Saturday, July 29, 2017

भाषण,सपनें और हक़ीकत

“गुलाबचंद” .... यही नाम था इस नौजवान का | “गुल्लू” से शुरू हुई जिन्दगी ‘गुलाब” से होती हुई बड़ी जल्दी “गुलाब चंद” तक आ पहुंची | गुलाब चंद के हाथो में इंजीनियरिंग की डिग्री फडफडा रही थी तो दिल में भविष्य के सपनें कुलांचे मार रहे थे | गुलाब ही नहीं पिता मेहलू को भी भरोसा था कि “मामा” के राज़ में सपनों को पंख देना आसान है | जूते चप्पल की मरम्मत करते हुए बेटे के सुनहरे भविष्य का सपना गढ़ता चला गया | 
कुछ महीनों पहले ही तो “मामा” आए थे गाँव में | खूब जोरदार इस्तकबाल हुआ था | मेहलू भी पीछे न था | मेहलू ने अपनी दुकान की छुट्टी कर दी | मंच से मामा ने जैसे ही कहा कि “ मेरे भांजे – भांजियों चिंता मत करना ..तुम्हारे मामा की सरकार है ...स्वरोज़गार के लिए बिना गारंटी के सस्ता लोन दूंगा” | सबसे तेज़ ताली की आवाज मेहलू की थी | आज तो पैर जमीन पर नहीं थे उसके | सपना था कि बेटा कोई बड़ा उद्योग खड़ा करे | गुलाब चंद ने भी अपने पिता के तरह बड़ा सा जूते चप्पल बनाने का कारखाना आँखों में बसा रखा था |
डिग्री थामे गुलाब बड़े ही धाक और भरोसे से बैंक की दहलीज पर पहुंचा | मेहलू तो बस बेकरार था कि बस शाम तक गुलाब बैंक से लोन का चेक थामे ही लौटेगा | आज से इस काम से मुक्ति अब वह भी शान से जिन्दगी गुजर बसर होगी | बार बार दुकान में लगे ‘’मामा’’ के पोस्टर को देखकर हर्षित हो जाता और कान में ‘’ तुम्हारे मामा की सरकार है’’ शब्द गूंजने लगते |
उत्साहित-विश्वास से लबरेज़ गुलाब ने बैंक मैनेजर को अपने सारे ज़रूरी कागजात का पुलिंदा पकड़ा दिया | मैनेजर साहब ने कागज देखने का ज़हमत भी न उठाई और बाहर वाले चेम्बर में बैठे शर्मा जी से मिलने का हुक्म सुना दिया | शर्मा जी आज फुर्सत में न थे | 15 दिन बाद आने की बात कह चाय की दुकान की राह पकड ली |
15 दिन बीते और गुलाबचंद बैंक में जा धमका | लेकिन कभी यह कमी तो कभी वह कमी | कभी गारंटी की मांग तो कभी और कोई बहाना | अगले 4 महीने तक बैंक और घर की राह,यही दिनचर्या थी गुलाब की | अंत में बैंक ने गुलाब चंद को शुक्रिया कहकर फायनली बाहर का रास्ता दिखा दिया | मेहलू का पारा आसमान पर | 'मामा' ने कहा था ..ऐसा हो ही नहीं सकता | गुलाब की मनाही की बाबजूद मेहलू बैंक जा धमका ...मैनेजर ने साफ़ साफ़ कह दिया “हम तो लोन नही दे सकते ..मामा से ही ले लो”
झटका था लेकिन भरोसा अभी भी किसी कोने में अडा था | तहसीलदार साहब से लेकर कलेक्टर और विधायक जी तक मेहलू ने कदम रगड़े लेकिन सभी माननीय ‘’आवेदन लेकर आश्वासन’’ की पुडिया निशुल्क पकडाते रहे | गुजरते वक्त और आश्वासन से बनी झिडकियों ने मेहलू को भाषणों और राजनीति की हक़ीकत समझा दी | सपनों को ताक पर रख जैसे तैसे हाथ पैर जोड़कर मेहलू ने गुलाबचंद की नौकरी पटेल साहब के ट्रेक्टर शो रूम पर लगवा दी | गुलाबचंद भी सालों के पाले मुगालते को छोड़कर दो जून की जद्दोजहद में जुट गया |
मेहलू फिर से अपने पुश्तैनी काम में मन मार कर जुट गया | पोस्टर आज भी लगा था | बीच से फट कर फडफडा रहा था लेकिन अब मेहलू का ध्यान पोस्टर पर नहीं बल्कि जूतों पर था | और टीव्ही पर विज्ञापन चीख रहा था ..’’मामा बैठा है मेरे भांजे-भांजियो कोई दिक्कत नही होने दूंगा’’

