Sunday, August 6, 2017

नशा न करना,भैया


रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी आमद दर्ज कराने वाला था । बहनें हो या भाई सभी का रक्षा पर्व को लेकर उत्साह चरम पर था । नीलम तो इस त्यौहार के इंतज़ार में मानो पल पल गिन रही थी  । बहन की तरह गौरव भी अपनी छोटी बहन से कलाई पर राखी सजवाने को लेकर बेकरार हुआ जा रहा था । उम्र के लिहाज से दोनों भाई बहन के बीच महज़ दो साल का ही फासला था । हर बार भैया गौरव का चेहरा,राखी बंधवाते ही खिल उठता तो गौरव का दिया उपहार हाथ में आते ही नीलम तो उछल ही पड़ती । राखी का दिन तो बस धमाचौकड़ी में गुज़र जाता । आज के दिन पापा - मम्मी की तरफ़ से भी मस्ती के लिए पूरी छूट रहती थी ।
    वक्त गुज़रा, हालात बदले । गौरव एक निजी कंपनी में नौकरी करने लगा और नीलम अपने साजन के साथ ससुराल चली गई । राखी का पर्व अब भी आता था....खुशियों और प्यार को समेटे हुए । दोनों भाई बहन का उत्साह अब भी बचपन के दिनों की तरह ही बरकरार था ।
     गौरव नौकरी के बाद बाहरी दुनिया से ज्यादा जुड़ गया । माँ तो माँ थी लेकिन पापा काफी सख्त थे । गौरव ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली लेकिन बिना पिताज़ी के जानकारी के एक कदम भी चलने की भी अनुमति न थी । खैर अब नौकरी थी तो स्वतंत्रता भी पर मारने लगी । गौरव को लगा कि ' मानो जिंदगी ने तो अब आवाज दी है' । दोस्तों ने भी उसके शौक को हवा दी। । नशा अब गौरव की जिंदगी का का बड़ा हमसफ़र हो चला । वक्त न ठहरा ....बढ़ता चला गया । नशा,गौरव पर हावी हो गया । कंगालियत ने जिंदगी में दस्तक दे दी तो लगे हाथ सेहत ने भी विदाई की तैयारी कर ली । महज तीस साल की उम्र में 60 का नजर आने लगा था...गौरव ।
   नीलम को जब प्यारे भैया के हालात का पता चला तो वह तो टूट ही गई । पिताज़ी तो चल बसे थे और माँ गौरव को समझा समझा कर थक गई और आख़िरकार किस्मत का लिखा मानकर स्थितियों से समझौता कर लिया  ।
  भैया था उसका...एक खून.... कइयों साल जिंदगी के साथ जिए थे तो भला वह हाथ पर हाथ रख कैसे बैठ पाती । नीलम ने ठान लिया कि वह न कोई समझौता करेगी और न चुप रहेगी । बस इंतज़ार था तो राखी का ...। उसने तय किया कि वह पहली बार अपने भैया से राखी का तोहफ़ा मांग कर लेगी ।
   आ गई राखी । राखी की खुशी तो आज भी वही थी लेकिन नीलम की तो मानो आज परीक्षा की घड़ी थी । नीलम थाली सजा कर भैया गौरव के घर पहुंच गई । कलाई पर राखी सजी और नीलम ने अपनी तोहफे की मांग भैया को सुना दी ।
  'भैया...इस बार तोहफा जो मैं मांगू वो'....। गौरव के होंठो पर मुस्कान थिरक गई । लाड़ से बोला..'मांग मेरी बहना, जो चाहिए...। नीलम ने तुरंत ही अपनी मांग सुना दी....'भैया...आपने बिना मांगे मुझे आज तक सब कुछ दिया...हर खुशी का ध्यान रखा'....। लम्बी सांस लेते हुए नीलम रुंधे गले से बोली...'भैया,इस बार तोहफे में मुझे वादा चाहिए.....भैया आज से नशा नही'....।
     गौरव को लगा कि शब्द उसके मुँह में ही मानो जम गए हो । आंखे झुक गई और कंपकपाते हाथों से अपनी बहन का हाथ थाम लिया । गर्दन हामी के अंदाज में डोल गई । भाई - बहन के आंखों से आँसू ज़ार ज़ार बहे जा रहे थे । पास खड़ी माँ एक टक इस अपारिभषित प्यार को देखे जा रही थी......।
'नशा न करना,भैया'.....

