Wednesday, August 23, 2017

आगाज़ एक नई सुबह का

मंगलवार की सुबह का सलमा को बेसब्री से इंतज़ार था । अहम फैसला जो आने वाला था । सलमा,बीते चार साल से अपनी ज़िदगी कम से कम जी तो न रही थी...वो तो, बस घसीट रही थी । अरमान दफन हो गए थे और उम्मीद की साँसे उखड़ने लगी थी । अरे गलती ही क्या थी उसकी...दिन भर कामकाज में खटने के बाद बिस्तर पर पड़ते ही मानो जिंदा लाश में तब्दील हो जाती । परिवार में नौ लोगों का हुक्म बजाते बजाते ..दिन कब फुर्ररर हो जाता....उफ्फ ..सच पता ही न चलता । 
    दिन भर चप्पलों को तकलीफ देकर और देर रात भोपाली पटियों को आबाद करने के बाद घर पर आमद दिए सलीम को अपना हक़ चाहिए होता । सलमा को तो अपने सरताज का हर हुक्म मानो ऊपर वाले का फरमान होता । 
 उस दिन बुखार था ...बदन जल रहा था । काम निपटा कर बस बिस्तर पर टिकी ही थी कि सलीम ने अपनी ख्वाइश उगल दी । बस आज नही......यही मुंह से उगला सलमा ने । इधर तो मानो शौहर के अहम को गजब चोट लगी और मुँह से उबाल आ गया 'तलाक-तलाक-तलाक'....। 
हालात जो भी हों लेकिन सिर पर छत तो नसीब थी सलमा को....लेकिन अब एक 'न' ने उसे बेघर कर दिया और रिश्तों से महरूम ...। 
    मॉफी मांगी । रहम की गुहार लगाई लेकिन अब क्या होता ...चन्द पलों में अब वह तलाकशुदा थी । अपनों की बीच जब सुनवाई न हुई तो  मजबूरन अदालत के दर पर दस्तक दे दी  । शुरू हुई हक की लड़ाई...
  आज फैसला आ रहा था..। धड़कने,सलमा का साथ नही दे रहीं थी...। अचानक ख़यालों को तोड़ा टीव्ही पर चीखती सीJ एंकर ने । फैसला आ गया । तीन तलाक..अब न होगा ...।
  सफेद पड़ चुके चेहरे पर हल्की से चमक फुदक आई,सलमा के..लेकिन कई सवालों के जबाब अभी भी ग़ुम थे....। उसके गुज़रे चार साल भी वापस मिलेंगे ? उसके साथ हुए अन्याय का जिम्मेदार कौन..? क्या अब कोई सलमा प्रताडित न होगी....? क्या नया कानून बनने से सब ठीक हो जाएगा...?
    कौन देता सलमा के जहन में सनसनाते सवालों का जबाब... । तलाक का जख्म उसने जिया था । जानती थी पीड़ा क्या होती है । 

  फैसला उसे सुकून न दे रहा था । अपनी जंग जीत जाने के बाद खुशी उसके दिल मे बसेरा न कर पा रही थी । सलमा की सोच... कानून की बजह से तलाक न होंगे यह मानने को तैयार न थी । अचानक मन के एक कोने से आवाज आई काश 'तलाक' को रोकने के लिए कानूनी डंडे की बजाए लोगो की जागरूकता आगे आ जाती तो कितना बेहतर होता...। उसे भी मालूम था कि किसी भी कुरीति के खात्मा के लिए कानून तो ठीक है बल्कि समझ की ज़रूरत ज़्यादा है । 
     टीव्ही पर कुछ महिला और पुरूष कुर्सियों पर टिके मुँह जुगाली कर रहे थे....लेकिन सलमा के दिल ने कुछ और फैसला ले लिया था ....अब,वह आज से समाज में जड़ जमा चुकी धर्म के नाम पर थोपी गई कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने का काम करेगी । 
   सलमा के चेहरे पर सुकून के भाव तैर गए । लगा उसको कि अब जिंदगी को नए मायने मिल गए....