Monday, July 24, 2017

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय और चूहों का सुरक्षित ठिकाना

                                  शहर के  चूहों की चुहलबाजी बंद थी | परेशान कि रहने का कोई सुरक्षित ठौर ठिकाना न था | बैठक हुई ठिकाने को लेकर | बुजुर्ग चूहें सोच सोच कर हालाकान लेकिन हल न था | तभी आवारा छिछोरे टाइप चूहे ने बिन मांगी सलाह देते हुए चलती बैठक में अपनी भी मौजूदगी दर्ज करा दी | चूहे ने दमदार आवाज में कहा कि उसके पास एक जगह है जो बीते तीन साल से सुनसान और उजाड़ हालत में है और अगले एक साल तक भी रौनक की कोई आशा नही |  

   बूढ़े चूहे चौंक गए | सवाल आता उससे पहले ही गर्व से सीना फुलाते हुए जवान चूहे ने जबाब भी सभा की ओर उछाल दिया ..’प्रदेश कांग्रेस कार्यालय’ | बुजुर्ग चूहे सन्न रह गए | वाकई छिछोरे ने छक्का मार दिया | लोकसभा चुनाव के बाद यह कार्यालय कभी कभार ही रोशन हुआ वर्ना ज्यादातर तो दीवारें आपस में ही बतियाती रहती हैं |

  तभी एक बुजुर्ग चूहे ने सवाल दे मारा | सुना है दिग्गी राजा मैदान में उतरने वाले है तो ज़ाहिर है फिर हमें जगह बदलनी पड़ सकती हैं | उत्तर आया जवान चूहे की तरफ से ‘देखते जाओ ..सब आएंगे लेकिन अपनों के द्वारा ही लौटा भी दिए जाएंगे | मुख्यमंत्री की कुर्सी का अरमान सब पाले है | एकाधिकार की मंशा चरम पर है | हालात यह है कि अपना दही जमे या या न जमे लेकिन दूसरे का तैयार रायता ज़रूर फैलना चाहिए’ |

    जवानी से भरपूर चूहा आज तो लग रहा था कि थमेगा नही पूरा ज्ञान उंडेल देगा | खैर चूहे ने ज्ञान को आगे बढाते हुए कहा ‘भैया इनसे न हो पाएगा ....अब आप ही देखो जितनी दिशाएं उतने गुट | हार के बाद भी जीत हो या न हो लेकिन सामने वाला गुट आगे न आ पाए’ | चूहे ने पहलू  बदलते हुए अपनी बात को ज़ारी रखा ..’कोई भी महारथी टिक पाया ?...जिनको पार्टी की जिम्मेदारी मिली है वो ‘गुलचुप’ ...मतलब की होना या न होना बराबर | चुनाव की आहट के साथ छिंदवाडा के अरमान जागे लेकिन दिल्ली और नेशनल हाइवे से लगे क्षेत्रों ने ही हवा निकाल दी | केंद्र में बेराजगार होने के बाद महाराजा साहब के अरमान जागे थे लेकिन क्या हुआ चंद दिन में ही अपनी रियासत की ओर कूच कर गए | अब राजा साहब फिर अपने बीते दिनों का सपना लिए वापिसी करने का तानाबाना बन रहें है लेकिन दूसरे गुटों ने उस सपने में दखल देने की तैयारी भी कर ली होगी | और इन सबसे परे ‘पप्पू’ का ‘चप्पू’ भी चुनावी नैया को पार लगाने का काम संजीदगी से न कर पाया |