Saturday, August 5, 2017

चोटी कटुवा का सरकारी इलाज

    रात जवां हो रही थी लेकिन मप्र के मुखिया जी के सरकारी निवास पर दौड़ भाग मची थी । मुखिया जी #चोटी काटे जाने की घटनाओं को लेकर काफी आहत थे । दिल द्रवित था और चिंता चरम पर | आखिरकार नर्म दिल मुखिया जी ने आनन फानन में अपने खास विश्वस्त अफसरान को तत्काल हाज़िर होने का आदेश दे दिया ।
      बड़े से हॉल में अफसरान कुर्सी पर आ जमे लेकिन मुखिया जी कुर्सी का हत्था थामे गंभीर सोच में खड़े थे । आखिरकार उनकी मुँह बोली बहनों की चोटी काटने पर कोई उतारू था ।
      मुखिया जी का पहला सवाल पुलिस के सबसे बड़े अफसर के कान से टकराया । 'कौन है,कुछ पता चला...क्यों वह,इस तरह के जघन्य अपराध को अंजाम दे रहा है'...मुखिया जी ने एक ही सांस में कई सवाल ठोंक दिए । आंखों में नींद थामे पुलिस अफसर ने सिर्फ 'न' कहकर अपना फर्ज पूरा कर दिया । परेशान मुखिया जी ने अपनी आँखों को अब अपने प्रदेश के बड़े साहब पर जमा दिया लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर न मिला ।
      मुखिया जी समझ गए मसला बड़ा है और अब दीन-हीन की तरह अपने संकटमोचक निकटस्थ करीबी अफसर को एकटक देखने लगे । छोटे साहब समझ गए कि मोर्चा सम्हालने का समय आ गया ।
      'सर,इससे पहले कि मीडिया बबाल मचाए और लोगो के बीच आपकीं 'संवेदनशील छवि' को नुकसान हो...उससे पहले जिन महिलाओं की चोटी काटी गई है उनको तत्काल 50 लाख का मुआवजा घोषित कर दीजिए' । साहब बिना पलकें झपकाए एक सांस में बोले जा रहे थे । 'सर....उस जिले के कलेक्टर के खिलाफ 'नाखुशी' ज़ाहिर करते हुए थानेदार और कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को निलंबित कर दीजिए...'।
       अब सांस ली साहब ने...'और सर..कल का आपका दौरा तय कर देते है । अभी सभी पेपर्स में एक एक पेज का विज्ञापन और शहर में होर्डिंग लगवा देते है । इसके अलावा सभी चैनल्स को खास पैकेज देकर आपके दौरे कार्यक्रम को लाइव करवा देते है ...। सभी कलेक्टर को बोल देते है कि कार्यक्रम स्थल पर 10 - 10 बसों में लोगो को भरकर भेजें । सर....खास टेंट और ए.सी. बगैरा भोपाल वाले ठेकेदार को लगवाने का बोल देते है ...। साहब रुकने का नाम नही ले रहे थे और मुखिया जी मंत्रमुग्ध सुने जा रहे थे ।
     'सर इस पूरे मिशन में लगभग 50 करोड़ का खर्चा होना चाहिए ....उस बजट को मैनेज करने का अभी विभाग प्रमुखों को बोल देता हूँ....। साहब समस्या का समाधान देकर अब शान्त हुए ।
       मुखिया जी चेहरे पर सुकून के भाव थे । द्रवित दिल मे अब हर्ष था । आभार वाले भाव में मुखिया जी 'साहब' को देखते हुए बोले कि बाकी तो आप काफी अनुभवी हो लेकिन विज्ञापन में मेरा फ़ोटो थोड़ा संजीदा वाला लगाना । पिछली बार किसान आंदोलन के दौरान ध्यान नही दिया था ...।
        शांत मन से मुखिया जी ने दरबार बर्खास्त किया और अंदर वाले कमरे का रुख कर लिया और साहब अपने मैनेजमेंट में जुट गए ।
     बाकी गांव में महिलाएँ डरी सहमी सिर पर कपड़ा बांधे घर के बाहर हाथों के छापे और नींबू मिर्ची लगाकर चोटी कटुआ से बचने में जुटी हैं और मर्द हाथ में डंडा थामे चौकीदारी में व्यस्त...