Sunday, August 20, 2017

शौचालय की सोच को सरकारी ठेंगा

कुछ माह पहले ही भोपाल शहर को स्वच्छ शहरों की फेहरिस्त में दूसरी पायदान हासिल हुई थी | ख़ुशी से सीना चौड़ा हो गया था,सभी का.. | आश्चर्य थोडा ज़रूर हुआ था लेकिन फिर सोचा कि छोडो ...अपने मुख्यमंत्री गुणा भाग में तो माहिर है | जैसे हर साल फसल ख़राब होने के बाबजूद हमारे प्रदेश के पाले में ‘कृषि कर्मण अवार्ड’ आ जाता है कुछ वैसे ही इस मामले में भी ‘गोटी’ सेट हो गई होगी | खैर शहर को सम्मान मिला था तो कई सवाल झटक कर हमनें भी ख़ुशी मना ली | सारे गुणा भाग ठीक ठाक तो भोपाल दौरे पर आए पार्टी के तेज़ तर्रार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी दिल खोलकर तारीफ की और मुख्यमंत्री जी के कामकाज को बिना 'जीएसटी' काटे पूरे सौ नंबर पकड़ा दिए |
     सारा सब कुछ बेहतर था लेकिन हाय री किस्मत ..राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के आखरी दिन ही खीर में कंकड़ आ गया | दरअसल अतिउत्साह में मुख्यमंत्री जी की टीम गुणा भाग भूल गई और अध्यक्ष जी को उस गरीब आदिवासी के घर भोजन के लिए ले कर पहुँच गए,जिसके घर शौचालय ही नहीं था | यह तो अच्छा हुआ कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का पेट ठीक था कही उनको ही शौच के लिए जाना पड़ जाता तो बेचारा मेजबान आदिवासी उनको भी लोटा पकड़ा कर दूर खेत का रास्ता ही दिखा पाता | ख़ास बात यह है कि यह घर कोई दूर दराज इलाके का नहीं बल्कि बिल्कुल राजधानी भोपाल से सटा है |
   दरअसल अमित शाह जी आज़कल जहाँ दौरे पर जाते है तो वह किसी गरीब दलित के घर भोजन करते हैं | समय कम था सो भोपाल से सटे सेवनिया गौड़ गाँव के आदिवासी कमल सिंह के घर पर भोजन का कार्यक्रम तय हुआ | कमल के पास न तो स्थायी रोज़गार है न ही खेती किसानी | छोटे मोटे काम करके जैसे तैसे अपने परिवार के साथ गुजर बसर कर रहा है | सरकारी दफ्तर में दस्तक दी थी लेकिन आज तक शौचालय न बन पाया |
  शाह साहब की तो किरकिरी हो ही गई लेकिन बेचारे प्रधानमंत्री जी को कितना बड़ा धक्का लगेगा | अमिताभ बच्चन को भी दुःख होगा कि देखो रोज़ मैंने टीव्ही पर भले ही करोडो रूपये लेकर ‘स्वच्छता’ का ज्ञान दिया लेकिन शिवराज जी के राम राज़ में उनकी कोई सुनवाई नही | यह तीनो भी ठीक है सबसे ज्यादा बुरी स्थिति तो अपने देश भक्त अभिनेता ‘अक्षय कुमार’ साहब की होगी | टीव्ही विज्ञापन के साथ साथ वह तो शौचालय के सोच में इतने पड़ गए थे कि एक पूरी फिल्म ही बना डाली | अब आखिर यह क्या बात हुई ,शिवराज जी ....आपने केंद्र से मिशन के नाम पर पूरे 427 करोड़ रूपये तो ले लिए लेकिन ‘शौच’ की सोच पर कतई ध्यान न दिया ..| इस मामले में भी आपकी कृपा बरसी तो...बस अफसरों पर
  अब इस मसलें को लेकर मप्र में स्वच्छता मिशन की असलियत,भोपाल का स्वच्छ शहर की दूसरी पायदान पर आना और मुख्यमंत्री जी के कामकाज को सौ फीसदी नम्बर मिलना ...एक साथ तीनो की पोल खुल गई | शाह साहब खाना खाकर सोचते सोचते निकल लिए ....| शाह साहब का भी मुगालता दूर हो गया होगा कि वह खुद बड़े फन्ने खां या फिर गुणा भाग वाले हैं | अब महसूस हुआ होगा कि उनसे भी बड़े वाले पड़े हैं | खैर शाह साहब समझ जाइए,ऐसे ही नही बोला जाता कि ‘एमपी अजब है सबसे गजब है’......|
#amitshah
#shahinmp
#shivrajsinghchauhan
#cmomp
#bjpmadhyapradesh

