हज़ारों परिवारों को बचाने के मकसद को लेकर #नर्मदाबचाओआंदोलन की नेता मेघा पाटकर बीते 12 दिनो से अनशन पर हैं । सरकार ने बजाय समस्या का हल निकालने के उल्टा, अनशन स्थल से ही मेघा को बलपूर्वक हटा दिया लेकिन तमाम चैनल का इस खबर से कोई बास्ता नही है । बबाल नही हुआ तो मप्र सरकार भी 'बात बनाओ,धन कमाओ' कार्यक्रम में व्यस्त है । सुना है मेघा जी की सेहत दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है ।
आंदोलन सफल होने से हो सकता है कि इन बेचारे परिवारों का भला हो जाए लेकिन टीआरपी भी कोई बला होती है । भला,इसे हमारा चौथा स्तम्भ कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है । चैनल दिन भर जो खबर पेले पड़े रहतें है,उसके पीछे भी कई गणित होते हैं । देखिए न.....मेघा जी को नही मालूम तो 11 दिन के अनशन के बावजूद आज कोई सुध लेने वाला नही और वही केजरीवाल साहब ने मीडिया बंधुओं को जोड़कर खबर में रहने के गुर सीख लिए तो आज 'मुख्यमंत्री' बन गए ....।
अब भला,मेघा पाटकर के आंदोलन में है ही क्या...। न नौटँकी, न सेलेब्रिटी और न ही भन्नाट टाइप की मारपीट या गाली गलौच । वैसे भी अभी चैनल वाले भाई लोगो के पास भरपूर मसाला है तो भला इस खबर में टाइम क्यों खोटी किया जाए । दरअसल चैनलों के भी अपने अघोषित नियम है,जिन्हें ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है ..। खासकर धरना,प्रदर्शन, आंदोलनकारी थोड़ा ध्यान रखें ।
* चैनलों को सिर्फ खबर नही बल्कि 'मसाला खबर' की दरकार होती है । मसाला खबर पर बढ़िया पैकेज भी पकता है और दर्शकों को भी मस्त मज़ा आता है । इससे पहले जब पानी मे खड़ा होकर डूब पीडितों ने आंदोलन किया था तो खूब खबर बिकी थी ।
* अक्सर शनिवार,रविवार या फिर त्यौहारों पर खबर बेमौत मारी जाती है क्योंकि चैनल के कर्णधारों को अवकाश होता है औऱ कनिष्ठ 'बस चलने दो' के अंदाज में काम करते हैं..।
* गुरुवार को अक्सर बड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले आते है तो अन्य सतही खबरों का कत्ल होना तय ।
* खबर सनसनीखेज हो । साथ ही कोई भी सेलेब्रेटी को इसमें फालतू में फंसा लो तो खबर के बिकने की पूरी गारंटी ।
* मसला कोई भी हो यदि लालू प्रसाद,ओबेसी, आज़म खान,ममता बैनर्जी, सुब्रमन्ह्यम स्वामी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया उस पर चेंप दी तो चैनल के कर्णधारों को अहसास हो जाता है कि यह 'खबर' जो बिक जाएगी ।
* यदि किसी लड़के को लड़की ने सरे आम जमकर पीटा,नौटँकी टाइप का सीसीटीव्ही फुटेज,नेता का अश्लील एमएमएस,चीन-पाक इश्यू पर नया घटनाक्रम,गाय, पीएम की विदेश यात्रा, आदि आदि तरह के मसले आ गए तो राष्ट्रहित में मीडिया इन्हें तबज्जो देगा ।
* क्रिकेट का कोई मैच हो तो आशा ही मत कीजिए कि अन्य कोई खबर चौकोर पर्दे पर देखने मिलेगी । विराट से लेकर पिच के हालात बताने में पेले पड़े रहेंगे ।
* किसी कालेज या विश्वविद्यालय में कुछ लंपट ने नौटँकी कर दी और उस पर नेताओ ने कुछ बोल दिया तो तत्काल बड़ी खबर की श्रेणी में शुमार होना तय है ।
* कुपोषण,स्वास्थ्य,शिक्षा,रोज़गार या अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी खबर निचली श्रेणी में शामिल होकर लायब्रेरी की शोभा बढ़ाएगी ।
* यदि कुछ मसाला नही तो फिर सीधी नज़र सब्जियों के दाम पर होगी..। प्याज,टमाटर को आसमान पर पहुंचा दिया जाएगा ।
* खबर यदि 12 से पहले जब चैनल में संपादकीय विभाग की बैठक होती है,जिसमें चैनल के बड़े साहब ज्ञान देते है...। मान लो उस समय तक वह बैठक के पटल पर पहुंच गई तो संभव है उसका कल्याण हो जाए वरना भोजनकाल के बाद आने वाली खबरों का तो मरण है । क्योंकि शाम को तो ज्ञानचंदो का संगम होता है चैनल पर ..।
* अरे हां.. रिपोर्टर की साहब से कितनी पटती है या फिर उनके खेमे का हुआ तो भी खबर पर्दे पर आने की उम्मीद जगाती है ।
* खबर के प्रसारण से मालिकान का आर्थिक,राजनैतिक एवम सामाजिक समीकरण कैसा बैठेगा ..भैया यह भी देखना बहुत ज़रूरी है ।
* किसी फिल्मी सितारे की मूर्खतापूर्ण हरकत या किसी सितारों पर कोई छोटा सा भी आरोप लगा तो डंडा कमंडल लेकर शुरू ।