Tuesday, August 1, 2017

मुखिया जी और माई का लाल

                      चंद दिन पहले की ही बात है जब मुखिया जी ने सख्ती दिखाते हुए बडा भारी ऐलान किया था । मंच से ताबड़तोड़ बोलते हुए मुखिया जी ने साफ साफ कहा था कि लंबित राजस्व के प्रकरण तत्काल न निपटे तो जिले के साहब को उल्टा लटका दिया जाएगा...।
मुखिया जी के शब्दों में कठोरता थी तो चेहरे पर आरपार वाले भाव ...। मुखिया जी कई बार चेता चुके थे कि उन्होंने जो कह दिया वो फिर कोई 'माई का लाल' नही बदल सकता'...।
इधर मुखिया जी ने ऐलान किया उधर दूसरे दिन अलसुबह ही जिलों के कलेक्टर कार्यालय में मजबूत 'रस्सी' की व्यवस्था कर दी गई । पीडब्ल्यूडी के अफसरान ने तत्काल दौरा करके कलेक्टर कार्यालय की छत का निरीक्षण भी कर लिया कि साहब के लटकने का भार यह छत सह पाएगी या नही ? पीडब्ल्यूडी के अफसर भी छत की मजबूती को लेकर थोड़े डरे थे क्योंकि उनके ही देख रेख में कलेक्टर कार्यालय का 'घूस-निर्माण' हुआ था । मौका देख आनन फानन में नेताओं ने भी अपने चेलों की संविदा पर नियुक्ति करवा डाली । यह नव निर्मित पद था 'सालक' का ....। 'सालक' बोले तो 'साहब लटकाओ कर्मी' ...। खास फोन दिया गया 'सालक' को जिस पर मुखिया जी शिकायत पाते ही सीधे लटकाने का आदेश जारी करेंगे । सत्ता पक्ष से जुड़े विशेष संगठन के पदाधिकारियों ने भी तैयारियों का जायजा लेकर महाराष्ट्र के बड़े शहर को अपनी रपट भेज दी ।
कई साल से कलक्टर कार्यालय में सेवाएं दे रहा प्यून भी नही चूका । उसने भी अपने बेरोजगार बेटे के लिए स्टार्टअप प्लान कर लिया । जब 'साहब' उल्टे लटके रहेंगे तो वह चेम्बर का दरवाजा थोड़ा सा खोलकर आम लोगो को नज़ारा दिखाएगा और उसके एवज़ में 10 - 10 रुपए वसूलेगा । किसान भी खुश चलो मुखिया जी सालों बाद ही सही लालफीताशाही पर लगाम कसने वाले है । बोले तो कम से कम मप्र में तो अच्छे दिन आने वाले हैं ....।
जिले में तैनात 'साहब' लोग कई बार मुखिया जी की सख्ती का सख्तपन देख चुके थे इसलिए ऐलान को अपने दिमाग के 'लान' में आने ही नही दिया । लेकिन हो रही तैयारियों,सत्ता से जुड़े खास संगठन और किसानो की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अपनी एक फीसदी चिंता से 'बड़े साहब' को अवगत करा दिया ।
जिले के साहबों को तुरंत ही 'माई का लाल' मिल गया । राजधानी में बैठें बड़े साहब ने बैठक बुलाई और चाय नाश्ते के लुत्फ के बीच उस एक फीसदी चिंता को भी शांत कर दिया । मुस्कराते हुए बडे साहब ने औपचारिक हुक्म सुनाया कि दो महीनों में सारे लम्बित मसलों को निपटाया जाए । मीटिंग ओवर....मुस्कराहट ठहाके में बदल गई ।
बेचारे किसानों से लेकर प्यून के स्टार्टअप पर पानी फिर गया । 'साहब' लोग मीटिंग खत्म करके राजधानी के सबसे महंगे मॉल में दाखिल हो गए खरीददारी के लिए । मुखिया जी अभी भी राजधानी से दूर एक गांव में अपने कड़क मिज़ाज़ का भाषण पेले जा रहे हैं ।

