Wednesday, June 28, 2017

सियासत और मोहरे बनते हम

                          बीता सोमवार काफी मानसिक प्रताड़ना से भरा रहा | ईद के उत्सवी माहौल का मज़ा किरकिरा हो गया | जो हुआ उसकी कतई आशा न थी | इस प्रताड़ना के लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं | मेरी सार्वजनिक रूप से मांग है कि प्रताड्ना के दोषी मोदी जी को माफी मांगते हुए तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए | मसला छोटा होता तो शायद चुप हो कर सह जाता लेकिन जो हुआ वो बिलकुल तोड़ देने वाला अनुभव रहा है | 
दरअसल कुछ हुआ यूं कि सोमवार को ईद थी | ईद के पाक मौके पर हमारे मित्र एवं पड़ोसी श्री राजेश जैन साहब ने अचानक वाट्सएप के माध्यम से एक निजी संदेश ज्ञापित किया | संदेश का मजमून था कि वह सलमान खान की फिल्म ''ट्यूबलाइट'' दिखाना चाहते थे वह भी अपने खर्चे पर | लाज़मी था कि ''मुफ्त के चंदन,घिस मेरे नंदन'' को ध्यान में रखते हुए तत्काल हामी की मुहर हमने भी ठौंक दी | तय हुआ सभी मित्र सपरिवार शाम को ''ट्यूबलाइट'' की चमक देखने जाएँगे | हालांकि जाने से पहले कुछ अन्य मित्रों ने थोड़ा सतर्क भी किया लेकिन छोड़िए ''दान की बछिया के दांत कौन देखता है'' | ठीक 8 वाले शो में मित्र मंडली जम गई रूपहले पर्दे के सामने | चंद मिनिट ही बीते होंगे और सब पहलू बदलने लगे | अपना तो यह हाल हो गया कि आगे की फिल्म को झेलना ही भारी हो गया | हालात कुछ ऐसे बने कि फिल्म खत्म होते होते तक दिमाग जबाब दे गया | मन हुआ कि खूब गरियाया जाए सलमान और कबीर खान को लेकिन फिर अचानक दिमाग की बत्ती जली अरे यह निर्माता,निर्देशक या फिर नायक की गलती नहीं है बल्कि इसके लिए तो जिम्मेदार मोदी होंगे | सलमान मोदी के खासमखास में शुमार होते है | खूब पतंग उड़ाते है दोनों | अब जब सत्ता में मोदी है तो सल्लू इसका फायदा उठाकर अपनी फिसड्डी फिल्म को भी हम पर थोपना चाहते है | मोदी और सल्लू की मिलीजुली साजिश है | फिर क्या था पके पकाए हमने अपनी मांग को बुलंद कर दिया | 
पढ़कर आप सोच ज़रूर होंगे कि फिल्म को लेकर क्या मूर्खतापूर्ण आरोप है मोदी पर | सही है आप लेकिन आजकल स्थिति यही है | हर उतार चढ़ाव के लिए हम अपने हिसाब से किसी एक को जिम्मेदार ठहरा कर मामले से इतिश्री कर लेते है | दरअसल हम सियासत को समझते ही नही है बल्कि वो सब कुछ समझते है जो हमें नेता,मीडिया या फिर सोशल मीडिया समझाना चाहते है | आज हम सियासत की शतरंज पर चलने वाले मोहरे बन कर रह गए हैं | असलियत से परे महज अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मीडिया अपने लिहाज से खबर परोसता है तो नेता अपने हिसाब से तर्क बुनकर हमारे दिमाग में अपनी बात ठूंस देते है | बची खुची कमी सोशल मीडिया में प्रायोजित पोस्ट हमारे दिमाग में जड़ें जमा कर पूरा देती है | दाद देनी पड़ेगी हमारे दिमाग की कि बिना कोई तथ्य जाने,बिना कोई तर्क किए एक अच्छे श्रोता की तरह स्वीकार भी कर लेता है और फिर जो हमें ज्ञान दिया गया है उसी ज्ञान को हम भी आगे थोपना शुरू कर देते है | आश्चर्य है कई मासूम लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी को फांसी होती है तो अतिज्ञानियों के ज्ञान मे आकर हम भी आतंकियों के प्रति सहानभूति दिखाने लगते है | कश्मीर में पत्थरबाजो के बचाव में कई तर्क तो शहीदो के सम्मान में महज ''RIP'' लिखकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा लेते है | स्वछता अभियान हो या फिर डिजिटल इंडिया हम अपनी फर्ज़ को परे रख हर छोटे मोटे मसले के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ देते है | मसला कुछ भी हो सीधे सीधे मोदी जिम्मेदार ? केंद्र सरकार को हर मोर्चे पर असफल करार देने का सर्टिफिकेट तत्काल बांटने लगते है बजाय यह जानने के असलियत क्या है | जीएसटी को कितना समझा लोगो ने लेकिन विरोध मे पिले पड़ें है | यदि विरोध तर्क के साथ हो वाकई सार्थक नही तो निरर्थक | सिर्फ धर्म,जाति,वर्ग के आधार पर ही अपना विरोध बुलंद कर देना कोई समझदारी नही | इसका मतलब कतई यह नही कि पक्ष सही है या विपक्ष गलत | खेल दोनों खेल रहे हैं लेकिन मुद्दा यह है कि हम क्यों मोहरा बनते रहते है | हम वही क्यूँ सोचते- बोलते है जो हमारे दिमाग में भर दिया जाता है | क्यूँ सच को नही देखना चाहते | सही समय है अब सूचना विज्ञान चरम पर है | फायदा उठाएँ इस क्रांति का | स्थितियों और परिस्थितियों को ठीक तरह से बूझें | सच के साथ चलें और सच को ही आगे बढ़ाएँ | मजबूत लोकतन्त्र और विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि हम सब मोहरा न बनें बल्कि सजग भारतीय के रूप में अपनी महत्बपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराएं |

Saturday, June 24, 2017

किस्मत के आगे पस्त होते मुख्यमंत्री पद के दावेदार

शिवराज वाकई में तकदीर के शहंशाह है | शिवराज जी के अब तक के कार्यकाल में कई बार कुर्सी जाने की चर्चाओ का बाज़ार गर्म हुआ | कुर्सी के दावेदारों के नाम भी हवा मे तैरते रहे | लेकिन कमाल देखिए, जो नाम सबसे मजबूती से उभरा वह नेता शिवराज जी की किस्मत के आगे तनिक भी नही टिक पाया | वह नाम मुख्यधारा से सीधे हाशिए पर पहुँच गया या फिर अन्य किसी बजह से रेस से बाहर हो गया | मसलन लक्ष्मी कान्त शर्मा,कैलाश विजयवर्गीय,अनिल दवे,सुष्मा स्वराज आदि आदि ...| फिलहाल प्रदेश के सियासी हल्कों में फिर से नए समीकरण बन रहें हैं | ऐसे में मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा को एक वर्ग भविष्य का सीएम के रूप में देख रहा था | लीजिए.......क्लीन बोल्ड |
                                सूत्र कह रहे है कि जल्द बड़ा बदलाब होना तय है और कुछ नेताओ के नाम फिर फेहरिस्त में .... मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का ख्वाब बुन रहे इन दावेदारों पर खुदा थोड़ा रहम करे........