यदि इन मापदंडों पर ध्यान नही दिया तो घटना,मुद्दा या फिर आंदोलन कितना भी अहम हो,चैनल्स के लिए कोई मायने नही रखता । इसलिए मेघा जी कृप्या आप दुखी न हों । आपका आंदोलन चैनल के मापदंडों पर खरा नही उतरता इसलिए चौकोर पर्दे पर जगह न मिल पाएगी लेकिन मेघा जी...आपका प्रयास और तप आम लोगो के के दिलों में जगह ज़रूर बना रहा है....।
आंदोलन सफल होने से हो सकता है कि इन बेचारे परिवारों का भला हो जाए लेकिन टीआरपी भी कोई बला होती है । भला,इसे हमारा चौथा स्तम्भ कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है । चैनल दिन भर जो खबर पेले पड़े रहतें है,उसके पीछे भी कई गणित होते हैं । देखिए न.....मेघा जी को नही मालूम तो 11 दिन के अनशन के बावजूद आज कोई सुध लेने वाला नही और वही केजरीवाल साहब ने मीडिया बंधुओं को जोड़कर खबर में रहने के गुर सीख लिए तो आज 'मुख्यमंत्री' बन गए ....।
अब भला,मेघा पाटकर के आंदोलन में है ही क्या...। न नौटँकी, न सेलेब्रिटी और न ही भन्नाट टाइप की मारपीट या गाली गलौच । वैसे भी अभी चैनल वाले भाई लोगो के पास भरपूर मसाला है तो भला इस खबर में टाइम क्यों खोटी किया जाए । दरअसल चैनलों के भी अपने अघोषित नियम है,जिन्हें ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है ..। खासकर धरना,प्रदर्शन, आंदोलनकारी थोड़ा ध्यान रखें ।
* चैनलों को सिर्फ खबर नही बल्कि 'मसाला खबर' की दरकार होती है । मसाला खबर पर बढ़िया पैकेज भी पकता है और दर्शकों को भी मस्त मज़ा आता है । इससे पहले जब पानी मे खड़ा होकर डूब पीडितों ने आंदोलन किया था तो खूब खबर बिकी थी ।
* अक्सर शनिवार,रविवार या फिर त्यौहारों पर खबर बेमौत मारी जाती है क्योंकि चैनल के कर्णधारों को अवकाश होता है औऱ कनिष्ठ 'बस चलने दो' के अंदाज में काम करते हैं..।
* गुरुवार को अक्सर बड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले आते है तो अन्य सतही खबरों का कत्ल होना तय ।
* खबर सनसनीखेज हो । साथ ही कोई भी सेलेब्रेटी को इसमें फालतू में फंसा लो तो खबर के बिकने की पूरी गारंटी ।
* मसला कोई भी हो यदि लालू प्रसाद,ओबेसी, आज़म खान,ममता बैनर्जी, सुब्रमन्ह्यम स्वामी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया उस पर चेंप दी तो चैनल के कर्णधारों को अहसास हो जाता है कि यह 'खबर' जो बिक जाएगी ।
* यदि किसी लड़के को लड़की ने सरे आम जमकर पीटा,नौटँकी टाइप का सीसीटीव्ही फुटेज,नेता का अश्लील एमएमएस,चीन-पाक इश्यू पर नया घटनाक्रम,गाय, पीएम की विदेश यात्रा, आदि आदि तरह के मसले आ गए तो राष्ट्रहित में मीडिया इन्हें तबज्जो देगा ।
* क्रिकेट का कोई मैच हो तो आशा ही मत कीजिए कि अन्य कोई खबर चौकोर पर्दे पर देखने मिलेगी । विराट से लेकर पिच के हालात बताने में पेले पड़े रहेंगे ।
* किसी कालेज या विश्वविद्यालय में कुछ लंपट ने नौटँकी कर दी और उस पर नेताओ ने कुछ बोल दिया तो तत्काल बड़ी खबर की श्रेणी में शुमार होना तय है ।
* कुपोषण,स्वास्थ्य,शिक्षा,रोज़गार या अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी खबर निचली श्रेणी में शामिल होकर लायब्रेरी की शोभा बढ़ाएगी ।
* यदि कुछ मसाला नही तो फिर सीधी नज़र सब्जियों के दाम पर होगी..। प्याज,टमाटर को आसमान पर पहुंचा दिया जाएगा ।
* खबर यदि 12 से पहले जब चैनल में संपादकीय विभाग की बैठक होती है,जिसमें चैनल के बड़े साहब ज्ञान देते है...। मान लो उस समय तक वह बैठक के पटल पर पहुंच गई तो संभव है उसका कल्याण हो जाए वरना भोजनकाल के बाद आने वाली खबरों का तो मरण है । क्योंकि शाम को तो ज्ञानचंदो का संगम होता है चैनल पर ..।
* अरे हां.. रिपोर्टर की साहब से कितनी पटती है या फिर उनके खेमे का हुआ तो भी खबर पर्दे पर आने की उम्मीद जगाती है ।
* खबर के प्रसारण से मालिकान का आर्थिक,राजनैतिक एवम सामाजिक समीकरण कैसा बैठेगा ..भैया यह भी देखना बहुत ज़रूरी है ।
* किसी फिल्मी सितारे की मूर्खतापूर्ण हरकत या किसी सितारों पर कोई छोटा सा भी आरोप लगा तो डंडा कमंडल लेकर शुरू ।
यदि इन मापदंडों पर ध्यान नही दिया तो घटना,मुद्दा या फिर आंदोलन कितना भी अहम हो,चैनल्स के लिए कोई मायने नही रखता । इसलिए मेघा जी कृप्या आप दुखी न हों । आपका आंदोलन चैनल के मापदंडों पर खरा नही उतरता इसलिए चौकोर पर्दे पर जगह न मिल पाएगी लेकिन मेघा जी...आपका प्रयास और तप आम लोगो के के दिलों में जगह ज़रूर बना रहा है....।
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