Saturday, July 29, 2017

भाषण,सपनें और हक़ीकत

“गुलाबचंद” .... यही नाम था इस नौजवान का | “गुल्लू” से शुरू हुई जिन्दगी ‘गुलाब” से होती हुई बड़ी जल्दी “गुलाब चंद” तक आ पहुंची | गुलाब चंद के हाथो में इंजीनियरिंग की डिग्री फडफडा रही थी तो दिल में भविष्य के सपनें कुलांचे मार रहे थे | गुलाब ही नहीं पिता मेहलू को भी भरोसा था कि “मामा” के राज़ में सपनों को पंख देना आसान है | जूते चप्पल की मरम्मत करते हुए बेटे के सुनहरे भविष्य का सपना गढ़ता चला गया | 
कुछ महीनों पहले ही तो “मामा” आए थे गाँव में | खूब जोरदार इस्तकबाल हुआ था | मेहलू भी पीछे न था | मेहलू ने अपनी दुकान की छुट्टी कर दी | मंच से मामा ने जैसे ही कहा कि “ मेरे भांजे – भांजियों चिंता मत करना ..तुम्हारे मामा की सरकार है ...स्वरोज़गार के लिए बिना गारंटी के सस्ता लोन दूंगा” | सबसे तेज़ ताली की आवाज मेहलू की थी | आज तो पैर जमीन पर नहीं थे उसके | सपना था कि बेटा कोई बड़ा उद्योग खड़ा करे | गुलाब चंद ने भी अपने पिता के तरह बड़ा सा जूते चप्पल बनाने का कारखाना आँखों में बसा रखा था |
डिग्री थामे गुलाब बड़े ही धाक और भरोसे से बैंक की दहलीज पर पहुंचा | मेहलू तो बस बेकरार था कि बस शाम तक गुलाब बैंक से लोन का चेक थामे ही लौटेगा | आज से इस काम से मुक्ति अब वह भी शान से जिन्दगी गुजर बसर होगी | बार बार दुकान में लगे ‘’मामा’’ के पोस्टर को देखकर हर्षित हो जाता और कान में ‘’ तुम्हारे मामा की सरकार है’’ शब्द गूंजने लगते |
उत्साहित-विश्वास से लबरेज़ गुलाब ने बैंक मैनेजर को अपने सारे ज़रूरी कागजात का पुलिंदा पकड़ा दिया | मैनेजर साहब ने कागज देखने का ज़हमत भी न उठाई और बाहर वाले चेम्बर में बैठे शर्मा जी से मिलने का हुक्म सुना दिया | शर्मा जी आज फुर्सत में न थे | 15 दिन बाद आने की बात कह चाय की दुकान की राह पकड ली |
15 दिन बीते और गुलाबचंद बैंक में जा धमका | लेकिन कभी यह कमी तो कभी वह कमी | कभी गारंटी की मांग तो कभी और कोई बहाना | अगले 4 महीने तक बैंक और घर की राह,यही दिनचर्या थी गुलाब की | अंत में बैंक ने गुलाब चंद को शुक्रिया कहकर फायनली बाहर का रास्ता दिखा दिया | मेहलू का पारा आसमान पर | 'मामा' ने कहा था ..ऐसा हो ही नहीं सकता | गुलाब की मनाही की बाबजूद मेहलू बैंक जा धमका ...मैनेजर ने साफ़ साफ़ कह दिया “हम तो लोन नही दे सकते ..मामा से ही ले लो”
झटका था लेकिन भरोसा अभी भी किसी कोने में अडा था | तहसीलदार साहब से लेकर कलेक्टर और विधायक जी तक मेहलू ने कदम रगड़े लेकिन सभी माननीय ‘’आवेदन लेकर आश्वासन’’ की पुडिया निशुल्क पकडाते रहे | गुजरते वक्त और आश्वासन से बनी झिडकियों ने मेहलू को भाषणों और राजनीति की हक़ीकत समझा दी | सपनों को ताक पर रख जैसे तैसे हाथ पैर जोड़कर मेहलू ने गुलाबचंद की नौकरी पटेल साहब के ट्रेक्टर शो रूम पर लगवा दी | गुलाबचंद भी सालों के पाले मुगालते को छोड़कर दो जून की जद्दोजहद में जुट गया |
मेहलू फिर से अपने पुश्तैनी काम में मन मार कर जुट गया | पोस्टर आज भी लगा था | बीच से फट कर फडफडा रहा था लेकिन अब मेहलू का ध्यान पोस्टर पर नहीं बल्कि जूतों पर था | और टीव्ही पर विज्ञापन चीख रहा था ..’’मामा बैठा है मेरे भांजे-भांजियो कोई दिक्कत नही होने दूंगा’’