Wednesday, June 21, 2017

डिजीटल होता देश और सियासी सोच का दिवालियापन

                   ''मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है'' यह वो सरकारी विज्ञापन है जो रोज़ दीन दुनिया की खबर जानने की मंशा से टीव्ही चालू करते ही या फिर कुछ समय के भीतर ही सुनने - देखने को मिल जाता है | दिमाग अचानक खबरों से हटकर बदलते भारत को तलाशने में लग जाता है | चंद पल ही सही लेकिन लगता है कि मेरा देश काफी तेज़ी से बदल रहा है | ताज़ा ताज़ा देखे इस  विज्ञापन को लेकर दिमाग में बदलते भारत की तस्वीर उमड़ घुमड़ रही होती हैं कि अचानक ''स्वच्छ भारत,एक देश - एक कर,डिजिटल इंडिया,मेक इन इंडिया'' जैसे बहुत सारी योजनाओं के विज्ञापन में  अमिताभ बच्चन,शिल्पा शेट्टी,विद्या बालन,प्रियंका चौपडा जैसे बड़े सितारे अपनी  उपस्थिति दर्ज़ करते दिख जाते  है | यह  फिल्मी सितारे अजीब अजीब से चेहरे पर भाव लाकर देश मे क्रांतिकारी बदलाव के सत्यता पर मुहर लगाते है | हालांकि उनकी यह मुहर सरकारी कोष से दिये गए करोड़ो के फीस के बदले लगाई गई होती है | 

                      वाकई देश बदल गया ? देश में जगह जगह मोदी फेस्ट के दौरान दावे किए जा रहें है कि लोग अब  पेमेंट आन लाईन करने लगे हैं | कचरे  ने हरे नीले डस्टबिन की दिशा तय करना शुरू कर दिया है | युवा स्टार्टअप में जुट गए है | मेक इन इंडिया ने देश को तेज़ी से विकास के पंख दे दिए | विदेशों में भारत को लेकर सकारात्मक माहौल बना है | ठीक है साहब आपके दावे सर आँखों पर लेकिन क्या नेताओ की सोच में भी कोई अंतर आया ? उफ़्फ़,काश इन नेताओं की सोच बदलने का कोई  अभियान चला होता तो बेहतर था | यह विडम्बना ही है कि देश से जुड़े सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए गुण नही बल्कि जाति को लेकर सियासी दलों में तूफान मचा है |  देश के राष्ट्रपति पद के लिए नए समीकरण तय हो चले हैं |  कहा जा रहा है कि बीजेपी ने दलित उम्मीदवार को मैदान में उतार कर बड़ा दांव खेल दिया है तो विपक्ष इसके काट के लिए हैरान परेशान है | राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए क्या यही पैमाना बनकर रह गया है | किसी ने उम्मीदवार के गुण - दोष को लेकर चर्चा नही कि लेकिन जाति कार्ड को लेकर हलाकान | यह हमारे देश के राजनेताओ की सोच है | सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक को साधना ही प्राथमिकता है | देश डिजिटल होकर क्या विकास कर लेगा जब तक कि जात-पात,वर्ग,मजहब इस देश के रगों में विष बनकर दौड़ता रहेगा | इससे क्या वाकई में दलित समाज का भला हो जाएगा ? मेरे कई सहयोगी है जो सवर्ण समाज के नहीं है लेकिन उन्होने अच्छा मुकाम हासिल किया है | यह मुकाम आरक्षण व्यवस्था से नही बल्कि अपनी योग्यता से पाया है  | आरक्षण से वाकई में पिछड़ा,दलित - आदिवासी वर्ग  की प्रतिभाओ का अपमान ही हुआ है | आरक्षण को सियासी मुद्दा बनाकर सिर्फ और सिर्फ नेताओ  को ही लाभ मिला है | आरक्षण ने दलितों को उनकी प्रतिभा को उभारने के बजाय उल्टा अपना  मोहताज ज़रूर बना दिया |  क्यूँ सियासतदाँ महज़ अपनी हल्की सियासत के लिए इस देश की  ठोस विकास की राह को अवरुद्ध कर रहें हैं | ज़रा सोचिए,हमारे देश को विदेशी कभी सपरे - मदारी का देश कहते थे | इसमें बुरा मानने की क्या बात है | सच ही तो था पहले हम बंदर,साँप भालू का खेल दिखाते थे और समय बदलने के साथ अब आज हम  नेताओ की उँगलियों पर खेलने लगे हैं  | 

