Wednesday, August 9, 2017

बातें बनाओ,धन कमाओ- सरकार का नया नारा

 शिवराज जी ने जब नवम्बर 2005 में प्रदेश की सत्ता सम्हाली तो आम लोगो के 'भैया' थे । 'पांव पांव वाले भैया'...यह संबोधन तो लोगो के जुबान पर बरबस ही चला आता था । आम जन के करीबी विनम्र,सरल और सहज शिवराज कुछ साल में ही 'भैया' से 'मामा' के चोले में गढ़ गए । वक्त गुज़रा ...बहुत जल्द लोगो का मामा सरकारी चच्चाओं (अफसरान) के चक्रव्यूह में आ घिरा । चच्चाओं और लक्ष्मी का चक्कर यूँ चला कि 'मामा' प्रदेश के लोगो को 'मामू' बनाने में जुट गए ।
      'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ' के नारे से शुरू हुआ सिलसिला अब 'बातें बनाओ,धन कमाओ' के नारे पर आकर थम चला है ।
   शिवराज जी ने मुख्यमंत्री बनते ही एलान किया था कि मैं किसान पुत्र हूँ और मेरी सरकार किसानों की सरकार है । खेती को लाभ का धन्धा बनाने का झुनझुना किसानों को पकड़ाया । अन्नदाता ने किसान पुत्र पर पूरा भरोसा किया और ईमानदारी से झुनझुना कई सालों तक जमकर बजाया । झुनझुने में सिर्फ आबाज ही आती रही .....कब तक महज़ भरोसे के झुनझुनेे से जिंदगी कटती । निराश और लाचार 'अन्नदाता' आत्महत्या पर मजबूर होने लगा । लेकिन किसानों के दर्द से परे कृषि विकास की योजनाओं और मुआवजा के नाम पर भृष्ट्राचार की फसल जमकर लहलहाई । कुल जमा 'बात बनाओ,धन कमाओ' का ही नारा बुलंद हुआ ।
   मामा ने किसानों के साथ युवा रोज़गार को लेकर भी खूब थाप लगाई । बिडम्बना...स्वरोजगार में मदद दिलाने से लेकर नई नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराने तक के वादे की हवा निकल गई । न युवाओं को स्वरोजगार मिला और न नौकरी ....नसीब हुई तो सिर्फ बातें । मगर हां...पर्दे के पीछे युवाओं के लिए बनाई गई योजनाओं को ज़रूर पलीता लगा । व्यापम कांड करके तो सरकार ने अपना 'काम' और 'नाम' विश्वस्तरीय भृष्ट्राचार मामलों की फेहरिस्त में लिखवा लिया ।  कुल जमा यहां भी 'बातें बनाओ,धन कमाओ' को ही तबज्जो दी गई ।
 अवैध उत्खनन को लेकर तो क्या कहना । नर्मदा सेवा यात्रा का महाआयोजन हुआ ...माँ नर्मदा को बचाने के मकसद को लेकर...... लेकिन नदी संरक्षण तो छोड़िए उल्टा यात्रा के बाद नए और स्थान मिल गए नर्मदा की कोख को ज़ार ज़ार करने के लिए । यहां भी सेवा यात्रा के नाम पर खूब माल कटा । बातो का तड़का लगाकर यहां भी 'बातें बनाओ,धन कमाओ' पर जमकर अमल किया गया ।
  जम्बूरी मैदान और मुख्यमंत्री निवास में हुई पंचायतों  के नाम पर भी लाई लूटी । इन पंचायतों में जो घोषणाएं हुई उनमें से ज्यादातर घोषणा सरकारी फाइलों में दबी सिसक रहीं है लेकिन पंचायतों के तामझाम और आयोजन के नाम पर करोड़ो के बिल फटे । लब्बोलुबाब यही कि ' बात बनाओ,धन कमाओ' का नारा यहां भी प्राथमिकता पर था ।
   लगातार सामने आ रहे भृष्ट्राचार के कई मसले है जिनका हवाला देकर ढेरों कागजों को रंगा जा सकता है । विपक्ष के अभाव में सत्ता पक्ष बेलगाम है । मुख्यमंत्री जी भाषण कला में पारंगत है और इसका भरपूर लाभ भी उन्होंने लिया । लेकिन समझ आते हालातों ने सरकार के प्रति ऊब और नाराज़गी पैदा कर दी है । अब लच्छेदार भाषण और चाशनी में पगे वादे आम लोगो को रास नही आ रहें है बल्कि मानस पटल पर सरकार की छवि को तेज़ी से नकारात्मक बना रहें है । बाबजूद सरकार हकीकत से परे अपने नए नारे 'बातें बनाओ,धन कमाओ' में ही मस्त और व्यस्त है ।
   चुनाव को लगभग एक साल है । सरकार अपनी ही पीठ खुद थपथपाकर चौथी बार सत्ता सुख के सपने बुन रही है । हालात यही रहे तो दिग्विजय सिंह की तरह शिवराज सिंह का मुख्यमंत्री पद भी इतिहास न हो जाए । अब भी वक्त है सम्हलने का  ...यदि 'मामू' एक बार फिर 'भैया' बन जाए तो...।
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