Monday, July 24, 2017

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय और चूहों का सुरक्षित ठिकाना

                                  शहर के  चूहों की चुहलबाजी बंद थी | परेशान कि रहने का कोई सुरक्षित ठौर ठिकाना न था | बैठक हुई ठिकाने को लेकर | बुजुर्ग चूहें सोच सोच कर हालाकान लेकिन हल न था | तभी आवारा छिछोरे टाइप चूहे ने बिन मांगी सलाह देते हुए चलती बैठक में अपनी भी मौजूदगी दर्ज करा दी | चूहे ने दमदार आवाज में कहा कि उसके पास एक जगह है जो बीते तीन साल से सुनसान और उजाड़ हालत में है और अगले एक साल तक भी रौनक की कोई आशा नही |  

   बूढ़े चूहे चौंक गए | सवाल आता उससे पहले ही गर्व से सीना फुलाते हुए जवान चूहे ने जबाब भी सभा की ओर उछाल दिया ..’प्रदेश कांग्रेस कार्यालय’ | बुजुर्ग चूहे सन्न रह गए | वाकई छिछोरे ने छक्का मार दिया | लोकसभा चुनाव के बाद यह कार्यालय कभी कभार ही रोशन हुआ वर्ना ज्यादातर तो दीवारें आपस में ही बतियाती रहती हैं |

  तभी एक बुजुर्ग चूहे ने सवाल दे मारा | सुना है दिग्गी राजा मैदान में उतरने वाले है तो ज़ाहिर है फिर हमें जगह बदलनी पड़ सकती हैं | उत्तर आया जवान चूहे की तरफ से ‘देखते जाओ ..सब आएंगे लेकिन अपनों के द्वारा ही लौटा भी दिए जाएंगे | मुख्यमंत्री की कुर्सी का अरमान सब पाले है | एकाधिकार की मंशा चरम पर है | हालात यह है कि अपना दही जमे या या न जमे लेकिन दूसरे का तैयार रायता ज़रूर फैलना चाहिए’ |