      जवान चूहा बोले जा रहा था लेकिन अब उसका स्वर गंभीर हो चुका था ...’स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि मजबूत विपक्ष हो’ लेकिन मप्र में तो लगता है कि विपक्ष को बजाय सत्ता पक्ष को नियंत्रित करने के आपस में ही लंगड़ी फ़साने में ज्यादा आनंद आता है | सरकार बेकाबू लेकिन आम मतदाताओ के पास विकल्प ही नहीं है | यह बिडम्बना है ...’

   खैर छोडो ..अब चूहे की आवाज में भरोसा था | देखो,चुनाव को अभी समय है तब तक यहाँ कोई नहीं झाँकने वाला | सब अपने अपने इलाकों में ‘रायता फैलाओ,प्रतियोगिता में व्यस्त रहेंगें | अब यह कार्यालय चुनाव में ही रोशन होगा तब तक के लिए हमारे सबसे सुरक्षित जगह यही है |

  आज छिछोरे और आवारा चूहे की सलाह और तर्क शक्ति के आगे सब बौने पड़ गए | सबको यह विकल्प बहुत भा गया | खुश खुश चूहे अपने सुरक्षित ठिकाने की ओर कूच करने लगे

Friday, July 21, 2017

मुखिया जी का ज्योतिष प्रेम

                   बड़ी झील से सटे पहाड़ी पर मौजूद एक बंगला । अलसुबह यह शानदार बंगला तो शांति पकड़े था लेकिन बंगले में मौजूद सेवादारों के चेहरे पर तनाव साफ साफ कबड्डी खेल रहा था । सबसे ज्यादा हैरान परेशान टेलीफोन ऑपरेटर था । बेचारगी के भाव से उसकी उंगलियां फोन पर चस्पा नम्बरों पर बार बार कूद रही थी लेकिन शायद इस मेहनत मशक्कत के बाबजूद वह मिले लक्ष्य को हासिल नही कर पा रहा था । भुनभुनाते हुए बोला "क्या यार रोज़ का यही पंगा" । टेलीफोन ऑपरेटर की भुनभुनाहट सेवादारों के कान में भी जगह बना गई । एक सेवादार ने भी ऑपरेटर के सुर में सुर मिलाया । "सही है यार,इस पंडित से कई बार बोला कि सुबह फोन पर ही रहा कर लेकिन रोज़ की उसकी यही नौटँकी है । बौखलाहट,भुनभुनाहट,तनाव का माहौल चरम पर था कि अचानक फोन की घण्टी खनखना उठी । गजब चमक थी फोन ऑपरेटर के चेहरे पर । भाव ऐसे कि भाई ने अभी अभी पाक को परास्त कर दिया हो । ऑपरेटर चीखता हुआ सा बोला "जल्दी आओ,पण्डित का फोन..." । घोषणा खत्म भी न हो पाई थी फोन का रिसीवर छीनकर मुख्य सेवादार बरस पड़ा "पण्डित घर बैठा के दम लोगे क्या ? छत्तीस दफा कह चुके है कि रोज़ सुबह पहले ‘’मुखिया जी " से बात कर लो फिर कुछ और करो । "तो साहब क्या 'नित्यकर्म' भी न करूँ, सुबह से तो आप लोग पकड़ लेते ...." । पंडित की बात विराम लेती उससे पहले से सेवादार ने रोक दिया "चलो छोड़ो सब, पहले मुखिया जी से बात करो" । तनाव बाहर का ही मेहमान न था बल्कि अंदर कमरे में मुखिया जी के साथ भी मौजूद था । पण्डित के इंतज़ार में मुखिया जी पहलू बदल बदल के सोफ़े पर बिछे कपड़े पर सैकड़ों सिकडुन पैदा कर चुके थे । 