Saturday, August 19, 2017

शिवराज और शाहरुख की जन्मकुंडली की जुगलबंदी

'श' से ही शिवराज और ' श' ही शाहरुख खान । दोनों की जिंदगी को लेकर गजब संयोग है । दोनों ही अपनी मेहनत और काबलियत के बलबूते फर्श से अर्श तक पहुंचे । दोनों ने ही अपने अपने क्षेत्र में सफलता के परचम लहराए । शाहरुख फ़िल्म इंडस्ट्री के सबसे लोकप्रिय और नम्बर वन सुपर स्टार बने तो शिवराज ने राजनीति के क्षेत्र में लोकप्रियता के चरम स्तर तक पहुंच कर दिग्गज नेताओं की ज़मात में अहम स्थान बनाया ।
  अभिनेता शाहरुख खान ने अदाकारी का सफर टीव्ही सीरियल से शुरू किया और फिर जब बड़े पर्दे का रुख किया तो फिर पीछे मुड़ कर न देखा । शाहरुख की फिल्म मतलब सफलता की 100 फीसदी गारंटी । आखिरकार शाहरुख फिल्मी दुनिया के बेताज बादशाह बन गए....।
   नेता शिवराज की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई । भाषण कला में पारंगत और सहज़,मेहनती शिवराज अपने ही दम पर सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए । संगठन में मिली विभिन्न जिम्मेदारियों को बेहतर अंजाम दिया तो सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे । शिवराज सबकी पसन्द बन गए । परिणाम यह हुआ कि अचानक बने समीकरणों के बीच शिवराज सिंह मप्र के मुख्यमंत्री बन गए । शिवराज ने कुर्सी का हत्था ऐसा पकड़ा कि अब तक के सर्वाधिक कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री हो गए ।
     दोनों की जन्म कुंडली के सितारे लगता है एक समान ही चाल चल रहे है । अब जब शिवराज की लोकप्रियता का ग्राफ किसान आंदोलन,व्यापम घोटाला,अफसरों को नियंत्रण में न रख पाने के साथ कई अन्य आरोप के चलते काफी गिरा तो इसका प्रभाव नगरीय चुनाव परिणाम में साफ दिखा । सत्ता के गलियारों से लेकर संगठन तक शिवराज के खिलाफ नाखुशी अब सार्वजनिक होने लगी है  शिवराज की विदाई को लेकर आए दिन ख़बरों का बाज़ार गर्म होता है । जानकारों के अनुसार वर्तमान हालात में शिवराज काफी कमजोर हुए हैं और आने वाला समय उनके लिए काफी कठिन साबित होगा
      तो कुछ वैसे ही शाहरुख भी कई सुपर डुपर फिल्मों का स्वाद चखने  के बाद लगातार ढाल पर हैं । दिलवाले,फैन और हाल में आई 'जब हैरी मेट सैजल' जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ दिया । फिल्मी पंडित शाहरुख को अब पिटा हुआ मोहरा कहने में भी नही चूक रहें है । थियेटर में दर्शकों का टोटा और फ़िल्म निर्माताओं की शाहरुख़ में अरूचि बिगड़ते समीकरणों की पोल खोलती हैं ।
     खैर नेता शिवराज और अभिनेता शाहरुख दोनों ही जीवन में एक बार फिर संघर्ष के दौर में हैं और अपने अपने मुकाम को बचाने के जुगत में जुटे है लेकिन "उफ्फ यह" किस्मत किसका कितना साथ देती है,यह तो भविष्य के गर्भ में है ।