    जवानी से भरपूर चूहा आज तो लग रहा था कि थमेगा नही पूरा ज्ञान उंडेल देगा | खैर चूहे ने ज्ञान को आगे बढाते हुए कहा ‘भैया इनसे न हो पाएगा ....अब आप ही देखो जितनी दिशाएं उतने गुट | हार के बाद भी जीत हो या न हो लेकिन सामने वाला गुट आगे न आ पाए’ | चूहे ने पहलू  बदलते हुए अपनी बात को ज़ारी रखा ..’कोई भी महारथी टिक पाया ?...जिनको पार्टी की जिम्मेदारी मिली है वो ‘गुलचुप’ ...मतलब की होना या न होना बराबर | चुनाव की आहट के साथ छिंदवाडा के अरमान जागे लेकिन दिल्ली और नेशनल हाइवे से लगे क्षेत्रों ने ही हवा निकाल दी | केंद्र में बेराजगार होने के बाद महाराजा साहब के अरमान जागे थे लेकिन क्या हुआ चंद दिन में ही अपनी रियासत की ओर कूच कर गए | अब राजा साहब फिर अपने बीते दिनों का सपना लिए वापिसी करने का तानाबाना बन रहें है लेकिन दूसरे गुटों ने उस सपने में दखल देने की तैयारी भी कर ली होगी | और इन सबसे परे ‘पप्पू’ का ‘चप्पू’ भी चुनावी नैया को पार लगाने का काम संजीदगी से न कर पाया |

      जवान चूहा बोले जा रहा था लेकिन अब उसका स्वर गंभीर हो चुका था ...’स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि मजबूत विपक्ष हो’ लेकिन मप्र में तो लगता है कि विपक्ष को बजाय सत्ता पक्ष को नियंत्रित करने के आपस में ही लंगड़ी फ़साने में ज्यादा आनंद आता है | सरकार बेकाबू लेकिन आम मतदाताओ के पास विकल्प ही नहीं है | यह बिडम्बना है ...’

   खैर छोडो ..अब चूहे की आवाज में भरोसा था | देखो,चुनाव को अभी समय है तब तक यहाँ कोई नहीं झाँकने वाला | सब अपने अपने इलाकों में ‘रायता फैलाओ,प्रतियोगिता में व्यस्त रहेंगें | अब यह कार्यालय चुनाव में ही रोशन होगा तब तक के लिए हमारे सबसे सुरक्षित जगह यही है |

  आज छिछोरे और आवारा चूहे की सलाह और तर्क शक्ति के आगे सब बौने पड़ गए | सबको यह विकल्प बहुत भा गया | खुश खुश चूहे अपने सुरक्षित ठिकाने की ओर कूच करने लगे