"जय राम जी की पण्डित जी" आए हुए फोन पर मुखिया जी ने जबाब दिया । तो पंडित जी आज क्या बोल रहे हैं ग्रह नक्षत्र ? पण्डित के पास जबाब तैयार था ‘यजमान आज की पहली बैठक 11 बजे से रखना है’। यजमान दिल्ली थोड़ा परेशान कर सकती है लेकिन अनुष्ठान जारी है और "माह हो या फिर गोदी" फिलहाल कुछ न कर पाएंगे । और हां यजमान जो पुराना अनुष्ठान था वो समाप्त कर दूं क्योंकि काम तो हो ही गया या फिर सुप्रीमकोर्ट के मसले के बाद ? .... मुखिया जी ने चुप्पी तोड़ी ‘पण्डित जी दिल्ली पर नज़र रखो’। दो तीन अनुष्ठान करवा दो कुछ भी हो बाजी अपने ही पाले में रहना चाहिए । और "वो" वाला अनुष्ठान फैसले तक चलने दो । मुखिया जी ने राहत की सांस ली और फोन को शांत होने की अनुमति दे दी । तभी पत्नी कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए बोली "सूख के छुआरा हो रहे हो,मत करो चिंता बीते 12 सालों में कोई कुछ कर पाया " । आप तो राजयोग लेकर आए हो और बाकी सब पंडित जी पर छोड़ दो । 
क्या गलत है । मुखिया जी का सुखद अनुभव रहा है | देखो क्या बढ़िया समीकरण बैठे कि सिर पर अचानक ही पके आम की तरह " मुखिया का ताज" आ जमा । कई कद्दावरों ने "कुर्सी की कसक" दिखाई लेकिन ग्रह नक्षत्र,अनुष्ठान से ऐसा सबक सिखाया कि भाई लोग कही के न रहे । "माह - गोदी" सब पर कितने भारी हो लेकिन साहब की किस्मत के आगे तो "लल्ला लल्ला लोरी " गा उठते है ।
मुखिया जी ने तय कर लिया है कि अब उनके साथ साथ आम जन के बीच भी ज्योतिष को बढ़ावा दिया जाएगा | पहला फरमान भी जारी हो गया है कि अब डॉक्टर बाबू के साथ सरकारी अस्पतालों में "ज्योतिषाचार्य" भी बैठेंगे । ज्योतिषाचार्य कैंसर से लेकर नजला ज़ुकाम तक का इलाज अब "बुध,गुरु,शनि करेंगे । न दवा की ज़रूरत और न सर्जरी । अब तो अंगूठी,नींबू-मिर्च',रत्न,अनुष्ठान से सब मंगल होगा । ज्योतिषियों की कमी न पड़ जाए इसलिए इस विधा को पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ डिप्लोमा कोर्स भी शुरू करवा दिए हैं । अब चाय,पान की तरह ज्योतिष केंद्र हर जगह उपलब्ध होंगे । 
शुभ मुहूर्त आ चुका था जब साहब को देहरी पार करना था । साहब अपने कमरे से निकले और मुख्य द्वार पर नज़रें जमा दी । नीबू- मिर्ची ताज़े ताज़े लगे मुस्करा रहे थे । साहब ने तसल्ली की और मंत्र बुदबुदाते सरकारी गाड़ी में जा जमे । चालक ने भी स्टेयरिंग को प्रणाम करते हुए गाड़ी को मंजिल की ओर बढ़ा दिया । साहब थोड़ी जल्दी में थे । जल्दी जल्दी सारे काम मुहूर्त में जो निपटाने थे .....।

Saturday, July 15, 2017

मोदी,शाह और मामा का खौफ

मोदी,शाह और मामा का खौफ 😳
- आशीष चौबे
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      दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री निवास पर कुछ ज्यादा ही शांति थी । बन्द कमरे में मोदी और अमित शाह थे । मोदी अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक टक छत की ओर देखे जा रहे थे । शाह की आंखों में रोज़ की तरह चमक न थी बल्कि चिंता थी । सन्नाटे को तोड़ा आखिरकार अमित शाह ने .....