       ''सोच बदलिए,देश बदलेगा'' ...सिर्फ नेताओ को ही दोषी करार देना मुनासिब नहीं बल्कि हम सबको भी अपनी सोच बदलना होगी | तय कीजिए कि हमारी सकारात्मक सोच पर गंदी सियासी सोच हावी न पड़े | प्राथमिकता,प्रतिभा को ही मिले और अवसर उनको जो योग्य हो | तभी ''मेरा देश बदलेगा भी और आगे भी बढ़ेगा''

Tuesday, June 20, 2017

शिवराज और कुर्सी की कसमसाहट

कभी आमजन के दिलों के साथ मप्र की सत्ता पर राज करने वाले शिवराज का राज़ तो फिलहाल कायम है लेकिन लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से गिर रहा है | लग रहा है कि मानो  कुर्सी कसमसा रही है कुछ बड़े बदलाव के लिए | कुर्सी का कसमसाना आज का नही है बल्कि पहले भी  कई बार कसमसाहट का अहसास हुआ  लेकिन हर बार शिवराज ने  हत्थे पर अपना दम ऐसा दिखाया कि मजबूर कुर्सी स्थिर हो गई | इस बार की कसमसाहट आम नहीं है बल्कि बनते - बिगड़ते समीकरण बहुत कुछ बयां कर रहे हैं . | कुर्सी यूं ही परेशान नहीं बल्कि शिवराज कुर्सी की मनोदशा का अहसास नहीं कर पा रहे है | शिवराज  नवंबर 2005 में जब इस कुर्सी पर जमे तब किसी को कतई आशा नहीं थी कि इस 'मनचली' कुर्सी को थोड़ा भी काबू में कर पाएंगे | शिवराज ने अपना दम दिखाया और हर कयास को ठेंगा दिखाते हुए साबित कर दिया कि वह राजनीति की ''बाहुबली'' हैं | नम्र,सहज,मिलनसार  शिवराज ने  सभी दिग्गज नेताओ को कुर्सी से  परे कर दिया | बड़े बड़े राजनीतिज्ञ चाहे वह साध्वी उमा भारती,बाबूलाल गौर या फिर कोई और हों लेकिन शिवराज के आगे पानी भी नहीं मांग पाए | प्रदेश के कई बड़े नेताओं ने कुर्सी को बहलाना - फुसलाना चाहा लेकिन कुर्सी तो मानो शिवराज के वश में हो ....किसी को बैठाना तो दूर जी भर के देखने भी नहीं दिया | कुर्सी और शिवराज का आपसी प्यार गुजरते दिन,महीनो और सालों में कम नहीं हुआ बल्कि और गाढ़ा होता गया | 
                                                          वीते सालों में शिवराज के इश्क में डूबी इस कुर्सी को  झटका भी मिला | डंपर,अवैध उत्खनन,व्यापम घोटाला और भी कई झटके शिवराज ने अपनी महबूबा कुर्सी को दिए लेकिन कुर्सी ने साथ न छोड़ा  | बजह भी थी,शिवराज की आम लोगो के  बीच लोकप्रियता,लोगो के बीच सहज मौजूदगी और आला नेताओं को साधने की कला |  कुर्सी बदलाव भी चाहती तो क्या शिवराज के अलावा कोई और भी नहीं था,जो उसके काबिल हो | सारा कुछ तो ठीक ही था  लेकिन  इश्क मे मिले बड़े झटकों के बाद कुर्सी और शिवराज के बीच के संबंधो में थोड़ी खटास ज़रूर आ गई |  यहाँ शिवराज यह मान बैठे कि हालात कुछ भी हो लेकिन कुर्सी पर उनका और सिर्फ उनका ही हक है | शिवराज माने क्या बल्कि आसपास के अफसरों और सलाहकारों ने दिमाग में तरीके से ठूंस दिया कि शिवराज और कुर्सी का संबंध सात