Friday, July 21, 2017

मुखिया जी का ज्योतिष प्रेम

                   बड़ी झील से सटे पहाड़ी पर मौजूद एक बंगला । अलसुबह यह शानदार बंगला तो शांति पकड़े था लेकिन बंगले में मौजूद सेवादारों के चेहरे पर तनाव साफ साफ कबड्डी खेल रहा था । सबसे ज्यादा हैरान परेशान टेलीफोन ऑपरेटर था । बेचारगी के भाव से उसकी उंगलियां फोन पर चस्पा नम्बरों पर बार बार कूद रही थी लेकिन शायद इस मेहनत मशक्कत के बाबजूद वह मिले लक्ष्य को हासिल नही कर पा रहा था । भुनभुनाते हुए बोला "क्या यार रोज़ का यही पंगा" । टेलीफोन ऑपरेटर की भुनभुनाहट सेवादारों के कान में भी जगह बना गई । एक सेवादार ने भी ऑपरेटर के सुर में सुर मिलाया । "सही है यार,इस पंडित से कई बार बोला कि सुबह फोन पर ही रहा कर लेकिन रोज़ की उसकी यही नौटँकी है । बौखलाहट,भुनभुनाहट,तनाव का माहौल चरम पर था कि अचानक फोन की घण्टी खनखना उठी । गजब चमक थी फोन ऑपरेटर के चेहरे पर । भाव ऐसे कि भाई ने अभी अभी पाक को परास्त कर दिया हो । ऑपरेटर चीखता हुआ सा बोला "जल्दी आओ,पण्डित का फोन..." । घोषणा खत्म भी न हो पाई थी फोन का रिसीवर छीनकर मुख्य सेवादार बरस पड़ा "पण्डित घर बैठा के दम लोगे क्या ? छत्तीस दफा कह चुके है कि रोज़ सुबह पहले ‘’मुखिया जी " से बात कर लो फिर कुछ और करो । "तो साहब क्या 'नित्यकर्म' भी न करूँ, सुबह से तो आप लोग पकड़ लेते ...." । पंडित की बात विराम लेती उससे पहले से सेवादार ने रोक दिया "चलो छोड़ो सब, पहले मुखिया जी से बात करो" । तनाव बाहर का ही मेहमान न था बल्कि अंदर कमरे में मुखिया जी के साथ भी मौजूद था । पण्डित के इंतज़ार में मुखिया जी पहलू बदल बदल के सोफ़े पर बिछे कपड़े पर सैकड़ों सिकडुन पैदा कर चुके थे । 
"जय राम जी की पण्डित जी" आए हुए फोन पर मुखिया जी ने जबाब दिया । तो पंडित जी आज क्या बोल रहे हैं ग्रह नक्षत्र ? पण्डित के पास जबाब तैयार था ‘यजमान आज की पहली बैठक 11 बजे से रखना है’। यजमान दिल्ली थोड़ा परेशान कर सकती है लेकिन अनुष्ठान जारी है और "माह हो या फिर गोदी" फिलहाल कुछ न कर पाएंगे । और हां यजमान जो पुराना अनुष्ठान था वो समाप्त कर दूं क्योंकि काम तो हो ही गया या फिर सुप्रीमकोर्ट के मसले के बाद ? .... मुखिया जी ने चुप्पी तोड़ी ‘पण्डित जी दिल्ली पर नज़र रखो’। दो तीन अनुष्ठान करवा दो कुछ भी हो बाजी अपने ही पाले में रहना चाहिए । और "वो" वाला अनुष्ठान फैसले तक चलने दो । मुखिया जी ने राहत की सांस ली और फोन को शांत होने की अनुमति दे दी । तभी पत्नी कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए बोली "सूख के छुआरा हो रहे हो,मत करो चिंता बीते 12 सालों में कोई कुछ कर पाया " । आप तो राजयोग लेकर आए हो और बाकी सब पंडित जी पर छोड़ दो । 
क्या गलत है । मुखिया जी का सुखद अनुभव रहा है | देखो क्या बढ़िया समीकरण बैठे कि सिर पर अचानक ही पके आम की तरह " मुखिया का ताज" आ जमा । कई कद्दावरों ने "कुर्सी की कसक" दिखाई लेकिन ग्रह नक्षत्र,अनुष्ठान से ऐसा सबक सिखाया कि भाई लोग कही के न रहे । "माह - गोदी" सब पर कितने भारी हो लेकिन साहब की किस्मत के आगे तो "लल्ला लल्ला लोरी " गा उठते है ।
मुखिया जी ने तय कर लिया है कि अब उनके साथ साथ आम जन के बीच भी ज्योतिष को बढ़ावा दिया जाएगा | पहला फरमान भी जारी हो गया है कि अब डॉक्टर बाबू के साथ सरकारी अस्पतालों में "ज्योतिषाचार्य" भी बैठेंगे । ज्योतिषाचार्य कैंसर से लेकर नजला ज़ुकाम तक का इलाज अब "बुध,गुरु,शनि करेंगे । न दवा की ज़रूरत और न सर्जरी । अब तो अंगूठी,नींबू-मिर्च',रत्न,अनुष्ठान से सब मंगल होगा । ज्योतिषियों की कमी न पड़ जाए इसलिए इस विधा को पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ डिप्लोमा कोर्स भी शुरू करवा दिए हैं । अब चाय,पान की तरह ज्योतिष केंद्र हर जगह उपलब्ध होंगे । 
शुभ मुहूर्त आ चुका था जब साहब को देहरी पार करना था । साहब अपने कमरे से निकले और मुख्य द्वार पर नज़रें जमा दी । नीबू- मिर्ची ताज़े ताज़े लगे मुस्करा रहे थे । साहब ने तसल्ली की और मंत्र बुदबुदाते सरकारी गाड़ी में जा जमे । चालक ने भी स्टेयरिंग को प्रणाम करते हुए गाड़ी को मंजिल की ओर बढ़ा दिया । साहब थोड़ी जल्दी में थे । जल्दी जल्दी सारे काम मुहूर्त में जो निपटाने थे .....।