Wednesday, August 16, 2017

शिवराज का दरकता जादू

  वर्तमान में घोषित #नगरीयनिकाय चुनाव के परिणामों ने #भाजपा सरकार की दरकती लोकप्रियता को स्पष्ट किया है तो साथ ही भविष्य के गढ़ते नवीन राजनैतिक समीकरणों की ओर भी संकेत दिया है । आशा से परे आए परिणामों ने मुख्यमंत्री #शिवराज सिंह के धड़कनें ज़रूर बढ़ा दी होगी ।  43 नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों में 14 #कांग्रेस और 3 पर निर्दलीय ने कब्जा कर लिया । हालांकि 26 पर #बीजेपी ने दम दिखाया लेकिन शिवराज ब्रांड और सत्ता हाथ में होने के बाद भी 17 सीट हाथ से निकल गई । और सबसे बड़ी बात कि मुख्यमंत्री जी ने इन चुनावों को गंभीरता से  लेते हुए 27 सीटों पर धुआंधार प्रचार किया था लेकिन परिणाम आए तो इनमें से 13 सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है । कहा जाता था कि चुनाव में शिवराज की #सभा भर हो जाए तो सीट बीजेपी की झोली में आना लगभग तय... लेकिन लगता है कि शिवराज जी के जादू को नज़र लग गई । पहली बार शिवराज को इतना बड़ा झटका लगा | भाजपा को अब गंभीर मंथन की आवश्यकता है। अंदरखाने में मुख्यमंत्री बदलाव की कवायद और तेज़ी से शुरू हो गई है | बीजेपी के नेताओ का ही मानना है कि यदि बीजेपी फिर से सत्ता में आना चाहती है तो मुख्यमंत्री का चेहरे में भी बदलाव ज़रूरी है | 
बदले समीकरणों के बीच मुख्यमंत्री बने थे,शिवराज 
      कुछ महीने पहले ही  शिवराज ने सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड कायम किया है | सन 2003 में दस सालाना मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के काम को सिरे से खारिज करते हुए मतदाताओं ने बीजेपी के हाथ में सत्ता सौपीं | बीजेपी सरकार में पहले साध्वी उमा भारती को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली और फिर बाबूलाल गौर के हाथ में सत्ता रही | समीकरण तेज़ी से बदले और नए युवा चेहरे के तौर पर शिवराज सिंह नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री पर काबिज हुए | सत्ता हाथ में आते ही शिवराज का जादू पूरे प्रदेश में दिखने लगा | शिवराज महिलाओं के भैया तो बच्चो के मामा बन गए | कोई भी चुनाव हो तो लगभग जीत बीजेपी के पाले में  ही होती ...| 
     शिवराज ने अपनी मुख्यमंत्री की पारी की शुरुआत तो शानदार अंदाज में की | विनम्र,सहज,सरल संवेदनशील मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज का ग्राफ एक दम आसमान छूने लगा | सफलता की ऐसी झड़ी लगी कि शिवराज के सामने दिग्गज से दिग्गज नेता शुन्य होते दिखे | शिवराज के विकल्प के रूप में दूर दूर तक कोई चेहरा नही था | लेकिन शिवराज अफसरशाही से बचे न रह पाए | डम्पर मामला,व्यापम घोटाला,उज्जैन कुम्भ जैसे कई भ्रष्ट्राचार के मामलों का सच सामने आने लगा | पार्टी के नेताओ से लेकर कार्यकर्ताओं का आक्रोश अब सार्वजनिक होने लगा है |पिछले दिनों किसान आंदोलन ने तो मानो शिवराज सरकार की सारी छवि को तार तार कर दिया |
बदलाव की आहट 
   जल्द बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष #अमित शाह भोपाल में चौपाल ज़माने वाले हैं । पहले ही कयास लगाए जा रहे थे कि चौपाल में शिवराज के विरोध में सुर गूंज सकते हैं लेकिन  नगरीय निकाय के नतीजों के बाद अब तय है बैठक में शिवराज विरोधी भारी पड़ने वाले हैं । #संघ और मोदी-शाह की टीम के द्वारा जमा की गई रिपोर्ट में भी शिवराज का ग्राफ् तंदुरुस्त नही है । वैसे भी शिवराज #मोदी-शाह की गुडबुक में सार्वजनिक तौर पर शामिल हो सकते है लेकिन "वेवलेंथ" मेच नही होती है । पहले ठोस तौर पर माना जाता था कि मप्र में बीजेपी का चेहरा शिवराज के अलावा अन्य कोई हो ही नही सकता लेकिन अब जिस तरह माहौल बना हुआ है,उसमें चेहरा कोई खास हो यह कोई मायने नही रखता । बड़ा संभव है कि जल्द शिवराज की कर्मभूमि दिल्ली बन जाए और आने वाले समय में मुख्यमंत्री निवास में आयोजित  अन्य कोई चेहरा  'दीवाली मिलन समारोह' का मेजवान हो ....।
#mpbjp
#shivrajsinghchauhan
#nagriychunav