       कहा था न हल्के में न लो लेकिन आपको तो किसी के न सुनने की बीमारी सी है । लगभग चिड़चिढाते हुए अंदाज में शाह बोले ।

      पूरी ताकत लगाकर मोदी ने जुबान हिलाई और बुदबुदाते हुए बोले तो मुझे लगा ही नही कि वो ऐडा बन कर पेड़ा खा रहा है और फिर तुमने भी तो कहा था कि "मामू" ही है वो तो ।

"पहले मुझे भी लगा था कि वह "मामू" है लेकिन उमा के बाद जब कैलाश के अरमान ठंडे किए तब मुझे अहसास हो गया था कि चेला आडवाणी का है लेकिन गुरु से एक कदम आगे है" शाह ने मोदी को घूरते हुए कहा ।

    आप बस ताली पिटवाते रहो, विदेश घूमो,मित्रो मित्रो करो और इधर "मामू" ने उमा,राघवजी,कैलाश विजयवर्गीय,प्रभात झा,कमल पटेल,अजय विश्नोई,अनूप मिश्रा,लक्ष्मीकांत शर्मा,बाबूलाल गौर,सरताज सिंह और लो अब नरोत्तम मिश्रा का भी फट्टा साफ कर दिया"

   मोदी और असहज हो गए । सफेद दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए खरखराती आवाज में बड़बड़ाए तो उन सबके अरमान तो सीएम के थे इसलिए "मामू" के निशाने पर आ गए लेकिन मैं थोड़ी अब सीएम बनूँगा तो मुझे क्यों डरा रहे हो ।

    मोदी की इस बात पर शाह खीज से गए । अरे सीएम तो नही बनना लेकिन आपने ने भी उसके कम मज़े नही लिए और फिर वह अपने गुरु आडवाणी का बदला भी तो ले सकता है ।

    मोदी के कठोर चेहरे पर दयनीयता के भाव आ गए । सूख चुके होंठ पर जुबान फिराते हुए मोदी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन जुबान ने साथ नही दिया । बस जुबान से सिर्फ़ इतना ही निकल पाया "तो अब"

     तो अब क्या अपनी शीशे जैसी चमकती चांद पर हाथ फेरते हुए शाह ने बुरा सा मुँह बनाया ।

  कामाख्या वाले पंडित से बात की है । कल से अनुष्ठान करेगा । अपनी पत्नी को भी बोला है कि "मामी" को शीशे में उतारो । खास प्रमुख सचिव है प्रदेश के उनसे मिलने का समय भी लिया है"।

 बाकी हरि इच्छा......

  कमरे में सन्नाटा फिर से छा गया । मोदी सामने रखी शिव प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े खड़े थे और शाह अपने महंगे मोबाईल पर "मामा" के करीबियों के नम्बर तलाशने में जुट गए ।
नोट - पोस्ट के सभी पात्र काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है
😜😜🙏🏻😜😜

