Saturday, October 28, 2017

न मामा न ...आप इतने भी मामू नही ..

              मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमेरिका की धरती पर जाकर दावा ठोंक दिया कि हमारी सड़कें आपकी सड़कों से बेहतर ..| फिर क्या था ...पान की दुकान,मीडिया,सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों में पहले तो हंसी के फव्वारे फूटे और फिर शुरू हो गई मामू जान की खिंचाई | क्या वाकई शिवराज जी भावना में बहकर बोल गए ? यह भी बहुत संभव  है कि फिर मामा के दावे के पीछे कोई सियासी मकसद हो ... या फिर सलाहकारों के  अतिउत्साह की बजह से यह हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई | आधिकारिक ट्वीट ठोंकने के बाद दावे को सत्य साबित करने के मंशा  से तुलना करने वाले अच्छी और बुरी सड़कों के फोटो भी सोशल मीडिया के माध्यम से पेश कर दिए गए | सच को परे रखकर सलाहकार और समर्थक लगातार मुख्यमंत्री के दावे को लेकर उलजुलूल तर्क पेश करते रहे | विदेशी मीडिया ने भी शिवराज के दावे की पोल खोलना शुरू कर दिया | लगता है रायता बनाया या फिर बनवाया ही इसलिए था कि फैलाया जाए सो जमकर फ़ैल गया ..वो भी आशा से ज्यादा ..| लेकिन क्या अच्छे अच्छो को पानी पिलाकर सियासी गली के किनारे तक पहुंचा देने वाले शिवराज वाकई इतने भावुक हैं ? शिवराज कोई अधपके नेता तो है नहीं जो अपने दावों के मतलब को न समझ सकें ..| या फिर शिव अपने राज़ में इतने अलमस्त हो गए हैं कि अब सारा कुछ चंद सलाहकार ही बुन रहें है |  अंदरखाने से यह भी खबर आती है कि  सलाहकारों ने अपने निज हित में बनते समीकरणों को बैठाने के लिए शिव से जो चाहा मुंह से उगलवा दिया और जो मन किया वो करवा लिया | शिवराज अपने क़दमों को खींच कर ही चलते हैं और कभी जोश में आकर फ्रंट फुट पर आ भी गए .... तो मजाक ही बना | 
   नौकरी के दौरान कुछ साल शाजापुर में गुजरे | वहां एक थानेदार साहब से थोड़ी नजदीकी हो गई | छेड़े थे तो समय गुजारने के लिए थाना मुफीद जगह होती थी | गप्पों के साथ मुफ्त की चाय उड़ाने का मौका हमेशा खुला रहता था | गप्पों के साथ थोडा सा ध्यान थानेदार साहब के थानेदारी करने के अंदाज पर रहता था | सब ठीक ठाक और कोई मोटा आसामी जद में आ गया तो थानेदार साहब काफी सक्रियता दिखा देते थे लेकिन यदि मसला उलझ गया या फिर कही गिरफ्त में आया कोई उन पर ही भारी पड़ गया तो बिल अपने चेले चपाटों पर फटना तय | तब यह मसला समझ से परे होता था या फिर यूँ कहिए कि मसले को समझने की कोशिश ही न की ..| अब थानेदार साहब और उनकी थानेदारी रह रहकर याद आती है ...| तनिक और स्पष्टता की ओर बढ़ लिया जाए तो कहावत है 'ऐडा बनकर पेडा खाना' ... इतना तो कहा ही जा सकता है शिवराज कम से कम ऐडे तो नहीं हैं लेकिन कुछ मिलते जुलते अंदाज में पेडे ज़रूर खाते रहें हैं | संभव है कि सलाहकार बेचारे फ़ालतू में ही लक्ष्य बनते रहे हो जबकि खेल अपने मामू का ही हो  | कुछ अच्छा हुआ तो कोई बात नही लेकिन मसला फंसा तो सलाहकार का सिर है ही ठीकरा फोड़ने के लिए ..| 
   

No comments:

Post a Comment

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...