Sunday, August 6, 2017

नशा न करना,भैया


रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी आमद दर्ज कराने वाला था । बहनें हो या भाई सभी का रक्षा पर्व को लेकर उत्साह चरम पर था । नीलम तो इस त्यौहार के इंतज़ार में मानो पल पल गिन रही थी  । बहन की तरह गौरव भी अपनी छोटी बहन से कलाई पर राखी सजवाने को लेकर बेकरार हुआ जा रहा था । उम्र के लिहाज से दोनों भाई बहन के बीच महज़ दो साल का ही फासला था । हर बार भैया गौरव का चेहरा,राखी बंधवाते ही खिल उठता तो गौरव का दिया उपहार हाथ में आते ही नीलम तो उछल ही पड़ती । राखी का दिन तो बस धमाचौकड़ी में गुज़र जाता । आज के दिन पापा - मम्मी की तरफ़ से भी मस्ती के लिए पूरी छूट रहती थी ।
    वक्त गुज़रा, हालात बदले । गौरव एक निजी कंपनी में नौकरी करने लगा और नीलम अपने साजन के साथ ससुराल चली गई । राखी का पर्व अब भी आता था....खुशियों और प्यार को समेटे हुए । दोनों भाई बहन का उत्साह अब भी बचपन के दिनों की तरह ही बरकरार था ।
     गौरव नौकरी के बाद बाहरी दुनिया से ज्यादा जुड़ गया । माँ तो माँ थी लेकिन पापा काफी सख्त थे । गौरव ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली लेकिन बिना पिताज़ी के जानकारी के एक कदम भी चलने की भी अनुमति न थी । खैर अब नौकरी थी तो स्वतंत्रता भी पर मारने लगी । गौरव को लगा कि ' मानो जिंदगी ने तो अब आवाज दी है' । दोस्तों ने भी उसके शौक को हवा दी। । नशा अब गौरव की जिंदगी का का बड़ा हमसफ़र हो चला । वक्त न ठहरा ....बढ़ता चला गया । नशा,गौरव पर हावी हो गया । कंगालियत ने जिंदगी में दस्तक दे दी तो लगे हाथ सेहत ने भी विदाई की तैयारी कर ली । महज तीस साल की उम्र में 60 का नजर आने लगा था...गौरव ।
   नीलम को जब प्यारे भैया के हालात का पता चला तो वह तो टूट ही गई । पिताज़ी तो चल बसे थे और माँ गौरव को समझा समझा कर थक गई और आख़िरकार किस्मत का लिखा मानकर स्थितियों से समझौता कर लिया  ।
  भैया था उसका...एक खून.... कइयों साल जिंदगी के साथ जिए थे तो भला वह हाथ पर हाथ रख कैसे बैठ पाती । नीलम ने ठान लिया कि वह न कोई समझौता करेगी और न चुप रहेगी । बस इंतज़ार था तो राखी का ...। उसने तय किया कि वह पहली बार अपने भैया से राखी का तोहफ़ा मांग कर लेगी ।
   आ गई राखी । राखी की खुशी तो आज भी वही थी लेकिन नीलम की तो मानो आज परीक्षा की घड़ी थी । नीलम थाली सजा कर भैया गौरव के घर पहुंच गई । कलाई पर राखी सजी और नीलम ने अपनी तोहफे की मांग भैया को सुना दी ।
  'भैया...इस बार तोहफा जो मैं मांगू वो'....। गौरव के होंठो पर मुस्कान थिरक गई । लाड़ से बोला..'मांग मेरी बहना, जो चाहिए...। नीलम ने तुरंत ही अपनी मांग सुना दी....'भैया...आपने बिना मांगे मुझे आज तक सब कुछ दिया...हर खुशी का ध्यान रखा'....। लम्बी सांस लेते हुए नीलम रुंधे गले से बोली...'भैया,इस बार तोहफे में मुझे वादा चाहिए.....भैया आज से नशा नही'....।
     गौरव को लगा कि शब्द उसके मुँह में ही मानो जम गए हो । आंखे झुक गई और कंपकपाते हाथों से अपनी बहन का हाथ थाम लिया । गर्दन हामी के अंदाज में डोल गई । भाई - बहन के आंखों से आँसू ज़ार ज़ार बहे जा रहे थे । पास खड़ी माँ एक टक इस अपारिभषित प्यार को देखे जा रही थी......।
'नशा न करना,भैया'.....

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