Wednesday, June 28, 2017

सियासत और मोहरे बनते हम

                          बीता सोमवार काफी मानसिक प्रताड़ना से भरा रहा | ईद के उत्सवी माहौल का मज़ा किरकिरा हो गया | जो हुआ उसकी कतई आशा न थी | इस प्रताड़ना के लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं | मेरी सार्वजनिक रूप से मांग है कि प्रताड्ना के दोषी मोदी जी को माफी मांगते हुए तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए | मसला छोटा होता तो शायद चुप हो कर सह जाता लेकिन जो हुआ वो बिलकुल तोड़ देने वाला अनुभव रहा है | 
दरअसल कुछ हुआ यूं कि सोमवार को ईद थी | ईद के पाक मौके पर हमारे मित्र एवं पड़ोसी श्री राजेश जैन साहब ने अचानक वाट्सएप के माध्यम से एक निजी संदेश ज्ञापित किया | संदेश का मजमून था कि वह सलमान खान की फिल्म ''ट्यूबलाइट'' दिखाना चाहते थे वह भी अपने खर्चे पर | लाज़मी था कि ''मुफ्त के चंदन,घिस मेरे नंदन'' को ध्यान में रखते हुए तत्काल हामी की मुहर हमने भी ठौंक दी | तय हुआ सभी मित्र सपरिवार शाम को ''ट्यूबलाइट'' की चमक देखने जाएँगे | हालांकि जाने से पहले कुछ अन्य मित्रों ने थोड़ा सतर्क भी किया लेकिन छोड़िए ''दान की बछिया के दांत कौन देखता है'' | ठीक 8 वाले शो में मित्र मंडली जम गई रूपहले पर्दे के सामने | चंद मिनिट ही बीते होंगे और सब पहलू बदलने लगे | अपना तो यह हाल हो गया कि आगे की फिल्म को झेलना ही भारी हो गया | हालात कुछ ऐसे बने कि फिल्म खत्म होते होते तक दिमाग जबाब दे गया | मन हुआ कि खूब गरियाया जाए सलमान और कबीर खान को लेकिन फिर अचानक दिमाग की बत्ती जली अरे यह निर्माता,निर्देशक या फिर नायक की गलती नहीं है बल्कि इसके लिए तो जिम्मेदार मोदी होंगे | सलमान मोदी के खासमखास में शुमार होते है | खूब पतंग उड़ाते है दोनों | अब जब सत्ता में मोदी है तो सल्लू इसका फायदा उठाकर अपनी फिसड्डी फिल्म को भी हम पर थोपना चाहते है | मोदी और सल्लू की मिलीजुली साजिश है | फिर क्या था पके पकाए हमने अपनी मांग को बुलंद कर दिया | 
पढ़कर आप सोच ज़रूर होंगे कि फिल्म को लेकर क्या मूर्खतापूर्ण आरोप है मोदी पर | सही है आप लेकिन आजकल स्थिति यही है | हर उतार चढ़ाव के लिए हम अपने हिसाब से किसी एक को जिम्मेदार ठहरा कर मामले से इतिश्री कर लेते है | दरअसल हम सियासत को समझते ही नही है बल्कि वो सब कुछ समझते है जो हमें नेता,मीडिया या फिर सोशल मीडिया समझाना चाहते है | आज हम सियासत की शतरंज पर चलने वाले मोहरे बन कर रह गए हैं | असलियत से परे महज अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मीडिया अपने लिहाज से खबर परोसता है तो नेता अपने हिसाब से तर्क बुनकर हमारे दिमाग में अपनी बात ठूंस देते है | बची खुची कमी सोशल मीडिया में प्रायोजित पोस्ट हमारे दिमाग में जड़ें जमा कर पूरा देती है | दाद देनी पड़ेगी हमारे दिमाग की कि बिना कोई तथ्य जाने,बिना कोई तर्क किए एक अच्छे श्रोता की तरह स्वीकार भी कर लेता है और फिर जो हमें ज्ञान दिया गया है उसी ज्ञान को हम भी आगे थोपना शुरू कर देते है | आश्चर्य है कई मासूम लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी को फांसी होती है तो अतिज्ञानियों के ज्ञान मे आकर हम भी आतंकियों के प्रति सहानभूति दिखाने लगते है | कश्मीर में पत्थरबाजो के बचाव में कई तर्क तो शहीदो के सम्मान में महज ''RIP'' लिखकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा लेते है | स्वछता अभियान हो या फिर डिजिटल इंडिया हम अपनी फर्ज़ को परे रख हर छोटे मोटे मसले के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ देते है | मसला कुछ भी हो सीधे सीधे मोदी जिम्मेदार ? केंद्र सरकार को हर मोर्चे पर असफल करार देने का सर्टिफिकेट तत्काल बांटने लगते है बजाय यह जानने के असलियत क्या है | जीएसटी को कितना समझा लोगो ने लेकिन विरोध मे पिले पड़ें है | यदि विरोध तर्क के साथ हो वाकई सार्थक नही तो निरर्थक | सिर्फ धर्म,जाति,वर्ग के आधार पर ही अपना विरोध बुलंद कर देना कोई समझदारी नही | इसका मतलब कतई यह नही कि पक्ष सही है या विपक्ष गलत | खेल दोनों खेल रहे हैं लेकिन मुद्दा यह है कि हम क्यों मोहरा बनते रहते है | हम वही क्यूँ सोचते- बोलते है जो हमारे दिमाग में भर दिया जाता है | क्यूँ सच को नही देखना चाहते | सही समय है अब सूचना विज्ञान चरम पर है | फायदा उठाएँ इस क्रांति का | स्थितियों और परिस्थितियों को ठीक तरह से बूझें | सच के साथ चलें और सच को ही आगे बढ़ाएँ | मजबूत लोकतन्त्र और विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि हम सब मोहरा न बनें बल्कि सजग भारतीय के रूप में अपनी महत्बपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराएं |

