Wednesday, June 21, 2017

डिजीटल होता देश और सियासी सोच का दिवालियापन

                   ''मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है'' यह वो सरकारी विज्ञापन है जो रोज़ दीन दुनिया की खबर जानने की मंशा से टीव्ही चालू करते ही या फिर कुछ समय के भीतर ही सुनने - देखने को मिल जाता है | दिमाग अचानक खबरों से हटकर बदलते भारत को तलाशने में लग जाता है | चंद पल ही सही लेकिन लगता है कि मेरा देश काफी तेज़ी से बदल रहा है | ताज़ा ताज़ा देखे इस  विज्ञापन को लेकर दिमाग में बदलते भारत की तस्वीर उमड़ घुमड़ रही होती हैं कि अचानक ''स्वच्छ भारत,एक देश - एक कर,डिजिटल इंडिया,मेक इन इंडिया'' जैसे बहुत सारी योजनाओं के विज्ञापन में  अमिताभ बच्चन,शिल्पा शेट्टी,विद्या बालन,प्रियंका चौपडा जैसे बड़े सितारे अपनी  उपस्थिति दर्ज़ करते दिख जाते  है | यह  फिल्मी सितारे अजीब अजीब से चेहरे पर भाव लाकर देश मे क्रांतिकारी बदलाव के सत्यता पर मुहर लगाते है | हालांकि उनकी यह मुहर सरकारी कोष से दिये गए करोड़ो के फीस के बदले लगाई गई होती है | 

                      वाकई देश बदल गया ? देश में जगह जगह मोदी फेस्ट के दौरान दावे किए जा रहें है कि लोग अब  पेमेंट आन लाईन करने लगे हैं | कचरे  ने हरे नीले डस्टबिन की दिशा तय करना शुरू कर दिया है | युवा स्टार्टअप में जुट गए है | मेक इन इंडिया ने देश को तेज़ी से विकास के पंख दे दिए | विदेशों में भारत को लेकर सकारात्मक माहौल बना है | ठीक है साहब आपके दावे सर आँखों पर लेकिन क्या नेताओ की सोच में भी कोई अंतर आया ? उफ़्फ़,काश इन नेताओं की सोच बदलने का कोई  अभियान चला होता तो बेहतर था | यह विडम्बना ही है कि देश से जुड़े सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए गुण नही बल्कि जाति को लेकर सियासी दलों में तूफान मचा है |  देश के राष्ट्रपति पद के लिए नए समीकरण तय हो चले हैं |  कहा जा रहा है कि बीजेपी ने दलित उम्मीदवार को मैदान में उतार कर बड़ा दांव खेल दिया है तो विपक्ष इसके काट के लिए हैरान परेशान है | राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए क्या यही पैमाना बनकर रह गया है | किसी ने उम्मीदवार के गुण - दोष को लेकर चर्चा नही कि लेकिन जाति कार्ड को लेकर हलाकान | यह हमारे देश के राजनेताओ की सोच है | सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक को साधना ही प्राथमिकता है | देश डिजिटल होकर क्या विकास कर लेगा जब तक कि जात-पात,वर्ग,मजहब इस देश के रगों में विष बनकर दौड़ता रहेगा | इससे क्या वाकई में दलित समाज का भला हो जाएगा ? मेरे कई सहयोगी है जो सवर्ण समाज के नहीं है लेकिन उन्होने अच्छा मुकाम हासिल किया है | यह मुकाम आरक्षण व्यवस्था से नही बल्कि अपनी योग्यता से पाया है  | आरक्षण से वाकई में पिछड़ा,दलित - आदिवासी वर्ग  की प्रतिभाओ का अपमान ही हुआ है | आरक्षण को सियासी मुद्दा बनाकर सिर्फ और सिर्फ नेताओ  को ही लाभ मिला है | आरक्षण ने दलितों को उनकी प्रतिभा को उभारने के बजाय उल्टा अपना  मोहताज ज़रूर बना दिया |  क्यूँ सियासतदाँ महज़ अपनी हल्की सियासत के लिए इस देश की  ठोस विकास की राह को अवरुद्ध कर रहें हैं | ज़रा सोचिए,हमारे देश को विदेशी कभी सपरे - मदारी का देश कहते थे | इसमें बुरा मानने की क्या बात है | सच ही तो था पहले हम बंदर,साँप भालू का खेल दिखाते थे और समय बदलने के साथ अब आज हम  नेताओ की उँगलियों पर खेलने लगे हैं  | 

       ''सोच बदलिए,देश बदलेगा'' ...सिर्फ नेताओ को ही दोषी करार देना मुनासिब नहीं बल्कि हम सबको भी अपनी सोच बदलना होगी | तय कीजिए कि हमारी सकारात्मक सोच पर गंदी सियासी सोच हावी न पड़े | प्राथमिकता,प्रतिभा को ही मिले और अवसर उनको जो योग्य हो | तभी ''मेरा देश बदलेगा भी और आगे भी बढ़ेगा''

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