिया हम अपनी फर्ज़ को परे रख हर छोटे मोटे मसले के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ देते है | मसला कुछ भी हो सीधे सीधे मोदी जिम्मेदार ? केंद्र सरकार को हर मोर्चे पर असफल करार देने का सर्टिफिकेट तत्काल बांटने लगते है बजाय यह जानने के असलियत क्या है | जीएसटी को कितना समझा लोगो ने लेकिन विरोध मे पिले पड़ें है | यदि विरोध तर्क के साथ हो वाकई सार्थक नही तो निरर्थक | सिर्फ धर्म,जाति,वर्ग के आधार पर ही अपना विरोध बुलंद कर देना कोई समझदारी नही | इसका मतलब कतई यह नही कि पक्ष सही है या विपक्ष गलत | खेल दोनों खेल रहे हैं लेकिन मुद्दा यह है कि हम क्यों मोहरा बनते रहते है | हम वही क्यूँ सोचते- बोलते है जो हमारे दिमाग में भर दिया जाता है | क्यूँ सच को नही देखना चाहते | सही समय है अब सूचना विज्ञान चरम पर है | फायदा उठाएँ इस क्रांति का | स्थितियों और परिस्थितियों को ठीक तरह से बूझें | सच के साथ चलें और सच को ही आगे बढ़ाएँ | मजबूत लोकतन्त्र और विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि हम सब मोहरा न बनें बल्कि सजग भारतीय के रूप में अपनी महत्बपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराएं |

Saturday, June 24, 2017

किस्मत के आगे पस्त होते मुख्यमंत्री पद के दावेदार

शिवराज वाकई में तकदीर के शहंशाह है | शिवराज जी के अब तक के कार्यकाल में कई बार कुर्सी जाने की चर्चाओ का बाज़ार गर्म हुआ | कुर्सी के दावेदारों के नाम भी हवा मे तैरते रहे | लेकिन कमाल देखिए, जो नाम सबसे मजबूती से उभरा वह नेता शिवराज जी की किस्मत के आगे तनिक भी नही टिक पाया | वह नाम मुख्यधारा से सीधे हाशिए पर पहुँच गया या फिर अन्य किसी बजह से रेस से बाहर हो गया | मसलन लक्ष्मी कान्त शर्मा,कैलाश विजयवर्गीय,अनिल दवे,सुष्मा स्वराज आदि आदि ...| फिलहाल प्रदेश के सियासी हल्कों में फिर से नए समीकरण बन रहें हैं | ऐसे में मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा को एक वर्ग भविष्य का सीएम के रूप में देख रहा था | लीजिए.......क्लीन बोल्ड |
                                सूत्र कह रहे है कि जल्द बड़ा बदलाब होना तय है और कुछ नेताओ के नाम फिर फेहरिस्त में .... मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का ख्वाब बुन रहे इन दावेदारों पर खुदा थोड़ा रहम करे........

Wednesday, June 21, 2017

डिजीटल होता देश और सियासी सोच का दिवालियापन

                   ''मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है'' यह वो सरकारी विज्ञापन है जो रोज़ दीन दुनिया की खबर जानने की मंशा से टीव्ही चालू करते ही या फिर कुछ समय के भीतर ही सुनने - देखने को मिल जाता है | दिमाग अचानक खबरों से हटकर बदलते भारत को तलाशने में लग जाता है | चंद पल ही सही लेकिन लगता है कि मेरा देश काफी तेज़ी से बदल रहा है | ताज़ा ताज़ा देखे इस  विज्ञापन को लेकर दिमाग में बदलते भारत की तस्वीर उमड़ घुमड़ रही होती हैं कि अचानक ''स्वच्छ भारत,एक देश - एक कर,डिजिटल इंडिया,मेक इन इंडिया'' जैसे बहुत सारी योजनाओं के विज्ञापन में  अमिताभ बच्चन,शिल्पा शेट्टी,विद्या बालन,प्रियंका चौपडा जैसे बड़े सितारे अपनी  उपस्थिति दर्ज़ करते दिख जाते  है | यह  फिल्मी सितारे अजीब अजीब से चेहरे पर भाव लाकर देश मे क्रांतिकारी बदलाव के सत्यता पर मुहर लगाते है | हालांकि उनकी यह मुहर सरकारी कोष से दिये गए करोड़ो के फीस के बदले लगाई गई होती है | 