Saturday, June 24, 2017

किस्मत के आगे पस्त होते मुख्यमंत्री पद के दावेदार

शिवराज वाकई में तकदीर के शहंशाह है | शिवराज जी के अब तक के कार्यकाल में कई बार कुर्सी जाने की चर्चाओ का बाज़ार गर्म हुआ | कुर्सी के दावेदारों के नाम भी हवा मे तैरते रहे | लेकिन कमाल देखिए, जो नाम सबसे मजबूती से उभरा वह नेता शिवराज जी की किस्मत के आगे तनिक भी नही टिक पाया | वह नाम मुख्यधारा से सीधे हाशिए पर पहुँच गया या फिर अन्य किसी बजह से रेस से बाहर हो गया | मसलन लक्ष्मी कान्त शर्मा,कैलाश विजयवर्गीय,अनिल दवे,सुष्मा स्वराज आदि आदि ...| फिलहाल प्रदेश के सियासी हल्कों में फिर से नए समीकरण बन रहें हैं | ऐसे में मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा को एक वर्ग भविष्य का सीएम के रूप में देख रहा था | लीजिए.......क्लीन बोल्ड |
                                सूत्र कह रहे है कि जल्द बड़ा बदलाब होना तय है और कुछ नेताओ के नाम फिर फेहरिस्त में .... मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का ख्वाब बुन रहे इन दावेदारों पर खुदा थोड़ा रहम करे........

Wednesday, June 21, 2017

डिजीटल होता देश और सियासी सोच का दिवालियापन

                   ''मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है'' यह वो सरकारी विज्ञापन है जो रोज़ दीन दुनिया की खबर जानने की मंशा से टीव्ही चालू करते ही या फिर कुछ समय के भीतर ही सुनने - देखने को मिल जाता है | दिमाग अचानक खबरों से हटकर बदलते भारत को तलाशने में लग जाता है | चंद पल ही सही लेकिन लगता है कि मेरा देश काफी तेज़ी से बदल रहा है | ताज़ा ताज़ा देखे इस  विज्ञापन को लेकर दिमाग में बदलते भारत की तस्वीर उमड़ घुमड़ रही होती हैं कि अचानक ''स्वच्छ भारत,एक देश - एक कर,डिजिटल इंडिया,मेक इन इंडिया'' जैसे बहुत सारी योजनाओं के विज्ञापन में  अमिताभ बच्चन,शिल्पा शेट्टी,विद्या बालन,प्रियंका चौपडा जैसे बड़े सितारे अपनी  उपस्थिति दर्ज़ करते दिख जाते  है | यह  फिल्मी सितारे अजीब अजीब से चेहरे पर भाव लाकर देश मे क्रांतिकारी बदलाव के सत्यता पर मुहर लगाते है | हालांकि उनकी यह मुहर सरकारी कोष से दिये गए करोड़ो के फीस के बदले लगाई गई होती है | 