Monday, August 14, 2017

आज़ादी - कहीं भगवा और हरा एक न हो जाए


आज़ादी....  लफ्ज़, जिसके पीछे छिपे है ढेरो अधिकार और चंद फ़र्ज़ ...। फ़र्ज़ तो छोड़िए वो निभाना तो हम हिंदुस्तानियों के लिए मानो सबसे बड़ा सिरदर्द है लेकिन अधिकार तो हलक से भी निकालने का हुनर रखते हैं ।
   खैर गोली मारो... फ़र्ज़ और अधिकारों को ...लेकिन कुछ सालों से देख रहा हूँ कुछ असामान्य लोग आजादी का गलत फायदा उठा रहे है । लगातार कुछ मुस्लिम लोग... कोई भी हिन्दू पर्व हो ...मेरे हिन्दू भाईयों से पहले ही पर्व की शुभकामनाएं जड़ देते है ...। नावेद खान,निशात सिद्दिकी, अब्दुल रउफ खान,जुनैद मियाँ, जुबैर,साजिद रतलाम,अनवर(आशु),तालिब मियाँ जैसे कई और मुस्लिम है जो दीवाली हो दशहरा.....होली हो या रक्षाबंधन...कोई भी त्यौहार हो । सबसे पहले मेरे फोन के इनबॉक्स में इनके शुभकामना संदेश बिलबिला जाते है । अरे मुस्लिम लोगो...आपको किसने यह आज़ादी दे दी कि आप मेरे हिन्दू भाईयों से पहले अपनी दिली मुबारक बाद मुझ तक पहुंचा दो । मेरे हिन्दू भाई है तो शुभकामना देने के लिए.....भले ही देर कर दें या फिर मेरा संदेश मिलने के बाद उन्हें याद आए...। जो भी हो वह मेरे हिन्दू भाई है ।
   कुछ हिन्दू भी आज़ादी का गलत फायदा उठाते हैं । देखो न राजेश जैन,जितेंद्र,विनय गुप्ता या फिर नितिन जैन....यह लोग ईद पर सुबह सुबह से ही तालिब मियाँ के घर मुबारक बाद देने जा पहुंचते है । अरे भैया ....तुम क्यों भूल जाते हो कि तुम हिन्दू हो.....। आज़ादी का मतलब यह थोड़ी कि मुस्लिमों को इतने प्रेम और उत्साह से मुबारक दो ....।
   वाकई इस देश में इस तरह के लोग आजादी की गलत परिभाषा गढ़ रहें है । अरे हम तो आज़ाद हैं ....एकता,प्रेम से क्या वास्ता ..। अरे हमें हक बनता है .... गाय गाय खेलने का । हमें हक बनता है बिना बुर्का के महिला को घर से न निकलने देने का ...। हमें हक बनता है नए नए मंदिर मस्ज़िद तलाशें और जमकर एक दूसरे को निशाना बनाए...। मज़ा तो फतवा फतवा खेलने में है । हमारे भाग्य विधाता,मार्गदर्शक नेताओं ने हमे जो सीख दी है वह कतई गलत नही है । आज़ाद हैं हम....। जो मर्जी वो करें...। एकता जैसे शब्द हम अपनी डिक्शनरी में क्यों रखें । धर्म सर्वोपरी....आखिर आज़ादी कहाँ जाएगी लेकिन हमने अभी भी ध्यान न दिया तो कहीं धर्म की वाट न लग जाए । ऊपर वाला तो हम पर टिका है और यदि हम एकता वेकता में उलझ गए तो कही उसका ही अस्तित्व खतरे में न पड़ जाए ।
   चलिए फिलहाल स्वतन्त्रता दिवस मनाने की औपचारिकता पूरी कर लें । अरे चलो देख लेना... यदि कोई मियाँ भाई मिल जाए तो मजबूरी में चिपका दो मुबारक़ बाद ..।
  15 अगस्त विदा होते ही नेता जी के मंशानुसार निपटते है । खैर अभी आजादी के तरानों पर झूम लिया जाए फिर 26 जनवरी तक तय मुद्दों पर आगे बढ़ेंगे
 आज़ादी....ज़िंदाबाद.......
#mp
#azadi
#independenceday
#15august

