Wednesday, August 23, 2017

आगाज़ एक नई सुबह का

मंगलवार की सुबह का सलमा को बेसब्री से इंतज़ार था । अहम फैसला जो आने वाला था । सलमा,बीते चार साल से अपनी ज़िदगी कम से कम जी तो न रही थी...वो तो, बस घसीट रही थी । अरमान दफन हो गए थे और उम्मीद की साँसे उखड़ने लगी थी । अरे गलती ही क्या थी उसकी...दिन भर कामकाज में खटने के बाद बिस्तर पर पड़ते ही मानो जिंदा लाश में तब्दील हो जाती । परिवार में नौ लोगों का हुक्म बजाते बजाते ..दिन कब फुर्ररर हो जाता....उफ्फ ..सच पता ही न चलता । 
    दिन भर चप्पलों को तकलीफ देकर और देर रात भोपाली पटियों को आबाद करने के बाद घर पर आमद दिए सलीम को अपना हक़ चाहिए होता । सलमा को तो अपने सरताज का हर हुक्म मानो ऊपर वाले का फरमान होता । 
 उस दिन बुखार था ...बदन जल रहा था । काम निपटा कर बस बिस्तर पर टिकी ही थी कि सलीम ने अपनी ख्वाइश उगल दी । बस आज नही......यही मुंह से उगला सलमा ने । इधर तो मानो शौहर के अहम को गजब चोट लगी और मुँह से उबाल आ गया 'तलाक-तलाक-तलाक'....। 
हालात जो भी हों लेकिन सिर पर छत तो नसीब थी सलमा को....लेकिन अब एक 'न' ने उसे बेघर कर दिया और रिश्तों से महरूम ...। 
    मॉफी मांगी । रहम की गुहार लगाई लेकिन अब क्या होता ...चन्द पलों में अब वह तलाकशुदा थी । अपनों की बीच जब सुनवाई न हुई तो  मजबूरन अदालत के दर पर दस्तक दे दी  । शुरू हुई हक की लड़ाई...
  आज फैसला आ रहा था..। धड़कने,सलमा का साथ नही दे रहीं थी...। अचानक ख़यालों को तोड़ा टीव्ही पर चीखती सीJ एंकर ने । फैसला आ गया । तीन तलाक..अब न होगा ...।
  सफेद पड़ चुके चेहरे पर हल्की से चमक फुदक आई,सलमा के..लेकिन कई सवालों के जबाब अभी भी ग़ुम थे....। उसके गुज़रे चार साल भी वापस मिलेंगे ? उसके साथ हुए अन्याय का जिम्मेदार कौन..? क्या अब कोई सलमा प्रताडित न होगी....? क्या नया कानून बनने से सब ठीक हो जाएगा...?
    कौन देता सलमा के जहन में सनसनाते सवालों का जबाब... । तलाक का जख्म उसने जिया था । जानती थी पीड़ा क्या होती है । 

  फैसला उसे सुकून न दे रहा था । अपनी जंग जीत जाने के बाद खुशी उसके दिल मे बसेरा न कर पा रही थी । सलमा की सोच... कानून की बजह से तलाक न होंगे यह मानने को तैयार न थी । अचानक मन के एक कोने से आवाज आई काश 'तलाक' को रोकने के लिए कानूनी डंडे की बजाए लोगो की जागरूकता आगे आ जाती तो कितना बेहतर होता...। उसे भी मालूम था कि किसी भी कुरीति के खात्मा के लिए कानून तो ठीक है बल्कि समझ की ज़रूरत ज़्यादा है । 
     टीव्ही पर कुछ महिला और पुरूष कुर्सियों पर टिके मुँह जुगाली कर रहे थे....लेकिन सलमा के दिल ने कुछ और फैसला ले लिया था ....अब,वह आज से समाज में जड़ जमा चुकी धर्म के नाम पर थोपी गई कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने का काम करेगी । 
   सलमा के चेहरे पर सुकून के भाव तैर गए । लगा उसको कि अब जिंदगी को नए मायने मिल गए....

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