Tuesday, June 20, 2017

शिवराज और कुर्सी की कसमसाहट

कभी आमजन के दिलों के साथ मप्र की सत्ता पर राज करने वाले शिवराज का राज़ तो फिलहाल कायम है लेकिन लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से गिर रहा है | लग रहा है कि मानो  कुर्सी कसमसा रही है कुछ बड़े बदलाव के लिए | कुर्सी का कसमसाना आज का नही है बल्कि पहले भी  कई बार कसमसाहट का अहसास हुआ  लेकिन हर बार शिवराज ने  हत्थे पर अपना दम ऐसा दिखाया कि मजबूर कुर्सी स्थिर हो गई | इस बार की कसमसाहट आम नहीं है बल्कि बनते - बिगड़ते समीकरण बहुत कुछ बयां कर रहे हैं . | कुर्सी यूं ही परेशान नहीं बल्कि शिवराज कुर्सी की मनोदशा का अहसास नहीं कर पा रहे है | शिवराज  नवंबर 2005 में जब इस कुर्सी पर जमे तब किसी को कतई आशा नहीं थी कि इस 'मनचली' कुर्सी को थोड़ा भी काबू में कर पाएंगे | शिवराज ने अपना दम दिखाया और हर कयास को ठेंगा दिखाते हुए साबित कर दिया कि वह राजनीति की ''बाहुबली'' हैं | नम्र,सहज,मिलनसार  शिवराज ने  सभी दिग्गज नेताओ को कुर्सी से  परे कर दिया | बड़े बड़े राजनीतिज्ञ चाहे वह साध्वी उमा भारती,बाबूलाल गौर या फिर कोई और हों लेकिन शिवराज के आगे पानी भी नहीं मांग पाए | प्रदेश के कई बड़े नेताओं ने कुर्सी को बहलाना - फुसलाना चाहा लेकिन कुर्सी तो मानो शिवराज के वश में हो ....किसी को बैठाना तो दूर जी भर के देखने भी नहीं दिया | कुर्सी और शिवराज का आपसी प्यार गुजरते दिन,महीनो और सालों में कम नहीं हुआ बल्कि और गाढ़ा होता गया | 
                                                          वीते सालों में शिवराज के इश्क में डूबी इस कुर्सी को  झटका भी मिला | डंपर,अवैध उत्खनन,व्यापम घोटाला और भी कई झटके शिवराज ने अपनी महबूबा कुर्सी को दिए लेकिन कुर्सी ने साथ न छोड़ा  | बजह भी थी,शिवराज की आम लोगो के  बीच लोकप्रियता,लोगो के बीच सहज मौजूदगी और आला नेताओं को साधने की कला |  कुर्सी बदलाव भी चाहती तो क्या शिवराज के अलावा कोई और भी नहीं था,जो उसके काबिल हो | सारा कुछ तो ठीक ही था  लेकिन  इश्क मे मिले बड़े झटकों के बाद कुर्सी और शिवराज के बीच के संबंधो में थोड़ी खटास ज़रूर आ गई |  यहाँ शिवराज यह मान बैठे कि हालात कुछ भी हो लेकिन कुर्सी पर उनका और सिर्फ उनका ही हक है | शिवराज माने क्या बल्कि आसपास के अफसरों और सलाहकारों ने दिमाग में तरीके से ठूंस दिया कि शिवराज और कुर्सी का संबंध सात जन्मों का है | अतिविश्वास में आए शिवराज ने अपने शुभचिंतकों को किनारे कर दिया और अफसर आगे | सूबे में मतदाताओ को घोषणा के जो झुनझुने मुख्यमंत्री जी पकड़ाये उसे अब जनता भी झुनझूना कर हलाकान हो गई | झुनझुने में से  आवाज तो आती लेकिन काम अधूरे | मंत्री,विधायक नाराज़ कि अफसर उनकी सुनते ही नही तो  विकास के काम कैसे हो | कार्यकर्ता ने अपनी सुनवाई न होते देख निराश हो अपने घर का रुख कर लिया  | सबसे ज्यादा आहत हुआ किसान | कर्ज़ और प्रकृति की मार से टूटा  किसान हर जिम्मेदार चौखट पर दस्तक दे दे कर हाँफ गया लेकिन हासिल कुछ न हुआ | अल्बत्ता कही चुनावी माहौल  होता  या फिर सरकारी कार्यक्रम तो किसान पुत्र मुख्यमंत्री के भाषणो के द्वारा किसान को चाशनी में डूबे आश्वासन ज़रूर मिल जाते लेकिन ठोस परिणाम न मिले | 
                                       अन्नदाता की सहनशीलता का बांध जैसे ही टूटा मानो प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया हो | सरकार बेफिक्र बैठी चैन की बंसी बजा रही थी और दूसरी ओर अन्नदाता की हुंकार ने प्रदेश तो छोड़िए भोपाल से लेकर दिल्ली तक को हिला दिया | पक्ष हो या विपक्ष हर ओर भगदड़ | शिवराज के सलाहकारों ने  समझा कि हर बार की तरह मसला थोड़ा बहुत बांटकर निपट जाएगा लेकिन हर बार काठ की हांडी नही चढ़ती | मसले ने और उग्र रूप ले लिया | अकेले पड़े शिवराज ने सारी कवायद की स्थितियों को काबू करने की लेकिन मामला उल्टा और भारी पड़ गया | विपक्ष ने मौका भुनाना शुरू कर दिया | हर पारिस्थतियों में चाहे मन या बेमन से साथ देने वाली कुर्सी भी कसमसाने लगी | कुर्सी और शिवराज में  खटास बढ़ी  तो सूबे के कुछ महत्बकांक्षी नेताओ का कुर्सी के लिए अपना पुराना इश्क फिर जाग उठा |    दौड़ लगने लगी दिल्ली की | दावेदार जानते है कि  कुर्सी को अपने प्रेमजाल में  फाँसने से पहले उससे जुड़े नातेदारों से गलबहियाँ ज़रूरी हैं  | नए समीकरणों को अंजाम दिया जाने लगा | कुर्सी के दिल्ली वाले सम्बन्धियो को भी आभास हो गया कि कुर्सी ठीक सोच रही है | आने वाले चुनावों में व्यापम,किसानो आंदोलन ,मंत्री-विधायकों की नाराजगी और आम जनता के बीच लोकप्रियता का ग्राफ घटना जैसे कई बड़े मुद्दे कुर्सी को बेवफा कर सकते है | केंद्र में बैठे कुर्सी के संबंधियों ने बदलाव का मन बना लिया है | अब इंतज़ार है नए चेहरे और सही वक्त का | शिवराज भी मंझे खिलाड़ी है और आसानी से कुर्सी को अपने से दूर नही होने देंगे |  देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कुर्सी की कसमसाहट और सूबे के नेताओ की मंशा  पूरी होती है या शिवराज एक बार फिर कुर्सी को अपने प्रेमपाश मे फांसने में सफल हो जाते है |   

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