                      वाकई देश बदल गया ? देश में जगह जगह मोदी फेस्ट के दौरान दावे किए जा रहें है कि लोग अब  पेमेंट आन लाईन करने लगे हैं | कचरे  ने हरे नीले डस्टबिन की दिशा तय करना शुरू कर दिया है | युवा स्टार्टअप में जुट गए है | मेक इन इंडिया ने देश को तेज़ी से विकास के पंख दे दिए | विदेशों में भारत को लेकर सकारात्मक माहौल बना है | ठीक है साहब आपके दावे सर आँखों पर लेकिन क्या नेताओ की सोच में भी कोई अंतर आया ? उफ़्फ़,काश इन नेताओं की सोच बदलने का कोई  अभियान चला होता तो बेहतर था | यह विडम्बना ही है कि देश से जुड़े सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए गुण नही बल्कि जाति को लेकर सियासी दलों में तूफान मचा है |  देश के राष्ट्रपति पद के लिए नए समीकरण तय हो चले हैं |  कहा जा रहा है कि बीजेपी ने दलित उम्मीदवार को मैदान में उतार कर बड़ा दांव खेल दिया है तो विपक्ष इसके काट के लिए हैरान परेशान है | राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए क्या यही पैमाना बनकर रह गया है | किसी ने उम्मीदवार के गुण - दोष को लेकर चर्चा नही कि लेकिन जाति कार्ड को लेकर हलाकान | यह हमारे देश के राजनेताओ की सोच है | सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक को साधना ही प्राथमिकता है | देश डिजिटल होकर क्या विकास कर लेगा जब तक कि जात-पात,वर्ग,मजहब इस देश के रगों में विष बनकर दौड़ता रहेगा | इससे क्या वाकई में दलित समाज का भला हो जाएगा ? मेरे कई सहयोगी है जो सवर्ण समाज के नहीं है लेकिन उन्होने अच्छा मुकाम हासिल किया है | यह मुकाम आरक्षण व्यवस्था से नही बल्कि अपनी योग्यता से पाया है  | आरक्षण से वाकई में पिछड़ा,दलित - आदिवासी वर्ग  की प्रतिभाओ का अपमान ही हुआ है | आरक्षण को सियासी मुद्दा बनाकर सिर्फ और सिर्फ नेताओ  को ही लाभ मिला है | आरक्षण ने दलितों को उनकी प्रतिभा को उभारने के बजाय उल्टा अपना  मोहताज ज़रूर बना दिया |  क्यूँ सियासतदाँ महज़ अपनी हल्की सियासत के लिए इस देश की  ठोस विकास की राह को अवरुद्ध कर रहें हैं | ज़रा सोचिए,हमारे देश को विदेशी कभी सपरे - मदारी का देश कहते थे | इसमें बुरा मानने की क्या बात है | सच ही तो था पहले हम बंदर,साँप भालू का खेल दिखाते थे और समय बदलने के साथ अब आज हम  नेताओ की उँगलियों पर खेलने लगे हैं  | 

       ''सोच बदलिए,देश बदलेगा'' ...सिर्फ नेताओ को ही दोषी करार देना मुनासिब नहीं बल्कि हम सबको भी अपनी सोच बदलना होगी | तय कीजिए कि हमारी सकारात्मक सोच पर गंदी सियासी सोच हावी न पड़े | प्राथमिकता,प्रतिभा को ही मिले और अवसर उनको जो योग्य हो | तभी ''मेरा देश बदलेगा भी और आगे भी बढ़ेगा''