Sunday, August 13, 2017

प्रधानमंत्री कार्यालय से मुझे एक मेल प्राप्त हुआ । जिसमें पीएम के  स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले भाषण के लिए इनपुटओ मांगे गए हैं । मैंने अपने सुझाव के तौर पर प्रधानमंत्री ऑफिस को लिखा कि इस बार इन्कम टैक्स-जीएसटी का भय जो देश में बन चला है,उसको खत्म करने का प्रयास करें । साथ ही चौपट होते बाजार और बढ़ती बेरोजगारी को लेकर ठोस घोषणा करें । आम जनता तो कई बार 'इनपुट दे चुकी..कृप्या अब आप 'आउटपुट' दीजिए
 आवश्यकता है कि प्रधानमंत्री तक सतही हकीकत को रखा जाए । सम्भव है कि सुझाव मान्य न हो या फिर आम हो लेकिन कम से कम पीएमओ तक बात तो पहुंचेगी

Saturday, August 12, 2017

मुखिया जी का शिक्षा तंत्र


मप्र की राजधानी से सटा जिला ...। जिला भी खास क्योंकि यह बड़े नेता जी का गृह जिला जो है । इस जिले की मिट्टी में होने वाला शरबती गेहूं तो देश से लेकर विदेशों तक मशहूर है । कई दफा टीव्ही विज्ञापनों में भी यहाँ के शरबती गेहूं का ज़िक्र आता रहता है |  कुल जमा खेती किसानी ही ज्यादातर लोगों की रोज़ी रोटी की जुगाड़ है ।
         जहाँ नेता जी ने जन्म लिया उसी जिले में ही था 'चिन्नी' का गाँव | छह साल की ‘चिन्नी’ अपनी माता पिता की इकलौती बेटी थी । पिता मदन के बहुत बड़े अरमान न थे बस यही चाहता था कि चिन्नी पढ़  लिख कर 'मास्टर' बन जाए और अपने ही गांव में रहकर ही बच्चो को पढ़ाए । क्या बनना और क्या नही ...इससे चिन्नी को तो कोई सरोकार न था बस चाहती तो सिर्फ इतना कि स्कूल में जाकर पढ़ लें । पढ़ना पहला शौक था, चिन्नी का ..। किताबों में छपे सुन्दर सुन्दर चित्र और कहानियां चिन्नी को बहुत भाती | किताबें तो जिद करके मदन से उससे मंगवा ली थी लेकिन पढ़ाने वाला कोई नही थी ।
         दरअसल जिस गांव में चिन्नी थी... वहां स्कूल तो था लेकिन वीरान....। मास्साब 15 से 20 दिन में एक बार आते और सरपंच साहब के घर चाय गटक अपनी परचून की दुकान का सामान लेने राजधानी का रुख कर लेते । गांव में रहने वाला भृत्य भीमा था रोज़ सुबह स्कूल का ताला खोलता और एक - दो घण्टे में समान समेट कर वापस अपनी खेत की ओर रास्ता नाप लेता ..
        गांव में कई बच्चे थे । मास्साब की गैरहाजरी के चलते पढ़ाई तो सिर्फ कागज़ों पर थी । बच्चे दिन भर सिर्फ धमाचौकड़ी करते । पढ़ाई को लेकर चिंन्नी का मन बहुत होता लेकिन सिर्फ स्कूल की खण्डर होती बिल्डिंग को देखकर ही खुश हो लेती । सरपंच साहब का हिस्सा मिल जाता तो वह भी शांति पकड कर सारी स्थिति को दरकिनार कर देते | अफसरों से गाँव वालो ने पहले कई बार शिकायत की लेकिन वो झाड मिली की अरमान तिलमिला का वहीँ ठंडे हो गए | चेतावनी भी मिली कि....’..ज्यादा नेतागिरी में न पड़ो...कायदे में रहोगे तो,फायदे में रहोगे’......|
     नदी कल्याण कार्यक्रम के चलते मुखिया जी का उसी गाँव का दौरा तय हो गया | सब कुछ चकाचक होने लगा | ऐसा लग रहा था कि इस बार दिवाली ने अक्तूबर – नबंवर महीने का मोह छोड़ कर जुलाई का रुख कर लिया हो | स्कूल में अचानक तीन मास्साब आ गए | आज सबको पता चला कि स्कूल में तो तीन - तीन शिक्षक की तैनाती है | खैर ...गाँव के सभी बच्चो को आदेश हुआ कि कल से स्कूल आना ज़रूरी है | साथ ही माँ बाप को भी सख्त हिदायत कि बच्चो को याद से स्कूल भेंज दें नही तो राशन की दूकान से इस बार राशन न मिलने वाला..।
   आज शाम पांच बजे मुखिया जी की सभा थी | गाँव दुल्हन की तरह शर्मा रहा था तो स्कूल तय समय पर खुल गया था | कल ही मिली झकाझक स्कूल यूनिफार्म पहनकर बच्चे ख़ुशी से फूल के कुप्पा हो रहे थे | चुन्नी इसी में ख़ुशी थी कि चलो उसका पढने का शौक अब पूरा होगा | मास्साब तेज़ आवाज में पहाड़े सिखा रहे थे और बच्चो का ध्यान नई मिली यूनिफार्म पर था | मुखिया जी की सभा की तैयारी में जुटे जिले के बड़े अफसर ने लगे हाथ स्कूल का निरीक्षण कर औपचारिकता करने की ज़हमत भी कर दी | साफ़ साफ़ कपड़ों में करीने से बैठे बच्चे... | शिद्दत से पढ़ाते मास्साब ...| बोले तो सब कुछ बेहतर..बेहतरीन....|