जन्मों का है | अतिविश्वास में आए शिवराज ने अपने शुभचिंतकों को किनारे कर दिया और अफसर आगे | सूबे में मतदाताओ को घोषणा के जो झुनझुने मुख्यमंत्री जी पकड़ाये उसे अब जनता भी झुनझूना कर हलाकान हो गई | झुनझुने में से  आवाज तो आती लेकिन काम अधूरे | मंत्री,विधायक नाराज़ कि अफसर उनकी सुनते ही नही तो  विकास के काम कैसे हो | कार्यकर्ता ने अपनी सुनवाई न होते देख निराश हो अपने घर का रुख कर लिया  | सबसे ज्यादा आहत हुआ किसान | कर्ज़ और प्रकृति की मार से टूटा  किसान हर जिम्मेदार चौखट पर दस्तक दे दे कर हाँफ गया लेकिन हासिल कुछ न हुआ | अल्बत्ता कही चुनावी माहौल  होता  या फिर सरकारी कार्यक्रम तो किसान पुत्र मुख्यमंत्री के भाषणो के द्वारा किसान को चाशनी में डूबे आश्वासन ज़रूर मिल जाते लेकिन ठोस परिणाम न मिले | 
                                       अन्नदाता की सहनशीलता का बांध जैसे ही टूटा मानो प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया हो | सरकार बेफिक्र बैठी चैन की बंसी बजा रही थी और दूसरी ओर अन्नदाता की हुंकार ने प्रदेश तो छोड़िए भोपाल से लेकर दिल्ली तक को हिला दिया | पक्ष हो या विपक्ष हर ओर भगदड़ | शिवराज के सलाहकारों ने  समझा कि हर बार की तरह मसला थोड़ा बहुत बांटकर निपट जाएगा लेकिन हर बार काठ की हांडी नही चढ़ती | मसले ने और उग्र रूप ले लिया | अकेले पड़े शिवराज ने सारी कवायद की स्थितियों को काबू करने की लेकिन मामला उल्टा और भारी पड़ गया | विपक्ष ने मौका भुनाना शुरू कर दिया | हर पारिस्थतियों में चाहे मन या बेमन से साथ देने वाली कुर्सी भी कसमसाने लगी | कुर्सी और शिवराज में  खटास बढ़ी  तो सूबे के कुछ महत्बकांक्षी नेताओ का कुर्सी के लिए अपना पुराना इश्क फिर जाग उठा |    दौड़ लगने लगी दिल्ली की | दावेदार जानते है कि  कुर्सी को अपने प्रेमजाल में  फाँसने से पहले उससे जुड़े नातेदारों से गलबहियाँ ज़रूरी हैं  | नए समीकरणों को अंजाम दिया जाने लगा | कुर्सी के दिल्ली वाले सम्बन्धियो को भी आभास हो गया कि कुर्सी ठीक सोच रही है | आने वाले चुनावों में व्यापम,किसानो आंदोलन ,मंत्री-विधायकों की नाराजगी और आम जनता के बीच लोकप्रियता का ग्राफ घटना जैसे कई बड़े मुद्दे कुर्सी को बेवफा कर सकते है | केंद्र में बैठे कुर्सी के संबंधियों ने बदलाव का मन बना लिया है | अब इंतज़ार है नए चेहरे और सही वक्त का | शिवराज भी मंझे खिलाड़ी है और आसानी से कुर्सी को अपने से दूर नही होने देंगे |  देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कुर्सी की कसमसाहट और सूबे के नेताओ की मंशा  पूरी होती है या शिवराज एक बार फिर कुर्सी को अपने प्रेमपाश मे फांसने में सफल हो जाते है |   

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...