Saturday, July 15, 2017

मोदी,शाह और मामा का खौफ

मोदी,शाह और मामा का खौफ 😳
- आशीष चौबे
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      दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री निवास पर कुछ ज्यादा ही शांति थी । बन्द कमरे में मोदी और अमित शाह थे । मोदी अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक टक छत की ओर देखे जा रहे थे । शाह की आंखों में रोज़ की तरह चमक न थी बल्कि चिंता थी । सन्नाटे को तोड़ा आखिरकार अमित शाह ने .....

       कहा था न हल्के में न लो लेकिन आपको तो किसी के न सुनने की बीमारी सी है । लगभग चिड़चिढाते हुए अंदाज में शाह बोले ।

      पूरी ताकत लगाकर मोदी ने जुबान हिलाई और बुदबुदाते हुए बोले तो मुझे लगा ही नही कि वो ऐडा बन कर पेड़ा खा रहा है और फिर तुमने भी तो कहा था कि "मामू" ही है वो तो ।

"पहले मुझे भी लगा था कि वह "मामू" है लेकिन उमा के बाद जब कैलाश के अरमान ठंडे किए तब मुझे अहसास हो गया था कि चेला आडवाणी का है लेकिन गुरु से एक कदम आगे है" शाह ने मोदी को घूरते हुए कहा ।

    आप बस ताली पिटवाते रहो, विदेश घूमो,मित्रो मित्रो करो और इधर "मामू" ने उमा,राघवजी,कैलाश विजयवर्गीय,प्रभात झा,कमल पटेल,अजय विश्नोई,अनूप मिश्रा,लक्ष्मीकांत शर्मा,बाबूलाल गौर,सरताज सिंह और लो अब नरोत्तम मिश्रा का भी फट्टा साफ कर दिया"

   मोदी और असहज हो गए । सफेद दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए खरखराती आवाज में बड़बड़ाए तो उन सबके अरमान तो सीएम के थे इसलिए "मामू" के निशाने पर आ गए लेकिन मैं थोड़ी अब सीएम बनूँगा तो मुझे क्यों डरा रहे हो ।

    मोदी की इस बात पर शाह खीज से गए । अरे सीएम तो नही बनना लेकिन आपने ने भी उसके कम मज़े नही लिए और फिर वह अपने गुरु आडवाणी का बदला भी तो ले सकता है ।

    मोदी के कठोर चेहरे पर दयनीयता के भाव आ गए । सूख चुके होंठ पर जुबान फिराते हुए मोदी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन जुबान ने साथ नही दिया । बस जुबान से सिर्फ़ इतना ही निकल पाया "तो अब"

     तो अब क्या अपनी शीशे जैसी चमकती चांद पर हाथ फेरते हुए शाह ने बुरा सा मुँह बनाया ।

  कामाख्या वाले पंडित से बात की है । कल से अनुष्ठान करेगा । अपनी पत्नी को भी बोला है कि "मामी" को शीशे में उतारो । खास प्रमुख सचिव है प्रदेश के उनसे मिलने का समय भी लिया है"।

 बाकी हरि इच्छा......

  कमरे में सन्नाटा फिर से छा गया । मोदी सामने रखी शिव प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े खड़े थे और शाह अपने महंगे मोबाईल पर "मामा" के करीबियों के नम्बर तलाशने में जुट गए ।
नोट - पोस्ट के सभी पात्र काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है
😜😜🙏🏻😜😜

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...