                      वाकई देश बदल गया ? देश में जगह जगह मोदी फेस्ट के दौरान दावे किए जा रहें है कि लोग अब  पेमेंट आन लाईन करने लगे हैं | कचरे  ने हरे नीले डस्टबिन की दिशा तय करना शुरू कर दिया है | युवा स्टार्टअप में जुट गए है | मेक इन इंडिया ने देश को तेज़ी से विकास के पंख दे दिए | विदेशों में भारत को लेकर सकारात्मक माहौल बना है | ठीक है साहब आपके दावे सर आँखों पर लेकिन क्या नेताओ की सोच में भी कोई अंतर आया ? उफ़्फ़,काश इन नेताओं की सोच बदलने का कोई  अभियान चला होता तो बेहतर था | यह विडम्बना ही है कि देश से जुड़े सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए गुण नही बल्कि जाति को लेकर सियासी दलों में तूफान मचा है |  देश के राष्ट्रपति पद के लिए नए समीकरण तय हो चले हैं |  कहा जा रहा है कि बीजेपी ने दलित उम्मीदवार को मैदान में उतार कर बड़ा दांव खेल दिया है तो विपक्ष इसके काट के लिए हैरान परेशान है | राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए क्या यही पैमाना बनकर रह गया है | किसी ने उम्मीदवार के गुण - दोष को लेकर चर्चा नही कि लेकिन जाति कार्ड को लेकर हलाकान | यह हमारे देश के राजनेताओ की सोच है | सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक को साधना ही प्राथमिकता है | देश डिजिटल होकर क्या विकास कर लेगा जब तक कि जात-पात,वर्ग,मजहब इस देश के रगों में विष बनकर दौड़ता रहेगा | इससे क्या वाकई में दलित समाज का भला हो जाएगा ? मेरे कई सहयोगी है जो सवर्ण समाज के नहीं है लेकिन उन्होने अच्छा मुकाम हासिल किया है | यह मुकाम आरक्षण व्यवस्था से नही बल्कि अपनी योग्यता से पाया है  | आरक्षण से वाकई में पिछड़ा,दलित - आदिवासी वर्ग  की प्रतिभाओ का अपमान ही हुआ है | आरक्षण को सियासी मुद्दा बनाकर सिर्फ और सिर्फ नेताओ  को ही लाभ मिला है | आरक्षण ने दलितों को उनकी प्रतिभा को उभारने के बजाय उल्टा अपना  मोहताज ज़रूर बना दिया |  क्यूँ सियासतदाँ महज़ अपनी हल्की सियासत के लिए इस देश की  ठोस विकास की राह को अवरुद्ध कर रहें हैं | ज़रा सोचिए,हमारे देश को विदेशी कभी सपरे - मदारी का देश कहते थे | इसमें बुरा मानने की क्या बात है | सच ही तो था पहले हम बंदर,साँप भालू का खेल दिखाते थे और समय बदलने के साथ अब आज हम  नेताओ की उँगलियों पर खेलने लगे हैं  | 

       ''सोच बदलिए,देश बदलेगा'' ...सिर्फ नेताओ को ही दोषी करार देना मुनासिब नहीं बल्कि हम सबको भी अपनी सोच बदलना होगी | तय कीजिए कि हमारी सकारात्मक सोच पर गंदी सियासी सोच हावी न पड़े | प्राथमिकता,प्रतिभा को ही मिले और अवसर उनको जो योग्य हो | तभी ''मेरा देश बदलेगा भी और आगे भी बढ़ेगा''

उदासी में श्यामला हिल्स

श्यामला हिल्स स्थित बँगलें पर शांति थी ..वो भी शांत थे लेकिन चेहरे पर टहल रहे भाव दिलोदिमाग में चल रही परेशानी की चुगली कर रहे थे ...आँखे ...