      मुखिया जी आए | अफसरान ने क्षेत्र की जानकारी में स्कूल की रिपोर्ट भी जोड़ दी | मंच से मुखिया जी ने दोहरा दिया वह सब कुछ जो उन्हें समझा गया था | मुखिया जी जोश खरोश से बोले ...कलेक्टर ने बताया कि स्कूल कितनी अच्छी तरीके से चल रहा है ...मन बाग़ बाग़ हो गया ....खुश हूँ कि मेरे भांजा - भांजी  खूब पढ़ लिख कर गाँव- प्रदेश और देश का नाम रोशन करेंगे ...आज वाकई मन प्रसन्न है कि जो गाँव गाँव तक शिक्षा पहुंचाने का प्रण मैंने लिया था....आज वह रंग लाया है .....’’| मुखिया जी धारा प्रवाह बोलते गए ..| ताली पिटती रही और खुद की पीठ थपथपाते अगले गाँव के लिए मुखिया जी काफिला निकल पड़ा... |
      काफिला अगले गाँव पहुंचा ही होगा और यहाँ चुन्नी सहित सभी बच्चो को दी गई यूनीफार्म वापिस ले ली गई | हेड मास्साब को दुकान के लिए देर हो रही थी | इसलिए फटाफट सरपंच साहब को आज पूरा मामला सेट करने में मदद के लिए धन्यवाद पकडाया और साथ ही घोषणा कर दी कि अब महीने के अंत में ही आना हो पायेगा | शादी का सीजन है तो दुकान पर ज्यादा समय देना पड़ता है और वाकी के दो जो अन्य शिक्षक है उनको भी अपनी निजी कोचिंग से अभी फुर्सत नहीं है |
                   अगली सुबह स्कूल फिर वीरान था | भीमा ने स्कूल का मुख्य दरवाजा खोलकर आज की बोनी कर दी थी | चिन्नी तय समय पर स्कूल पहुंची लेकिन न मास्साब थे और बच्चे ....| चिन्नी बस यही सोच रही थी कि मुखिया जी ने उसके स्कूल की तरीफ क्यों की ......|

फिजाओं के नारा बुलंद हो रहा था ..’’उफ्फ यह......तंत्र’’

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...