Tuesday, June 20, 2017

शिवराज और कुर्सी की कसमसाहट

कभी आमजन के दिलों के साथ मप्र की सत्ता पर राज करने वाले शिवराज का राज़ तो फिलहाल कायम है लेकिन लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से गिर रहा है | लग रहा है कि मानो  कुर्सी कसमसा रही है कुछ बड़े बदलाव के लिए | कुर्सी का कसमसाना आज का नही है बल्कि पहले भी  कई बार कसमसाहट का अहसास हुआ  लेकिन हर बार शिवराज ने  हत्थे पर अपना दम ऐसा दिखाया कि मजबूर कुर्सी स्थिर हो गई | इस बार की कसमसाहट आम नहीं है बल्कि बनते - बिगड़ते समीकरण बहुत कुछ बयां कर रहे हैं . | कुर्सी यूं ही परेशान नहीं बल्कि शिवराज कुर्सी की मनोदशा का अहसास नहीं कर पा रहे है | शिवराज  नवंबर 2005 में जब इस कुर्सी पर जमे तब किसी को कतई आशा नहीं थी कि इस 'मनचली' कुर्सी को थोड़ा भी काबू में कर पाएंगे | शिवराज ने अपना दम दिखाया और हर कयास को ठेंगा दिखाते हुए साबित कर दिया कि वह राजनीति की ''बाहुबली'' हैं | नम्र,सहज,मिलनसार  शिवराज ने  सभी दिग्गज नेताओ को कुर्सी से  परे कर दिया | बड़े बड़े राजनीतिज्ञ चाहे वह साध्वी उमा भारती,बाबूलाल गौर या फिर कोई और हों लेकिन शिवराज के आगे पानी भी नहीं मांग पाए | प्रदेश के कई बड़े नेताओं ने कुर्सी को बहलाना - फुसलाना चाहा लेकिन कुर्सी तो मानो शिवराज के वश में हो ....किसी को बैठाना तो दूर जी भर के देखने भी नहीं दिया | कुर्सी और शिवराज का आपसी प्यार गुजरते दिन,महीनो और सालों में कम नहीं हुआ बल्कि और गाढ़ा होता गया | 
                                                          वीते सालों में शिवराज के इश्क में डूबी इस कुर्सी को  झटका भी मिला | डंपर,अवैध उत्खनन,व्यापम घोटाला और भी कई झटके शिवराज ने अपनी महबूबा कुर्सी को दिए लेकिन कुर्सी ने साथ न छोड़ा  | बजह भी थी,शिवराज की आम लोगो के  बीच लोकप्रियता,लोगो के बीच सहज मौजूदगी और आला नेताओं को साधने की कला |  कुर्सी बदलाव भी चाहती तो क्या शिवराज के अलावा कोई और भी नहीं था,जो उसके काबिल हो | सारा कुछ तो ठीक ही था  लेकिन  इश्क मे मिले बड़े झटकों के बाद कुर्सी और शिवराज के बीच के संबंधो में थोड़ी खटास ज़रूर आ गई |  यहाँ शिवराज यह मान बैठे कि हालात कुछ भी हो लेकिन कुर्सी पर उनका और सिर्फ उनका ही हक है | शिवराज माने क्या बल्कि आसपास के अफसरों और सलाहकारों ने दिमाग में तरीके से ठूंस दिया कि शिवराज और कुर्सी का संबंध सात जन्मों का है | अतिविश्वास में आए शिवराज ने अपने शुभचिंतकों को किनारे कर दिया और अफसर आगे | सूबे में मतदाताओ को घोषणा के जो झुनझुने मुख्यमंत्री जी पकड़ाये उसे अब जनता भी झुनझूना कर हलाकान हो गई | झुनझुने में से  आवाज तो आती लेकिन काम अधूरे | मंत्री,विधायक नाराज़ कि अफसर उनकी सुनते ही नही तो  विकास के काम कैसे हो | कार्यकर्ता ने अपनी सुनवाई न होते देख निराश हो अपने घर का रुख कर लिया  | सबसे ज्यादा आहत हुआ किसान | कर्ज़ और प्रकृति की मार से टूटा  किसान हर जिम्मेदार चौखट पर दस्तक दे दे कर हाँफ गया लेकिन हासिल कुछ न हुआ | अल्बत्ता कही चुनावी माहौल  होता  या फिर सरकारी कार्यक्रम तो किसान पुत्र मुख्यमंत्री के भाषणो के द्वारा किसान को चाशनी में डूबे आश्वासन ज़रूर मिल जाते लेकिन ठोस परिणाम न मिले | 
                                       अन्नदाता की सहनशीलता का बांध जैसे ही टूटा मानो प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया हो | सरकार बेफिक्र बैठी चैन की बंसी बजा रही थी और दूसरी ओर अन्नदाता की हुंकार ने प्रदेश तो छोड़िए भोपाल से लेकर दिल्ली तक को हिला दिया | पक्ष हो या विपक्ष हर ओर भगदड़ | शिवराज के सलाहकारों ने  समझा कि हर बार की तरह मसला थोड़ा बहुत बांटकर निपट जाएगा लेकिन हर बार काठ की हांडी नही चढ़ती | मसले ने और उग्र रूप ले लिया | अकेले पड़े शिवराज ने सारी कवायद की स्थितियों को काबू करने की लेकिन मामला उल्टा और भारी पड़ गया | विपक्ष ने मौका भुनाना शुरू कर दिया | हर पारिस्थतियों में चाहे मन या बेमन से साथ देने वाली कुर्सी भी कसमसाने लगी | कुर्सी और शिवराज में  खटास बढ़ी  तो सूबे के कुछ महत्बकांक्षी नेताओ का कुर्सी के लिए अपना पुराना इश्क फिर जाग उठा |    दौड़ लगने लगी दिल्ली की | दावेदार जानते है कि  कुर्सी को अपने प्रेमजाल में  फाँसने से पहले उससे जुड़े नातेदारों से गलबहियाँ ज़रूरी हैं  | नए समीकरणों को अंजाम दिया जाने लगा | कुर्सी के दिल्ली वाले सम्बन्धियो को भी आभास हो गया कि कुर्सी ठीक सोच रही है | आने वाले चुनावों में व्यापम,किसानो आंदोलन ,मंत्री-विधायकों की नाराजगी और आम जनता के बीच लोकप्रियता का ग्राफ घटना जैसे कई बड़े मुद्दे कुर्सी को बेवफा कर सकते है | केंद्र में बैठे कुर्सी के संबंधियों ने बदलाव का मन बना लिया है | अब इंतज़ार है नए चेहरे और सही वक्त का | शिवराज भी मंझे खिलाड़ी है और आसानी से कुर्सी को अपने से दूर नही होने देंगे |  देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कुर्सी की कसमसाहट और सूबे के नेताओ की मंशा  पूरी होती है या शिवराज एक बार फिर कुर्सी को अपने प्रेमपाश मे फांसने में सफल हो जाते है |   

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...